मछली पालन आज गांव-देहात में रोजगार और कमाई का बड़ा जरिया बन चुका है. लेकिन अक्सर जल्दबाजी में बिना वैज्ञानिक सलाह लिए तालाब खुदवाकर किसान घाटे में चले जाते हैं. पानी भरा, मछली डाली और कमाई शुरू, ऐसा नहीं होता. असल कहानी इससे कहीं ज्यादा तकनीकी और सूझबूझ की मांग करती है. तालाब खुदवाने से पहले मिट्टी और पानी की क्वालिटी की जांच कराना जरूरी है. नहीं तो मेहनत, पैसा और सपना तीनों डूब सकते हैं. इस समस्या के समाधान के लिए हरियाणा सरकार के मत्स्य पालन विभाग ने सही तालाब में क्या-क्या होना चाहिए, इसकी स्पष्ट गाइडलाइन जारी की है.
मिट्टी की जांच क्यों जरूरी है
तालाब की नींव, यानी उसकी मिट्टी अगर सही नहीं है तो न तो पानी रुकेगा और न ही मछली पनपेगी. मछली पालन के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी वही होती है, जिसमें रेत 50 से 70 प्रतिशत, तलछट 15 से 25 प्रतिशत और चिकनी मिट्टी (कल्ले) 7 से 20 प्रतिशत हो. इसके अलावा मिट्टी में कार्बनिक कार्बन की मात्रा 0.5 से 2 प्रतिशत होनी चाहिए. इतना ही नहीं, इसमें नाइट्रोजन 20-75 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम और फासफोरस 2-10 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम होना चाहिए. इन तत्वों की सही मात्रा मछलियों की ग्रोथ और स्वास्थ्य के लिए बेहद अहम है.
पानी की क्वालिटी तय करती है सफलता
तालाब में भरे गए पानी का रंग हल्का हरापन लिए हो, यह दर्शाता है कि उसमें जरूरी प्लवक मौजूद हैं जो मछली के भोजन का अहम हिस्सा होते हैं. पानी की पारदर्शिता, तापमान और पीएच भी संतुलित होना चाहिए.
- तापमान- 25-30 डिग्री सेल्सियस
- पीएच- 7-8.6
- घुलनशील ऑक्सीजन- 4-10 मि.ग्रा.प्रति लीटर
- कार्बन डाइऑक्साइड- 3-7 मि.ग्रा.प्रति लीटर
- कुल क्षारीयता- 60-230 मि.ग्रा.प्रति लीटर
ये सभी मानक मछलियों की अच्छी वृद्धि और प्रजनन के लिए अनिवार्य हैं.
अमोनिया, क्लोरीन और पोटैशियम पर नजर रखें
तालाब के पानी में अमोनिया की मात्रा 0.01 पीपीएम से ज्यादा हो गई तो मछलियों के लिए जानलेवा हो सकती है. इसी तरह क्लोरीन 0.003 पीपीएम से कम और पोटाशियम 0.5-10 पीपीएम के बीच होना चाहिए. यदि ये मानक संतुलित न हों तो मछलियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती है और मौत की आशंका बढ़ जाती है.
वैज्ञानिकों से कराएं जांच
तालाब खुदवाने से पहले अपने जिले के मत्स्य विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें. वहां से मिट्टी और पानी का नमूना लेकर जांच कराएं. रिपोर्ट आने के बाद ही तालाब निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाएं. सरकार भी कई राज्यों में ये जांच मुफ्त या सब्सिडी पर करवा रही है. इससे नुकसान से बचा जा सकता है और मछली पालन से उम्मीद के मुताबिक कमाई भी हो सकती है.