खेती से नहीं हो रही कमाई? गिर, मुर्रा और साहिवाल नस्लें बना सकती हैं आपको मालामाल

पारंपरिक खेती की घटती कमाई के बीच किसान अब डेयरी व्यवसाय की ओर बढ़ रहे हैं. गिर, मुर्रा, साहिवाल और जर्सी जैसी नस्लों से दूध उत्पादन बढ़ा है, जिससे किसानों को अच्छी आमदनी और युवाओं को स्वरोजगार का अवसर मिल रहा है.

Saurabh Sharma
नोएडा | Published: 19 Sep, 2025 | 08:55 PM
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आज के समय में जहां पारंपरिक खेती की लागत बढ़ रही है और मुनाफा कम हो रहा है, वहीं किसान तेजी से पशुपालन और डेयरी व्यवसाय की ओर रुख कर रहे हैं. दूध उत्पादन से जुड़ा यह व्यवसाय न केवल किसानों की आमदनी को दोगुना करने की क्षमता रखता है, बल्कि युवा वर्ग को भी स्वरोजगार का एक स्थायी विकल्प दे रहा है. गिर, मुर्रा, साहिवाल और जर्सी जैसी उच्च गुणवत्ता वाली नस्लें अब किसानों की कमाई का प्रमुख साधन बन रही हैं.

गिर और साहिवाल गाय: A2 दूध से दोगुनी कमाई

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार गिर और साहिवाल नस्ल की गायें कम देखभाल में भी अच्छा दूध देती हैं. खास बात यह है कि इन गायों का दूध A2 प्रोटीन से भरपूर होता है, जो सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है. यही कारण है कि शहरी इलाकों में इस दूध की मांग ज्यादा है और यह सामान्य दूध से दोगुनी कीमत पर बिकता है. गिर गाय प्रतिदिन 10-12 लीटर और साहिवाल गाय 8-10 लीटर तक दूध देती है, जिससे किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं.

मुर्रा भैंस: दूध देने की मशीन

हरियाणा की मुर्रा नस्ल की भैंस को किसान दूध की मशीन कहने लगे हैं. यह भैंस रोजाना 10 से 15 लीटर तक दूध देती है. इसकी खासियत यह है कि यह बदलते मौसम में खुद को आसानी से ढाल लेती है और लंबे समय तक उत्पादन बनाए रखती है. उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब में मुर्रा भैंस की मांग तेजी से बढ़ी है, जिससे यह डेयरी व्यवसाय के लिए एक मजबूत विकल्प बन चुकी है.

जर्सी गाय: कम खर्च, ज्यादा उत्पादन

विदेशी नस्ल होने के बावजूद जर्सी गाय अब भारतीय किसानों की पसंद बन गई है. यह गाय 12 से 20 लीटर तक दूध देती है और चारे की जरूरत भी कम होती है. इसका दूध वसा में ज्यादा होता है, जिससे घी और पनीर जैसे उत्पाद अधिक मात्रा में बनते हैं. जर्सी गाय की देखभाल आसान है, इसलिए छोटे और मझोले किसान इसे पालकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.

सरकारी योजनाएं बनी किसानों की मददगार

पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार की कई योजनाएं जैसे राष्ट्रीय गोकुल मिशन, पशुपालन डेयरी योजना और राज्य सरकारों की स्थानीय स्कीमें किसानों को आर्थिक सहारा दे रही हैं. इन योजनाओं के तहत किसानों को 25 फीसदी से 50 प्रतिशत  तक की सब्सिडी, प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता मिलती है. चिलिंग यूनिट, टीकाकरण, फीडिंग सिस्टम और नस्ल सुधार जैसे क्षेत्रों में भी मदद मिल रही है. अब गांव-गांव तक पशु चिकित्सा सेवाएं पहुंच चुकी हैं, जिससे पशुओं का स्वास्थ्य बेहतर हुआ है और दूध उत्पादन में लगातार इजाफा हो रहा है.

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Published: 19 Sep, 2025 | 08:55 PM
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