खुरपका बीमारी से पशुपालकों में हड़कंप.. दूध घटने से कमाई पर बुरा असर, ऐसे करें बचाव

खुरपका-मुंहपका रोग गांवों में तेजी से फैल रहा है और गाय-भैंसों के दूध उत्पादन को भारी नुकसान पहुंचा रहा है. कई बाड़ों में सभी पशु एक साथ बीमार हो रहे हैं. विशेषज्ञ साफ कहते हैं-इसका कोई इलाज नहीं, सिर्फ समय पर टीकाकरण ही बचाव है. शुरुआती लक्षण दिखते ही सतर्क रहना बेहद जरूरी है.

Saurabh Sharma
नोएडा | Published: 7 Dec, 2025 | 06:59 PM

Foot And Mouth Disease : गांवों में इन दिनों पशुपालक सबसे ज्यादा जिस बीमारी से परेशान हैं, वह है खुरपका-मुंहपका रोग (FMD). यह बीमारी गाय-भैंसों में बहुत तेजी से फैलती है और दूध उत्पादन को आधा कर देती है. कई जगहों पर खबर है कि एक ही बाड़े में मौजूद सभी पशु इसकी चपेट में आ जाते हैं. ऐसे में विशेषज्ञ लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि इलाज नहीं, बल्कि सिर्फ टीकाकरण ही इस बीमारी से सुरक्षा दे सकता है.

कैसे फैलता है खुरपका रोग?

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, खुरपका रोग  एक खतरनाक वायरस से फैलता है, जो इतना छोटा होता है कि इसे सामान्य माइक्रोस्कोप से भी नहीं देखा जा सकता. भारत में इसके ए, ओ, सी और एशिया-1 प्रकार सबसे ज्यादा पाए जाते हैं. यही वायरस खुरों, मुंह और पैरों में छाले बनाता है और पशु को चलने-खाने में बेहद तकलीफ देता है. कई बार संक्रमित पशु का दूध कम हो जाता है या वह पूरी तरह बैठ जाता है.

लक्षण दिखें तो तुरंत सतर्क हो जाएं

पशु में तेज बुखार आना, पैरों में सूजन, खुरों के बीच दाने और फिर छाले बनना इस रोग के मुख्य लक्षण हैं. बीमारी बढ़ने पर घाव गहरे हो जाते हैं और मिट्टी-कीचड़ लगने से उनमें कीड़े पड़ने लगते हैं. गर्भवती पशुओं में गर्भपात  का खतरा बढ़ जाता है और कई मामलों में पशु की मौत भी हो जाती है. इसलिए शुरुआती लक्षण दिखते ही पशु को बाकी जानवरों से अलग कर देना जरूरी है.

टीकाकरण ही है सबसे बड़ा सुरक्षा कवच

2019 में शुरू किए गए राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण  कार्यक्रम के तहत हर पशु को छह-छह महीने के अंतराल पर FMD का टीका लगाया जाता है. टीका लगने के बाद पशु की जानकारी एक वैक्सीनेशन कार्ड और उनके कान में लगे टैग में दर्ज की जाती है. टीकाकरण करते समय कुछ खास सावधानियां बेहद जरूरी हैं-

  • वैक्सीन 2-8°C तापमान पर रखी जाए
  • बड़े पशुओं को 2 ml और छोटे पशुओं को 1 ml खुराक दी जाए
  • गर्दन के हिस्से में 16/18 गेज की डेढ़ इंच सुई से टीका लगाया जाए
  • 4 माह से कम उम्र या बीमार पशु को टीका  न लगाया जाए
  • टीका लगाने के बाद पशु के व्यवहार पर नजर रखना भी जरूरी है.

गांव में क्या करें पशुपालक? आसान घरेलू उपाय

टीकाकरण के बाद भी साफ-सफाई और देखभाल बहुत जरूरी है. प्रभावित पशुओं के पैरों को नीम या पीपल की छाल के काढ़े से धोना काफी फायदेमंद माना जाता है. कॉपर सल्फेट या फिनायल मिले पानी से पैर धोने पर घाव जल्दी भरते हैं और कीड़े नहीं पड़ते. मक्खी दूर रखने वाली मरहम भी लगाई जा सकती है. सबसे बड़ा नियम: बीमार पशु को स्वस्थ पशुओं से दूर रखें और पशुशाला की सफाई रोज करें.

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