धान की फसल के लिए विनाशकारी हो सकता है यह कीट, जानें लक्षण और बचाव के उपाय

धान की खेती करने वाले किसान यूं तो कई बातों का ध्‍यान रखते हैं लेकिन कई बार वो कुछ ऐसी चीजों या कीड़ों की रोकथाम करना भूल जाते हैं, जो फसल को चौपट कर सकती हैं.

Kisan India
Agra | Updated On: 28 Mar, 2025 | 07:30 PM

धान भारत के किसानों के लिए एक अहम फसल है. न सिर्फ किसानों बल्कि यह देश की एक बड़ी आबादी की भूख मिटाने का भी जरिया है. धान की खेती करने वाले किसान यूं तो कई बातों का ध्‍यान रखते हैं लेकिन कई बार वो कुछ ऐसी चीजों या कीड़ों की रोकथाम करना भूल जाते हैं, जो फसल को चौपट कर सकती हैं. इनमें से ही एक है सूत्रकृमि या जिसे अंग्रेजी में राइस रूट नेमाटोड्स के नाम से भी जाना जाता है. यह एकदम छोटा सा वह कीड़ा है जो अगर धान की फसल में लग गया तो फिर उसे बर्बाद करके ही छोड़ता है. 

धान के नए पौधों की जड़ को यह कीड़ा बहुत नुकसान पहुंचाता है. इससे पनपने वाला रोग बेहद ही खतरनाक होता है. देश के ऐसे हिस्‍से जहां पर धान की खेती होती है, वहां पर लगभग सभी क्षेत्रों में इस कीड़े की समस्‍या आम है. जहां पर सेम की खेती होती हैं, वहां इसकी समस्या गंभीर है. यह स्थान बदलने वाला एक अंतः परजीवी सूत्रकृमि है जो जड़ों के अंदर घुसकर पूरी बढ़वार के समय तक फसल को हानि पहुंचाता है.

सूत्रकृमि क्‍यों है गंभीर समस्या

धान में यह सूत्रकृमि क्यारियों और ऊपरी मिट्टी में पाया जाता है. यह धान के लिए बड़ी समस्या है. यह भारत के कई राज्यों में गहरे पानी में सिंचित धान में बड़े पैमाने पर पाया जाता है. इसके छोटे जीवनचक्र और विस्तृत परजीवी शृंखला कई खरपतवार प्रजातियों सहित जो धान के खेतों में आम हैं, इस प्रजाति को नियंत्रित करना मुश्किल बनाते हैं. इससे बचाव के लिए उपाय में कहा जाता है कि स्वस्थ पनीरी का ही प्रयोग करें. पनीरी लगाने वाले स्थान को हर बार बदलते रहें. इससे सूत्रकृमि लगने का खतरा कम होता है.

विशेषज्ञों की तरफ से अक्‍सर ही किसानों को इससे बचने की सलाह दी जाती है. यह कीड़ा अगर पौधे के अंदर घुस गया तो फिर उसको बढ़ने नहीं देगा. ऐसे में पौधो बहुत ही छोटी अवस्‍था में ही खत्‍म हो सकता है. आइए सबसे पहले आपको इस सूत्रकृमि के लक्षणों के बारे में बताते हैं और फिर इसके इलाज के बारे में जानकारी देंगे. 

सूत्रकृमि का लक्षण

अगर धान के किसी पौधे में यह कीड़ा पहुंच जाता है तो फिर इससे प्रभावित पौधे बौने रह जाएंगे और उनमें फुटाव भी कम होगा.
प्रभावित धान के पौधे में बाली निकलने में करीब एक हफ्ते की देरी हो सकती है और फिर पकने में भी ज्‍यादा समय लगता है.
इससे ग्रसित धान के पौधे की जड़ें छोटी रह जाती हैं और उन पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. बाद में जड़ें गहरे रंग में तब्‍दील हो जाती हैं.
सूत्रकृमि से प्रभावित धान की फसल कम पैदावार देती है और किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है.

कैसे करें इससे बचाव 

धान की नर्सरी बोने से पहले क्यारियों में फ्यूराडॉन-3 (कार्बोफ्यूरॉन) 13 किलो प्रति एकड़ की दर से डालें.
प्याज, लहसुन या सरसों के साथ फसलचक्र अपनाकर भी इस सूत्रकृमि के प्रकोप से बचा जा सकता है.
सूत्रकृमि से छुटकारा पाने के लिए खेतों की मई-जून में 10-15 दिनों के अंतराल पर गहरी जुताई करें और पाटा न लगाएं ताकि सूत्रकृमि सूरज की गर्मी से खत्‍म हो जाएं.
साथ ही खेत को खरपतवार से मुक्त रखें, तभी सूत्रकृमि की समस्या से निपटा जा सकेगा. 

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Published: 28 Mar, 2025 | 07:29 PM

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