जमीन में गड्ढा खोदकर तैयार करें ये ट्रैप, थ्रिप्स और बीटल जैसे कीटों से मिलेगा छुटकारा

पिटफॉल ट्रैप बनाने के लिए सबसे पहले जमीन में 10 से 15 सेमी गहरा गड्ढा खोदें और उसमें प्लास्टिक या कांच का बर्तन रखें जिसा मुंह जमीन के बराबर हो. इसके बाद बर्तन में थोड़ा सा पानी, सिरका, साबुन की बूंदे या गुड़ का घोल डालें, इस घोल में गिरकर कीट मर जाते हैं.

अनामिका अस्थाना
नोएडा | Published: 23 Jun, 2025 | 06:43 PM

किसानों के सामने फसलों को सही पोषण और खाद देने के साथ ही सबसे बड़ी चुनौती होती है उन्हें बाहरी खतरे से बचाना जैसे कीटों और रोगों के आक्रमण से फसलों की सुरक्षा करना. कई बार सही जानकारी न होने के कारम या फिर कभी-कभी किसानों का लापरवाही के कारण फसलों में कीटों का आक्रमण हो जाता है. ऐसा होने पर न केवल फसल को नुकसान पहुंचता है बल्कि किसानों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है. इन कीटों से फसलों की सुरक्षा के लिए किसान आसानी से अपने घर में केमिकल फ्री ट्रैप बना सकते हैं जो कि इन कीटों को दूर करते हैं. ऐसा ही एक ट्रैप है पिटफॉल ट्रैप जो कि मुख्य रूप से जमीन पर चलने वाले कीटों से फसलों की सुरक्षा करता है.

क्या है पिटफॉल ट्रैप

पिटफॉल ट्रैप में एत तरह का गड्ढा या फिर कंटेनर होता है जिसे जमीन के स्तर पर रखा जाता है. ताकि जमीन पर चलने वाले कीट इस गड्ढे या कंटेनर में गिर जाएं. बचा दें कि इस गड्ढे या कंटेनर में कीटों को आकर्षित करने के लिए गुड़ और पानी का मीठा घोल या सिरका, साबुन का पानी या फिर कीटों को आकर्षित करने वाले अन्य घोल को डाल सकते हैं.

इस तरीके से बनाएं ट्रैप

पिटफॉल ट्रैप बनाने के लिए सबसे पहले जमीन में 10 से 15 सेमी गहरा गड्ढा खोदें और उसमें प्लास्टिक या कांच का बर्तन रखें जिसा मुंह जमीन के बराबर हो. इसके बाद बर्तन में थोड़ा सा पानी, सिरका, साबुन की बूंदे या गुड़ का घोल डालें, इस घोल में गिरकर कीट मर जाते हैं. बारिश से इस ट्रैप को बचाने के लिए इसे कार्डबोर्ड या पत्ते की छांव से ढकें. अच्छे नतीजे के लिए इस ट्रैप को फसल में हर 10 से 15 मीटर पर लगाएं. रोज सुबह कीटों को निकालें और घोल को बदलें.

क्या हैं इस ट्रैप के फायदे

पिटफॉल ट्रैप मुख्य रूप से जमीन पर चलने वाले कीटों से फसलों की सुरक्षा करता है जैसे की थ्रिप्स, बीटल आदि. इस ट्रैप का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें किसी भी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है जो कि इसे पूरी तरह से वातावरम के अनुकूल बनाता है. इसके अलावा किसान आसान से इसे अपने आप बना सकते हैं और इसे बनाने में किसी किस्म की लागत भी नहीं आती है.

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