Goat Disease : गांवों में अक्सर किसान कहते हैं कि बकरी छोटी जरूर होती है, लेकिन बीमारी बड़ी पकड़ लेती है. यह बात काफी हद तक सच भी है. क्योंकि बकरियों में बीमारी लगने की रफ्तार तेज होती है और थोड़ी-सी लापरवाही किसान को भारी नुकसान पहुंचा सकती है. अच्छी बात यह है कि ज्यादातर रोगों की पहचान समय पर हो जाए और तुरंत इलाज शुरू कर दिया जाए, तो बकरी जल्दी ठीक भी हो जाती है. इसी वजह से अनुभवी किसान हमेशा सलाह देते हैं कि हर बकरी पालक को रोगों के लक्षण जरूर पता होने चाहिए.
बरसात से सर्दी तक-कब कौन-सा रोग सताता है?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बकरियों में मौसम बदलते ही कई तरह की समस्याएं दिखने लगती हैं. बरसात में खुर-मुंह रोग बहुत फैलता है, जिसमें बकरी के कदमों और मुंह पर दर्द वाले छाले बन जाते हैं और लार लगातार गिरती रहती है. इससे बकरी खाना भी कम कर देती है. वहीं सर्दी बढ़ते ही निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है, जिसमें बकरी कांपती है, नाक बहती है और सांस लेने में मुश्किल होती है. गर्मियों में आंखों में पानी आना और जलन की परेशानी ज्यादा देखी जाती है, जिसे फिटकरी के पानी से साफ करने पर राहत मिलती है. बीमारी चाहे कोई भी हो, लक्षण दिखाई देते ही तुरंत इलाज शुरू करना जरूरी है ताकि बीमारी न बढ़े और पशु बच सके.
सबसे खतरनाक-अफारा, थनेला और पेट के कीड़े
अफारा यानी पेट फूलने की समस्या बकरियों में अचानक आती है और समय पर इलाज न मिले तो जान भी ले सकती है. पेट का बायां हिस्सा फूल जाना, बार-बार पैर मारना और सांस चढ़ना इसके मुख्य संकेत हैं. ऐसे में तुरंत चारा-पानी रोककर सोडा, टिंपोल या घरेलू घोल (प्याज, दही और काला नमक) देना फायदेमंद रहता है. थनेला में बकरी के थनों में सूजन आ जाती है और दूध में दाने जैसे थक्के नजर आते हैं. इस स्थिति में साफ-सफाई और एंटीबायोटिक का उपयोग जरूरी है. पेट के कीड़े भी बकरियों की भूख कम कर देते हैं और वजन तेजी से घटने लगता है. इसके लिए बथुआ, छाछ और कीड़े मारने की दवाओं का सही इस्तेमाल काफी असरदार रहता है.
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सही देखभाल और टीकाकरण से बीमारी रहेगी दूर
बकरियों में ज्यादातर रोग खराब सफाई, मौसम बदलने और गलत तरह का चारा खिलाने से फैलते हैं. अगर समय पर टीकाकरण हो जाए तो खुर-मुंह रोग और पीपीआर जैसे बड़े खतरे से आसानी से बचा जा सकता है. बकरियों को बारिश और ठंडी हवा से बचाकर रखें, सूखा बिछावन दें और पानी हमेशा साफ रखें. जिन बकरियों में बीमारी के लक्षण दिखें, उन्हें तुरंत दूसरे पशुओं से अलग कर देना चाहिए ताकि बीमारी फैल न सके.