स्वस्थ बच्चा और ज्यादा दूध चाहते हैं तो गर्भवती भैंस की सही देखभाल जरूरी, पशुपालकों के लिए टिप्स

गर्भवती भैंस को गर्भ के महीनों में ज्यादा पोषण, आराम और साफ-सुथरा वातावरण चाहिए. इस समय दी गई सही देखभाल से भैंस का दूध बढ़ता है और बछड़ा मजबूत पैदा होता है. किसान अगर आहार, पानी, सफाई और आराम का ध्यान रखें, तो पूरे डेयरी कारोबार पर इसका सीधा फायदा दिखता है.

Saurabh Sharma
नोएडा | Published: 23 Nov, 2025 | 01:27 PM

Buffalo Nutrition : गांवों में एक पुरानी कहावत है कि भैंस जितनी स्वस्थ, किसान की आमदनी उतनी पक्की. यही वजह है कि गर्भवती भैंस की देखभाल को डेयरी व्यवसाय की सबसे जरूरी कड़ी माना जाता है. सर्दी हो या गर्मी, गर्भ के दिनों में भैंस को सामान्य से ज्यादा पोषण, आराम और सफाई की जरूरत होती है. अगर इन महीनों में थोड़ी सी लापरवाही हो जाए तो इसका सीधा असर दूध की मात्रा और बछड़े की सेहत पर पड़ता है. यही कारण है कि आज किसान गर्भवती भैंस की देखभाल को लेकर पहले से ज्यादा जागरूक हो रहे हैं.

आहार में बदलाव क्यों जरूरी है?

मीडिया रिपोर्ट के अमुसार, जैसे ही भैंस गर्भवती  होती है, उसके शरीर पर दोहरी जिम्मेदारी आ जाती है कि एक खुद को स्वस्थ रखना और दूसरी गर्भ में पल रहे बछड़े को पोषण देना. ऐसे समय में उसे हल्का, पचने योग्य और पौष्टिक आहार चाहिए. दाने का संतुलित मिश्रण, हरा चारा, गेहूं का चोकर और थोड़ी मात्रा में गुड़ भैंस के शरीर को ऊर्जा देते हैं. गर्भ के अंतिम दिनों में कैल्शियम की कमी भैंस के लिए खतरनाक साबित हो सकती है, इसलिए डिलीवरी से कुछ समय पहले हल्के कैल्शियम का घोल देना फायदेमंद रहता है. प्रसव के बाद भी भैंस को ऐसा भोजन देना चाहिए जो जल्दी पच जाए और शरीर को ताकत दे. इसी वजह से किसान बरसों से चोकर, गुड़ और नरम हरे चारे का इस्तेमाल करते आ रहे हैं. यह आहार दूध उत्पादन  को भी तेजी से बढ़ाता है.

खुराक कम होने के बड़े खतरे

गर्भवती भैंस को अगर पूरा पोषण न मिले तो इसका नुकसान मां और बछड़े दोनों को उठाना पड़ सकता है. कमजोर बछड़ा जन्म लेना, दृष्टि सम्बंधी परेशानी, भैंस में मिल्क फीवर, गर्भाशय बाहर निकल आना, जेर रुक जाना और प्रसव के बाद दूध में भारी कमी- ये सभी समस्याएं सही आहार  न मिलने पर आम हैं. कई बार भैंस की बच्चेदानी में मवाद तक भर जाता है, जिससे वह भविष्य में गर्भधारण करने में असमर्थ भी हो सकती है. इसलिए किसान अक्सर कहते हैं- गर्भ के दिनों में भैंस का एक दाना भी कीमत से भरा होता है.

गर्भवती भैंस को कैसी जगह दें?

गर्भवती भैंस  को आरामदायक, सूखी और सुरक्षित जगह देना बेहद जरूरी है. गर्भ के आठवें महीने के बाद उसे दूसरे पशुओं से अलग रखना समझदारी है ताकि कोई धक्का या चोट न लगे. बाड़ा बिल्कुल फिसलन वाला न हो और जमीन पर मिट्टी या रेत की परत बिछी हो, जिससे भैंस आराम से बैठ-उठ सके. पीने के लिए हमेशा साफ और ताज़ा पानी उपलब्ध होना चाहिए. गर्भ के दिनों में भैंस को ठंडा पानी पिलाना बिल्कुल नहीं चाहिए, क्योंकि इससे प्रसव के दौरान दिक्कतें हो सकती हैं. बाड़े में अच्छी हवा और हल्की धूप का इंतजाम हो तो भैंस का शरीर पूरी तरह संतुलित रहता है.

गर्भ ठहरने की पहचान और आखिरी महीनों की खास देखभाल

आम तौर पर भैंस हर 21 दिन में हीट में आती है. अगर वह दोबारा हीट में न आए तो संभव है कि वह गर्भवती हो. इसकी पुष्टि हमेशा पशु चिकित्सक से करवाना चाहिए, क्योंकि शुरुआती पहचान होने पर देखभाल भी बेहतर ढंग से शुरू की जा सकती है. गर्भ के अंतिम तीन महीने में 8वां, 9वां और 10वां महीना सबसे संवेदनशील होते हैं. यही वह समय है जब भैंस को अधिक ऊर्जा, खनिज और आराम की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है.

अगर इन महीनों में आहार, आराम और सफाई का खास ध्यान रखा जाए तो बछड़ा मजबूत पैदा होता है और भैंस का दूध  भी पहले से ज्यादा और अच्छी क्वालिटी का मिलता है. गर्भवती भैंस की सही देखभाल किसान के भविष्य की कमाई की गारंटी होती है. थोड़ी सी सावधानी और सही समय पर सही आहार न सिर्फ बछड़े को स्वस्थ बनाते हैं, बल्कि भैंस को भी जल्दी रिकवर होने में मदद करते हैं. किसान यदि इन उपायों को चिकित्सकीय सलाह के साथ अपनाएं, तो डेयरी व्यवसाय लगातार फायदा देता रहेगा.

Get Latest   Farming Tips ,  Crop Updates ,  Government Schemes ,  Agri News ,  Market Rates ,  Weather Alerts ,  Equipment Reviews and  Organic Farming News  only on KisanIndia.in

भारत में सबसे पहले सेब का उत्पादन किस राज्य में शुरू हुआ.

Side Banner

भारत में सबसे पहले सेब का उत्पादन किस राज्य में शुरू हुआ.