Aseel Chicken : आज के समय में जब लोग अंडे और चिकन को प्रोटीन का सस्ता और आसान स्रोत मानते हैं, वहीं भारत में एक ऐसी देसी मुर्गी की नस्ल भी है जिसकी कीमत सुनकर लोग हैरान रह जाते हैं. कड़कनाथ को तो आपने कई बार सुना होगा, लेकिन इससे भी महंगी और दमदार नस्ल है असील मुर्गी. कम अंडे देती है, पर जो देती है उसकी कीमत बाजार में आसमान छूती है. यही वजह है कि आज गांव-गांव में किसान इसकी डिमांड बढ़ा रहे हैं और अच्छी कमाई कर रहे हैं.
असील मुर्गी
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, असील मुर्गी भारत की सबसे प्राचीन और अनोखी नस्लों में गिनी जाती है. दिखने में मजबूत, रंग-रूप में आकर्षक और स्वभाव से बेहद फाइटर मानी जाती है. इसके अंडे सालभर में केवल 60-70 ही मिलते हैं और इसी कमी के कारण इसका अंडा बहुत महंगा बिकता है. बाजार में असील का एक अंडा लगभग 100 रुपए तक मिलता है और एक दर्जन की कीमत 1200 रुपए तक पहुंच जाती है. यही कारण है कि किसान इसकी चुनिंदा संख्या पालकर भी अच्छा मुनाफा कमा लेते हैं.
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कड़कनाथ से भी महंगी क्यों है असील?
कड़कनाथ मुर्गा वैसे तो देश-विदेश में अपनी खास पहचान बना चुका है, लेकिन असील की बात ही अलग है. कड़कनाथ जहां अंडे ज्यादा देता है, वहीं असील कम देती है, लेकिन उसकी मार्केट वैल्यू कई गुना अधिक है. असील का मीट बेहद स्वादिष्ट, पौष्टिक और थोड़ा चबाने में सख्त होता है, लेकिन लोग इसके स्वाद और देसी फ्लेवर के कारण खूब पसंद करते हैं. बाजार में इसका मीट भी अन्य नस्लों के मुकाबले काफी महंगा बिकता है. किसान बताते हैं कि एक असील मुर्गा बेचने पर उन्हें आम नस्ल की तुलना में कई गुना ज्यादा लाभ मिलता है.
बैकयार्ड फार्मिंग में सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली नस्ल
असील मुर्गी की खासियत यह है कि इसे बड़े पोल्ट्री शेड की भी जरूरत नहीं पड़ती. किसान इसे अपने घर के आसपास खुले वातावरण में आराम से पाल सकते हैं. यह नस्ल काफी मजबूत होती है और बीमारी का खतरा इसमें बहुत कम होता है. अन्य मुर्गियों की तुलना में असील का बर्ताव थोड़ा अलग होता है. यह ज्यादा संवेदनशील नहीं होती, इसलिए गांवों में लोग इसे खुले में चरने देते हैं. मेहनत कम लगती है और मुनाफा ज्यादा मिलता है, इसीलिए बैकयार्ड फार्मिंग में यह सबसे पसंदीदा देसी नस्ल बन चुकी है.
लड़ाकू प्रवृत्ति वाली नस्ल, मुगलों के दौर से है लोकप्रिय
असील मुर्गा केवल मांस और अंडे के लिए ही नहीं जाना जाता, बल्कि इसकी सबसे खास पहचान है-इसका लड़ाकू स्वभाव. यह कोई नई नस्ल नहीं है बल्कि मुगलों और नवाबों के जमाने से पाली जा रही है. पुराने समय में रजवाड़ों में मुर्गों की लड़ाई का शौक बहुत मशहूर था और इसमें इस्तेमाल किए जाने वाले ज्यादातर मुर्गे असील ही हुआ करते थे. आज भी देश के कई राज्यों में असील की अलग-अलग किस्में पाई जाती हैं–
- यारकिन
- टीकर
- कागर
- रेजा
- चित्ताद
हर किस्म का रंग-रूप और वजन अलग होता है, लेकिन सभी की खासियत एक ही–ताकत और मजबूती.
कम अंडे लेकिन भरपूर कमाई, किसानों की पहली पसंद
ग्राम पंचायतों और छोटे किसानों के बीच असील तेजी से लोकप्रिय हो रही है. वजह सीधी है-कम अंडे देने के बावजूद इनकी कीमत इतनी अधिक है कि सालभर में भी इनसे अच्छी कमाई हो जाती है. इसके साथ ही असील के अंडे को आंखों की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है. पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण लोग इसे दवा की तरह भी इस्तेमाल करते हैं. यही वजह है कि बाजार में इनका अंडा महंगा बिकता है और मांग लगातार बढ़ रही है. किसानों का कहना है कि अगर असील की 8–10 मुर्गियां भी पाल ली जाएं तो सालभर में अच्छी अतिरिक्त आय हो सकती है. लागत कम, दवाइयों पर खर्च कम और मुनाफा शानदार-इसी कारण असील मुर्गी आज देसी पोल्ट्री फार्मिंग का एक बड़ा नाम बन चुकी है.