भारत में भैंस पालन किसानों की आमदनी का एक बड़ा जरिया है. खासकर भैंसों से मिलने वाला दूध न सिर्फ ज्यादा होता है, बल्कि उसका भाव भी अच्छा मिलता है. यही कारण है कि किसान आज भी भैंसों को पालना प्राथमिकता देते हैं. लेकिन जब भैंस गर्भवती हो जाती है, तो उसकी देखभाल में लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए. गर्भवती भैंस की सही देखभाल से न केवल एक सेहतमंद बछड़ा पैदा होता है, बल्कि डिलीवरी के बाद भैंस ज्यादा दूध भी देती है. ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि गर्भवती भैंस की पहचान कैसे करें, क्या खिलाएं, क्या सावधानी बरतें और किन बातों का खास ख्याल रखें.
ऐसे पहचानें कि भैंस गर्भवती है या नहीं
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भैंस आमतौर पर हर 21 दिन में हीट (गरमी) में आती है. अगर आपकी भैंस हीट में नहीं आ रही है तो यह पहला संकेत हो सकता है कि वह गर्भवती है. हालांकि, पक्के तौर पर जानने के लिए पशु चिकित्सक से जांच जरूर करवाएं. गर्भ का शुरुआती पता लगाने में देरी न करें ताकि समय रहते भैंस को खास देखभाल मिल सके.
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गर्भवती भैंस को क्या खिलाना चाहिए
गर्भवती भैंस की सेहत और उसके गर्भ में पल रहे बछड़े की सही बढ़वार के लिए संतुलित और पौष्टिक आहार बहुत जरूरी है. भैंस को उसके वजन और दूध उत्पादन के हिसाब से दाने का संतुलित मिश्रण देना चाहिए. डिलीवरी से 15-20 दिन पहले डॉक्टर की सलाह अनुसार कैल्शियम का घोल देना शुरू करें. प्रसव के बाद पचने में आसान आहार दें, जैसे गेहूं का चोकर, गुड़ और हरा चारा. खास ध्यान रखें कि प्रसव के समय भैंस को ठंडा पानी न पिलाएं. सही खानपान भैंस को मजबूत बनाता है और डिलीवरी को आसान और सुरक्षित बनाता है.
सही खुराक नहीं दी तो हो सकते हैं ये नुकसान
अगर गर्भवती भैंस को सही मात्रा और पोषक तत्वों से भरपूर आहार नहीं मिला, तो कई गंभीर समस्याएं हो सकती हैं. सबसे पहले, बछड़ा कमजोर या दृष्टिहीन पैदा हो सकता है. भैंस को डिलीवरी के बाद मिल्क फीवर जैसी बीमारी हो सकती है, जिससे दूध आना बंद हो सकता है. गर्भाशय बाहर आ सकता है या जेर रुकने से संक्रमण और जान का खतरा बढ़ जाता है. बच्चेदानी में मवाद भर सकता है और दूध उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है. इसलिए भैंस के गर्भावस्था के दौरान आहार में कोई भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए.
रहने की जगह और सफाई का रखें ध्यान
गर्भवती भैंस के लिए बाड़ा आरामदायक, सुरक्षित और स्वच्छ होना बेहद जरूरी है. आठवें महीने के बाद भैंस को अन्य पशुओं से अलग रखें ताकि उसे कोई चोट न लगे. बाड़े की जमीन फिसलन भरी न हो, कच्ची मिट्टी या रेत की हो जो हमेशा सूखी रहे. बाड़ा हवादार हो और उसमें ताजे पानी की व्यवस्था हर समय बनी रहनी चाहिए. गर्मी और सर्दी दोनों से भैंस को बचाने के लिए मौसम के अनुसार बाड़े में बदलाव करते रहें. साफ-सुथरा, शांत और तनावमुक्त वातावरण भैंस की सेहत और उसके गर्भ में पल रहे बछड़े के लिए बेहद लाभकारी होता है.
गर्भ के आखिरी तीन महीने सबसे ज्यादा जरूरी
भैंस के गर्भावस्था का 8वां, 9वां और 10वां महीना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. इस समय बछड़ा तेजी से विकसित होता है, इसलिए भैंस को ज्यादा ऊर्जा और पोषक तत्वों की जरूरत होती है. उसे अधिक आराम दें और बार-बार उठने-बैठने से बचाएं ताकि शरीर पर दबाव न पड़े. पशु चिकित्सक से समय-समय पर जांच कराते रहें और डिलीवरी की तैयारी पहले से कर लें. जैसे ही बछड़ा जन्म ले, भैंस को गुनगुना पानी पिलाएं और उसे शांत माहौल में आराम करने दें. यदि इस समय देखभाल सही तरीके से की जाए, तो दूध उत्पादन भी अच्छा होता है और बछड़ा तंदरुस्त पैदा होता है.