Belahi Cow : भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में खेती और पशुपालन हमेशा से जीवन का अहम हिस्सा रहे हैं. खेती के बाद अब पशुपालन छोटे और बड़े किसानों के लिए स्थायी आमदनी का स्रोत बन चुका है. खासकर दूध देने वाली देसी नस्ल की गायों का पालन करने वाले किसान काफी लाभ कमा रहे हैं. ऐसी ही एक नस्ल है बेलाही गाय, जिसे मोरनी या देसी गाय के नाम से भी जाना जाता है. यह गाय छोटे किसानों के लिए बेहद लाभकारी है क्योंकि इसकी देखभाल में अधिक खर्च नहीं आता और यह अच्छी मात्रा में दूध देती है.
बेलाही गाय की पहचान और रंग
बेलाही गायों की ऊंचाई लगभग 120 से 125 सेमी होती है, जबकि बैलों की ऊंचाई लगभग 130 से 135 सेमी तक होती है. गाय का वजन 250 से 300 किलोग्राम के बीच होता है. इनका रंग आमतौर पर लाल भूरे, भूरे या सफेद रंग का होता है. मवेशी मध्यम आकार के होते हैं, सिर सीधा, चेहरा पतला और माथा चौड़ा होता है. इनके कूबड़ का आकार छोटा या मध्यम होता है और थन का आकार भी मध्यम होता है. सींग ऊपर और अंदर की ओर मुड़े होते हैं.
दूध की मात्रा और गुणवत्ता
बेलाही नस्ल की गायें एक ब्यान्त में औसतन 1013 लीटर दूध देती हैं, जबकि अधिकतम दूध उत्पादन 2091 लीटर तक जा सकता है. दूध में औसतन 5.25 प्रतिशत वसा पाई जाती है, न्यूनतम 2.37 प्रतिशत और अधिकतम 7.89 प्रतिशत फैट तक हो सकता है. इसकी वजह से बेलाही गाय से प्राप्त दूध पोषण से भरपूर होता है और दूध उत्पादन व्यवसाय में मुनाफा सुनिश्चित करता है. छोटे और सीमांत किसान इस नस्ल के पालन से स्थायी आमदनी कमा सकते हैं.
पालन और देखभाल
बेलाही नस्ल की गायों को आम तौर पर गुज्जर समुदाय द्वारा दूध और भार दोनों के लिए पाला जाता है. प्रवास के दौरान मवेशियों को खुले में रखा जाता है. सर्दियों में जब ये प्रवास नहीं करते, तो उन्हें शेड में रखा जाता है. कुछ डेयरी में दूध निकालते समय इन्हें चारा भी दिया जाता है. इन गायों को दो से तीन बैलों के साथ सैकड़ों मादाओं के झुंड में रखा जाता है. युवा बछड़े आमतौर पर खेती या बिक्री के लिए अलग कर दिए जाते हैं.
आर्थिक लाभ और किसानों के लिए फायदेमंद
बेलाही गाय छोटे किसानों के लिए सबसे अधिक लाभकारी साबित होती है. इसकी देखभाल में कम खर्च आता है और दूध उत्पादन की मात्रा पर्याप्त होती है. इससे किसान आसानी से दुग्ध व्यवसाय में जुड़ सकते हैं और स्थायी आमदनी कमा सकते हैं. बेलाही गायों का पालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है और पारंपरिक खेती के साथ-साथ किसानों को अतिरिक्त रोजगार भी देता है.
बेलाही नस्ल का महत्व और वितरण
बेलाही नस्ल की गायें मुख्यत– चंडीगढ़, अंबाला, पंचकुला और आसपास के इलाकों में पाई जाती हैं. इस नस्ल के मवेशियों के नाम शरीर के रंग के आधार पर रखे गए हैं. बेलाही गायें दोहरी नस्ल हैं यानी दूध और भार दोनों के लिए उपयुक्त हैं. यह नस्ल किसानों को न केवल आर्थिक लाभ देती है, बल्कि ग्रामीण जीवन में स्थायी रोजगार और महिलाओं की आत्मनिर्भरता में भी योगदान देती है.
 
 
                                                             
                             
                             
                             
                             
 
 
                                                     
                                                     
                                                     
                                                    