गौवंश में लंपी वायरस का बढ़ रहा खतरा, पशुपालकों को तुरंत अपनाने होंगे ये देसी उपाय
गौवंश में लंपी वायरस का खतरा एक बार फिर बढ़ गया है और पशुपालन विभाग ने पशुपालकों को सावधानी बरतने की सलाह दी है. बीमारी मच्छर, मक्खी और संक्रमित पशुओं के संपर्क से फैलती है. समय से पहचान, साफ-सफाई, पौष्टिक आहार और टीकाकरण से इसे रोका जा सकता है. पशुपालकों को तुरंत सावधानी बरतनी चाहिए.
Lumpy Virus : सर्दी का मौसम आते ही गौवंश में लंपी वायरस का खतरा फिर बढ़ जाता है. पशुपालकों की थोड़ी–सी लापरवाही भी पूरे झुंड को बीमारी की चपेट में ला सकती है. यही वजह है कि पशुपालन विभाग ने समय रहते चेतावनी जारी की है और साफ कहा है कि इस बीमारी को रोकना मुश्किल नहीं है–बस कुछ सावधानियां और देसी उपाय अपनाने की जरूरत है. गांवों में ऐसे कई पशुपालक हैं जिन्होंने केवल स्वच्छता और नियमित देखभाल से अपने पशुओं को लंपी से बचाए रखा है. आइए आसान भाषा में समझते हैं कि यह बीमारी कैसे फैलती है और इससे बचाव के लिए क्या करना जरूरी है.
लंपी वायरस क्या है और कैसे फैलता है?
मीडया रिपोर्ट के अनुसार, लंपी स्किन डिजीज एक विषाणु जनित बीमारी है जो खास तौर पर गौवंश को प्रभावित करती है. यह बीमारी संक्रमित पशु के खून, लार, आंखों के पानी और घावों के माध्यम से फैलती है. मच्छर, मक्खी और चिपकने वाले कीड़े भी इसके बड़े वाहक हैं. अगर गौशाला में नमी, गंदगी या दूषित पानी है तो बीमारी का खतरा और बढ़ जाता है. जब पशु संक्रमित होता है तो उसे तेज बुखार, भूख में कमी, शरीर में दर्द और त्वचा पर कठोर गठानें होने लगती हैं. कई बार ये गठानें फूटकर घाव में बदल जाती हैं, जिससे पशु कमजोर हो जाता है.
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संक्रमण दिखे तो सबसे पहला कदम: अलग रखें बीमार पशु
जैसे ही किसी पशु में बीमारी के लक्षण दिखें, उसे तुरंत स्वस्थ पशुओं से अलग करना चाहिए. कई बार पशुपालक बीमारी को सामान्य बुखार समझकर नजरअंदाज़ कर देते हैं, जिसके कारण पूरी गौशाला में संक्रमण फैल जाता है. बीमार पशु को अलग रखने के बाद नजदीकी पशु चिकित्सक को जानकारी देकर इलाज शुरू कराना बहुत जरूरी है. शुरुआती इलाज से बीमारी गहराई तक नहीं जाती और पशु जल्दी ठीक होने लगता है. इसके अलावा गौशाला में मच्छर-मक्खी रोकने के उपाय भी तुरंत शुरू कर देना चाहिए.
साफ-सुथरी गौशाला ही सबसे बड़ी सुरक्षा
लंपी वायरस गंदगी में तेजी से फैलता है. इसलिए पशु आवास जितना साफ-सुथरा रहेगा, बीमारी का खतरा उतना ही कम होगा. गौशाला में रोज झाड़ू-पोंछा करें, नमी न रहने दें और समय-समय पर सफाई में ब्लीचिंग पाउडर या सोडियम हाईपोक्लोराइट का छिड़काव करें. यह संक्रमण पैदा करने वाले कीटाणुओं को खत्म करता है. मच्छर–मक्खी रोकने के लिए धुआं, नीम का पानी, गोमूत्र, या बाज़ार में मिलने वाले सुरक्षित स्प्रे का उपयोग किया जा सकता है. सूखा, हवादार और धूप वाला बाड़ा पशुओं को मजबूत बनाता है.
घाव दिखे तो करें नियमित देखभाल और देसी ट्रीटमेंट
अगर पशु की त्वचा पर घाव या गठानें हैं, तो उनकी रोज सफाई बेहद जरूरी है. घाव को साफ पानी से धोकर एंटीसेप्टिक लोशन लगाएं. देसी तौर पर कई पशुपालक हल्दी पानी, नीम का लेप या फिटकरी का घोल भी लगाते हैं, जिससे घाव जल्दी भरने लगता है. ध्यान रखें कि संक्रमित जगह पर मक्खी न बैठे, इसके लिए हल्का कपड़ा ढकना फायदेमंद रहता है. बीमार पशु को हल्का, संतुलित और पौष्टिक आहार दें-जैसे हरा चारा, गुड़ मिला दाना, खल व मिनरल मिक्सचर. अच्छी खुराक ही उसके शरीर को वायरस से लड़ने की ताकत देती है.
टीकाकरण है सबसे जरूरी– इसे कभी न छोड़ें
पशुपालन विभाग साफ कहता है कि टीकाकरण ही लंपी वायरस से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका है. स्वस्थ पशुओं का समय से टीकाकरण कराएं. गोटपॉक्स वैक्सीन और लंपी प्रोबैक वैक्सीन इस बीमारी के रोकथाम में कारगर मानी जाती हैं. वैक्सीन लगवाने से बीमारी का असर काफी कम हो जाता है और कई बार संक्रमण होने की संभावना ही खत्म हो जाती है. जिन पशुओं की रोग-प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है, उन्हें बीमारी की मार कम लगती है. इसलिए मिनरल मिक्सचर, विटामिन सप्लिमेंट और पौष्टिक आहार नियमित रूप से देना चाहिए.