गाय-भैंस की तबीयत बिगड़ती है, लेकिन न कोई शोर होता है, न कोई साफ लक्षण दिखते हैं और जब तक पशुपालक कुछ समझ पाए, गर्भवती गाय-भैंस का बछड़ा गिर जाता है. उधर वही जानवर संभालने वाला किसान भी बुखार से तपने लगता है. ये बीमारी ना दिखाई देती है, ना जल्दी पकड़ में आती है. लेकिन असर इतना गहरा कि जानवरों से इंसानों तक सबको अपनी चपेट में ले लेती है. वो भी चुपचाप और खतरनाक अंदाज में. इस बिमारी का नाम है ब्रुसिल्लोसिस.
ब्रुसिल्लोसिस एक तरह के सूक्ष्म जीवाणु (बैक्टीरिया) से फैलती है. ये गाय और भैंस में गर्भपात करा देती है और इंसानों को तेज बुखार दे देती है, जो कभी कम तो कभी बहुत ज्यादा होता है. इसे आम भाषा में उतार-चढ़ाव वाला बुखार कहा जाता है. देखा जाए तो ये बीमारी एक जानवर से दूसरे जानवर में और फिर इंसान तक भी पहुंच सकती है. इस बिमारी की सबसे बड़ी परेशानी ये है कि बीमारी की शुरुआत में कोई साफ लक्षण नहीं दिखते और जब तक किसी के समझ में आता है, तब तक बहुत नुकसान हो चुका होता है.
ब्रुसिल्लोसिस की पहचान कैसे करें?
हिमाचल प्रदेश के पशुपालन विभाग के मुताबिक गाभिन गाय या भैंस के अंतिम त्रैमास (तीन महीनों) में अचानक गर्भपात हो जाना इस बीमारी का प्रमुख संकेत है. गर्भपात से कुछ दिन पहले पशु की प्रजनन अंग से गाढ़ा, अपारदर्शी पदार्थ निकलता है. गर्भपात के बाद कई बार जेर (प्लेसेंटा) भी नहीं गिरती, जिससे पशु को अंदरूनी संक्रमण का खतरा और बढ़ जाता है. इसके अलावा कुछ पशुओं में जोड़ों में सूजन (आर्थ्राइटिस) और चलने-फिरने में परेशानी भी देखी जा सकती है.
वहीं, इंसानों की बात करें तो यह रोग संक्रमित पशुओं के संपर्क में आने से इंसानों को भी हो सकता है. खासकर पशुपालक, दूध निकालने वाले या गर्भपात संभालने वाले लोग इसकी चपेट में आते हैं. इंसानों में यह उतार-चढ़ाव वाला बुखार, शरीर में थकान, मांसपेशियों में दर्द और पसीना लाने जैसी तकलीफें देता है.
रोकथाम ही है सबसे बड़ा बचाव
अब तक इस रोग का कोई सटीक इलाज उपलब्ध नहीं है. यही वजह है कि रोकथाम ही इसका सबसे बेहतर उपाय माना जाता है. अगर किसी क्षेत्र में इस बीमारी के 5 फीसदी से ज्यादा मामले सामने आते हैं तो 3 से 6 महीने की बछियों को ब्रुसेल्ला अबोर्टस स्ट्रेन-19 टीका लगाया जाना चाहिए. क्योंकि यह टीका इस बीमारी के संक्रमण को फैलने से रोकने में मदद करता है.
सतर्कता ही सबसे असरदार हथियार
- संक्रमित पशुओं को अलग रखें.
- प्रजनन के लिए कृत्रिम गर्भाधान (A.I.) की प्रक्रिया अपनाएं.
- पशुपालक पशु की साफ-सफाई, खून, गर्भपात का फ्लूइड आदि से सीधे संपर्क से बचें.
- दूध उबाल कर ही इस्तेमाल करें, कच्चा दूध संक्रमण फैला सकता है.
क्योंकि यह बीमारी धीरे-धीरे पूरे पशुधन को प्रभावित कर सकती है. इससे आर्थिक नुकसान तो होता ही है, इंसानों की सेहत भी खतरे में पड़ जाती है. इसलिए इस बीमारी को हल्के में न लें. अगर आपके पशु में यह लक्षण दिखें तो तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सक से संपर्क करें.