अब तक आपने फिल्मों या किताबों में ही किसी जीव का क्लोन बनते देखा या पढ़ा होगा, लेकिन अब ये हकीकत बन चुकी है. किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक तकनीकें तेजी से काम कर रही हैं. इसी कड़ी में क्लोन टेक्नोलॉजी अब डेरी फार्मिंग के लिए गेम चेंजर साबित हो रही है. हाल ही में करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI) ने उत्तराखंड लाइव स्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड देहरादून के सहयोग से गिर नस्ल की गाय का सफल क्लोन तैयार किया है. इस तकनीक से अब अच्छी नस्ल की गायों की संख्या बढ़ाई जा सकेगी, जिससे दूध उत्पादन बढ़ेगा और किसानों को सीधा फायदा होगा.
क्या है क्लोन टेक्नोलॉजी?
क्लोन टेक्नोलॉजी (Clone Technology) एक ऐसी जैविक प्रक्रिया है जिसमें किसी एक जीव के डीएनए या कोशिका से हूबहू उसी जैसे दूसरे जीव का निर्माण किया जाता है. आसान भाषा में कहें तो जो जानवर क्लोनिंग से तैयार किया जाता है, वो बिल्कुल उसी जैसा होता है, जिसकी कोशिका से उसे बनाया गया है-मतलब उसकी नस्ल, दूध देने की क्षमता, शरीर की बनावट सब कुछ वैसा ही होता है. वैज्ञानिकों के अनुसार इस प्रक्रिया में करीब दो साल का वक्त लगा और कई बार मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा. पहले भैंसों की क्लोनिंग की गई थी, अब गायों की बारी आई है.
- पशुपालकों के लिए रोजगार का नया मौका, केवल दूध ही नहीं ऊंट के आंसुओं से भी होगी कमाई
- बरसात में खतरनाक बीमारी का कहर, नहीं कराया टीकाकरण तो खत्म हो जाएगा सब
- पशुपालक इन दवाओं का ना करें इस्तेमाल, नहीं तो देना पड़ सकता है भारी जुर्माना
- 2000 रुपये किलो बिकती है यह मछली, तालाब में करें पालन और पाएं भारी लाभ
गिर नस्ल की क्लोन बछिया बनी मिसाल
देश में पहली बार गिर नस्ल की क्लोन बछिया का जन्म हुआ. यह एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि मानी जा रही है. गिर नस्ल वैसे भी अपने ज्यादा दूध उत्पादन के लिए जानी जाती है, और अब उसी नस्ल को क्लोन करके तैयार किया गया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बछिया के बड़े होकर हर दिन करीब 15 लीटर तक दूध देने की क्षमता होगी. यानी किसानों को इस नस्ल से अच्छी आमदनी हो सकती है. फिलहाल वैज्ञानिक साहीवाल और रेड सिंधी जैसी दूसरी देसी नस्लों की क्लोनिंग पर भी काम कर रहे हैं.
कैसे होती है क्लोनिंग? आसान भाषा में समझिए
क्लोनिंग की प्रक्रिया में सबसे पहले गाय के शरीर से एक खास तरह की कोशिका (Somatic Cell) निकाली जाती है. फिर उस कोशिका को लैब में विकसित किया जाता है. इसके बाद एक अंडाणु को किसी अन्य गाय से निकाला जाता है और उसमें से डीएनए हटा दिया जाता है. फिर उस अंडाणु में पहले निकाली गई कोशिका को डाला जाता है और एक भ्रूण तैयार किया जाता है. यह भ्रूण लगभग एक हफ्ते तक लैब में रखा जाता है. फिर उसे एक सरोगेट गाय के गर्भ में डाला जाता है और लगभग 9 महीने बाद एक नए क्लोन बछड़े का जन्म होता है. यह प्रक्रिया काफी जटिल और मेहनत भरी होती है, लेकिन इससे उच्च गुणवत्ता वाले जानवर पैदा किए जा सकते हैं.
डेरी फार्मिंग को मिलेगा जबरदस्त फायदा
क्लोन टेक्नोलॉजी से सबसे बड़ा फायदा डेरी फार्मिंग को होगा. क्योंकि अच्छी नस्ल की गायें जो ज्यादा दूध देती हैं, उनकी संख्या बढ़ाई जा सकती है. इससे दूध उत्पादन बढ़ेगा और बाजार में मांग को पूरा करना आसान होगा. दूध बेचकर किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं. इसके अलावा, दूध से बनने वाले अन्य उत्पाद जैसे घी, पनीर, दही आदि से भी अच्छी कमाई की जा सकती है. मतलब एक गाय से कम से कम चार से पांच तरीकों से किसान को फायदा हो सकता है. अगर सरकार और डेरी यूनियन मिलकर इस तकनीक को आगे बढ़ाएं, तो देश में दूध उत्पादन के क्षेत्र में क्रांति आ सकती है.
भविष्य में किसानों के लिए बड़ी उम्मीद
इस तकनीक से भविष्य में किसानों की किस्मत बदल सकती है. खासकर वो किसान जो छोटे पैमाने पर डेरी फार्म चला रहे हैं, उनके लिए यह तकनीक किसी वरदान से कम नहीं होगी. अच्छी नस्ल की गाय मिलने से उनकी आमदनी बढ़ेगी और मवेशियों पर होने वाला खर्च भी घटेगा, क्योंकि क्लोनिंग से तैयार जानवर मजबूत और स्वस्थ होते हैं. इसके अलावा, अगर वैज्ञानिक साहीवाल और रेड सिंधी जैसी दूसरी देसी नस्लों की क्लोनिंग में भी सफल हो जाते हैं, तो देश की डेरी इंडस्ट्री में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा. साथ ही, देसी नस्लों को बचाने और बढ़ाने में यह तकनीक बेहद अहम साबित हो सकती है.