गांव में रहने वाले किसान अगर खेती के साथ-साथ कोई और कमाई का जरिया ढूंढ रहे हैं तो भेड़-बकरी पालन एक अच्छा विकल्प हो सकता है. क्योंकि इसकी शुरुआत कम लागत में हो जाती है और फायदा दो गुना मिल सकता है. खास बात ये है कि इसके लिए बहुत ज्यादा पढ़ाई-लिखाई या टेक्निकल जानकारी की भी जरूरत नहीं होती. बस थोड़ी सी देखभाल और साफ-सफाई का ध्यान रखना होता है.
कम खर्च में शुरू करें बिजनेस
भेड़ और बकरी पालन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इनका पालन करने के लिए ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता. बकरियां और भेड़ें दोनों ही हरा चारा, सूखा चारा और खेतों की पत्तियां खाकर आसानी से पल जाती हैं. इन्हें शेड (छाया वाली जगह) में रखना होता है और हर दिन तीन बार चारा देना जरूरी होता है. अगर किसी किसान के पास थोड़ी जमीन है तो वो खुद से चारा भी उगा सकता है जिससे खर्च और कम हो जाएगा. इस तरह से देखा जाए तो एक ही शेड में बकरी- भेड़ पालन से कमाई बढ़ाई जा सकती है.
दूध, मांस और ऊन – तीनों से मुनाफा
बकरी पालन से किसान को दो तरीके से फायदा होता है – पहला दूध से और दूसरा मांस से. एक बकरी लगभग 5 महीने में बच्चा देने लायक हो जाती है और एक बार में 2 से 3 बच्चे दे सकती है. इन बच्चों को बड़ा करके अच्छे दाम में बेचा जा सकता है. वहीं भेड़ पालन करने पर मांस के साथ-साथ ऊन भी मिलता है. भेड़ की ऊन कपड़ा उद्योग में जाती है, जिससे हर साल किसानों को अच्छी कमाई हो सकती है.
कौन-कौन सी नस्लें पालें
भारत में कई तरह की भेड़ों की नस्लें पाई जाती हैं. इनमें मालपुरा, जैसलमेरी, मंडिया, मारवाड़ी, बीकानेरी और शहाबादी. ये नस्लें भारत के अलग-अलग इलाकों में पाई जाती हैं और इनके शरीर पर लंबे और नरम रोएं होते हैं, जिससे ज्यादा ऊन निकलती है. बात करें बकरियों कि तो इनमें बीटल, जमुनापरी और सिरोही जैसी नस्लें बहुत लोकप्रिय हैं.
सरकारी योजना और सहूलियतें
चूंकि भेड़-बकरी पालन को लघु उद्योग (MSME) के तहत रखा गया है, इसलिए इस पर सरकार की कई योजनाएं भी मिलती हैं. जैसे बाड़ा बनाने के लिए सब्सिडी, टीकाकरण और मुफ्त ट्रेनिंग की सुविधा. पशुपालन विभाग समय-समय पर जांच भी करता है और अगर कोई बीमारी होती है तो सरकारी डॉक्टर इलाज भी करते हैं. इसके अलावा, भेड़ और बकरी का गोबर भी खेतों में खाद के रूप में काम आता है.