राष्ट्रीय गोकुल मिशन: दुग्ध उत्पादन में आई क्रांति, नस्लों में भी सुधार, बदल रही है ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तस्वीर

गोकुल मिशन के जरिए सरकार ने देशी गोजातीय नस्लों को संरक्षित करने और उनकी गुणवत्ता सुधारने के लिए बड़े कदम उठाए हैं.

Saurabh Sharma
नोएडा | Published: 4 Aug, 2025 | 12:54 PM

भारत सरकार लगातार देश के किसानों और पशुपालकों की मदद के लिए नई योजनाएं ला रही है. इन्हीं में से एक है राष्ट्रीय गोकुल मिशन, जिसकी शुरुआत दिसंबर 2014 में की गई थी. इसका मुख्य उद्देश्य देशी गायों की नस्लों का संरक्षण करना और दूध उत्पादन को बढ़ाना है. इस मिशन को देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू किया गया है.

देशी नस्लों का संरक्षण और विकास

गोकुल मिशन के जरिए सरकार ने देशी गोजातीय नस्लों को संरक्षित करने और उनकी गुणवत्ता सुधारने के लिए बड़े कदम उठाए हैं. इस मिशन में कृत्रिम गर्भाधान, उन्नत नस्लों का विकास, और पशु स्वास्थ्य सेवाएं जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं. इससे गायों की सेहत बेहतर हुई है और उनकी उत्पादकता में भी सुधार आया है.

दूध उत्पादन में बड़ा इजाफा

गोकुल मिशन के लागू होने से देश में दूध उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है. पिछले 10 सालों में करीब 26.34% की बढ़ोतरी हुई है. इससे किसानों की आमदनी भी बढ़ी है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली है. सरकार ने इस मिशन के लिए 3400 करोड़ रुपयेे का बजट तय किया है.

दुग्ध उत्पादन में बढ़ोत्तरी

इस मिशन का मुख्य उद्देश्य कृत्रिम गर्भाधान, IVF, MOET और जीनोमिक चयन जैसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके पशुओं की नस्लों में सुधार किया जा रहा है. हालांकि, इस प्रयास के जरिए देशभर में गोजातीय पशुओं की नस्लों की वैश्विक पहचान को भी बढ़ावा मिल रहा है. उत्पादन में तुलना की बात की जाए, तो पशुपालन और डेयरी विभाग का रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2014-15 में जहां पशु दुग्ध उत्पादन 1640 किलो था, जो साल 2023-24 में बढ़कर 2072 किलो हो गया.

दूध देने की क्षमता में सुधार

देशी और बिना नस्ल बताए गए (गैर-वर्णित) गाय-बैलों से पहले साल में औसतन 927 किलो दूध मिलता था. जो मिशन के शुरू होने के बाद से बढ़कर 1292 किलो हो गया है, यानी दूध देने की क्षमता में करीब 39 फीसदी की बढ़ोतरी सामने आई है. वहीं, भैंसों की दूध देने की क्षमता पहले से काफी बढ़ी है जो पहले 1880 किलो दूध से बढ़कर  2161 किलो हो गई है, इसमें लगभग 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

साल 2030 तक का लक्ष्य

देश का कुल दूध उत्पादन 146.31 मिलियन टन से बढ़कर 239.30 मिलियन टन हो गया, इस तरह से इस क्षेत्र में लगभग 63.55 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. विश्व स्तर पर देखा जाए, तो किसी भी देश में इस तरह की वृद्धि सबसे तेज मानी जा रही है. यही नहीं इस मिशन का लक्ष्य साल 2030 तक प्रति पशु प्रति वर्ष दुग्ध उत्पादन की क्षमता को 3000 किलो तक बढ़ाना है.

गोकुल मिशन के मुख्य काम और उपलब्धियां

  • कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम  

गांवों में जहां गायों और भैंसों को कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा कम मिलती थी , वहां खास अभियान चलाकर इसे बढ़ाया गया. इस तकनीक में बिना बैल के गाय को गर्भवती करना होता है.इस प्रयास से काफी किसानों को फायदा मिला है, जिसमें आमदनी बढ़ने, देसी नस्लों के मजबूत होने और महिलाओं को रोजगार मिलने जैसे लाभ शामिल हैं. अब तक  9.16 करोड़ पशुओं को कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम के जरिए सुविधा दी गई है.  इसमें 14.12 करोड़ बार कृत्रिम गर्भाधान किया गया है, जिससे 5.54 करोड़ किसानों को लाभ मिला है.

  • अच्छे नस्ल वाले सांडों का उत्पादन

 देशी गायों की नस्लों की बात करें, तो गिर, साहीवाल, थारपारकर, हरियाणा, राठी जैसी नस्लों के 4343 अच्छे नस्ल वाले सांड तैयार किए गए हैं. ये सांड वीर्य उत्पादन केंद्रों को दिए गए हैं ताकि अच्छी नस्ल के बच्चे पैदा किए जा सकें. इसके जरिए सभी उच्च आनुवंशिक गुणवत्ता वाले सांडों का उत्पादन किया गया है.

  • IVF और लिंग-विभेदित वीर्य का इस्तेमाल

 इन तकनीकों का इस्तेमाल गायों की नस्ल को जल्दी और बेहतर बनाने के लिए किया जा रहा है. IVF (कृत्रिम गर्भधारण) और लिंग चयन तकनीक का इस्तेमाल करके अच्छी नस्ल की गायें पैदा होती हैं. इस तकनीक का उद्देश्य है कि देशी नस्लों में तेजी से सुधार लाया जा सके.

  • जीनोमिक चयन और तकनीशियन का प्रशिक्षण

गायों की नस्ल सुधार को और तेज करने के लिए जीनोमिक तकनीक अपनाई गई है. इससे यह पता चलता है कि कौन-सी गाय या सांड बेहतर नस्ल के हैं. साथ ही तकनीशियन का प्रशिक्षण के जरिए 38,736 लोगों को इन सभी तकनीकों के बारे में प्रशिक्षित किया गया है, जो कि गांवों में घर-घर जाकर पशुओं को सेवा देने के लिए ये लोग अब किसानों की मदद कर रहे हैं.

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