बारिश में दाना बन जाता है जहर! मुर्गियों को खा रही है ये बीमारी, संभले नहीं तो बर्बादी तय

बरसात के मौसम में पोल्ट्री दाना नमी के कारण फफूंदग्रस्त हो जाता है, जिससे माइकोटॉक्सिकोसिस नाम की बीमारी फैलती है. इस बीमारी का अगर समय पर इलाज न हो तो भारी नुकसान हो सकता है.

धीरज पांडेय
नोएडा | Published: 16 Jul, 2025 | 07:00 PM

बारिश का मौसम एक तरफ जहां हरियाली लेकर आता है, वहीं, दूसरी ओर पोल्ट्री पालकों के लिए खतरे की घंटी भी बजा देता है. इस मौसम में मुर्गियों के दाने में नमी आ जाती है, जिससे उसमें फफूंद पनपने लगती है. यही फफूंद धीरे- धीरे जहर बनकर मुर्गियों की सेहत पर हमला करती है. इस बिमारी को माइकोटॉक्सिकोसिस कहा जाता है. अगर समय रहते सतर्कता न बरती गई तो मुर्गियां मरने लगती हैं, अंडे देना बंद कर देती हैं और पोल्ट्री फार्म को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि इस बीमारी के लक्षण, कारण और रोकथाम के सही तरीके क्या है?

बीमारी फैलने की वजह?

होता ये है कि बारिश के दौरान  दाने में नमी बढ़ जाती है, जिससे उसमें माइकोटॉक्सिन नामक जहरीले पदार्थ बनने लगते हैं. ये ऐसे सूक्ष्म जहरीले तत्व होते हैं जो दाने में मौजूद फफूंद से पैदा होते हैं. यही वजह है कि अफ्लाटॉक्सिन, टी-2 टॉक्सिन और जेरलेनॉन जैसे माइकोटॉक्सिन मुर्गियों की मौत का बड़ा कारण बनते हैं. ये न सिर्फ शरीर को अंदर से नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि अंडा उत्पादन घटाते हैं. इससे मुर्गियों का वजन गिराते हैं और धीरे-धीरे पूरी फार्म को नुकसान पहुंचाते हैं.

ये लक्षण दिखे तो हो जाइए सतर्क

मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बारिश के मौसम में माइकोटॉक्सिकोसिस नाम की बीमारी मुर्गियों को तेजी से प्रभावित करती है. शुरुआती लक्षण की बात करें तो इस रोग के होने से मुर्गियां कमजोर दिखने लगती हैं, उनका खाना-पीना कम हो जाता है और अंडा देना भी घट जाता है. कई बार ये बदलाव मामूली लगते हैं, लेकिन समय पर ध्यान न दिया जाए तो धीरे-धीरे मुर्गियों की मौत शुरू हो सकती है. यह बीमारी दाने में फफूंद से बने जहरीले टॉक्सिन के कारण होती है. अगर लक्षण नजर आएं तो तुरंत सावधानी बरतनी चाहिए, नहीं तो पोल्ट्री फार्म को बड़ा नुकसान हो सकता है

वहीं, माइकोटॉक्सिकोसिस की पुष्टि के लिए पोस्टमार्टम में कुछ साफ संकेत मिलते हैं. मरी हुई मुर्गियों के लिवर का आकार सामान्य से बड़ा होता है और किडनी में सूजन देखी जाती है. इसके अलावा गिजार्ड और प्रोवेन्ट्रिकुलस (पाचन अंगों) में लाल रंग के धब्बे दिखते हैं. सबसे अहम बात यह है कि गिर्जा की झिल्ली बेहद कमजोर हो जाती है और आसानी से अलग हो जाती है. ऐसे मामलों में इलाज से पहले दाना बदलना और टॉक्सिन बाइंडर देना जरूरी होता है. साथ ही, पोल्ट्री विशेषज्ञ की सलाह से इलाज कराना भी बेहद जरूरी है.

रोकथाम के लिए जरूरी उपाय

अगर पोल्ट्री पालक कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखें तो इस बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है. रोकथाम के लिए हमेशा सूखा, ताजा और फफूंद रहित दाना इस्तेमाल करें. इसके अलावा दाने का भंडारण सूखी और हवादार जगह पर करें, ताकि नमी न लगे. वहीं, बारिश के मौसम में दाने में टॉक्सिन बाइंडर (Toxin Binder) जरूर मिलाएं. इससे जहरीले तत्व निष्क्रिय हो जाते हैं. सबसे अहम बात यह है कि अगर मुर्गियों में लक्षण दिखें तो तुरंत पोल्ट्री विशेषज्ञ से सलाह लें और समय रहते ही इलाज शुरू कर दें. इससे

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Published: 16 Jul, 2025 | 07:00 PM

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