सेब-खुबानी के बाद लेह बेरी को मिलेगा राष्ट्रीय बाजार, NDDB ने बनाई बड़ी योजना

अब तक लद्दाख के कई किसान और महिला स्वयं सहायता समूह लेह बेरी को जंगलों से इकट्ठा करके स्थानीय या अनौपचारिक बाजारों में बेचते थे. बाजार की स्पष्ट व्यवस्था न होने के कारण उन्हें उनकी मेहनत का पूरा मूल्य नहीं मिल पाता था. जबकि ऑनलाइन बाजार में सूखे सी-बकथोर्न की कीमत सैकड़ों रुपये प्रति 100 ग्राम तक देखी जाती है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 27 Dec, 2025 | 10:47 AM
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Leh Berry: हिमालय की ऊंची वादियों में उगने वाला लद्दाख का खास फल अब देशभर में पहचान बनाने की तैयारी में है. सेब और खुबानी की सफल खरीद और बेहतर बाजार मिलने के बाद अब राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड यानी NDDB ने एक और बड़े कदम की रूपरेखा तैयार कर ली है. इस बार बारी है विटामिन-सी से भरपूर सी-बकथोर्न, जिसे आम बोलचाल में लेह बेरी कहा जाता है. इस योजना से लद्दाख और कारगिल के किसानों को न सिर्फ स्थायी बाजार मिलेगा, बल्कि उनकी आय बढ़ने की भी पूरी संभावना है.

सेब-खुबानी के बाद अब लेह बेरी पर फोकस

पिछले कुछ वर्षों में NDDB और मदर डेयरी ने लद्दाख के सेब और खुबानी को संगठित बाजार से जोड़ा. इसके अच्छे नतीजे सामने आए. किसानों को समय पर भुगतान मिला और उनकी उपज देश के बड़े शहरों तक पहुंची. इसी सफलता को आगे बढ़ाते हुए अब NDDB लेह बेरी को भी इसी मॉडल पर बाजार में लाने की तैयारी कर रहा है. योजना के अनुसार, यह फल सीधे लद्दाख और कारगिल के बागवानों से खरीदा जाएगा और मदर डेयरी की सहायक कंपनी ‘सफल’ के बिक्री नेटवर्क के जरिए उपभोक्ताओं तक पहुंचेगा.

विटामिन-सी और औषधीय गुणों का खजाना

लेह बेरी को सुपरफूड माना जाता है. इसमें विटामिन-सी की मात्रा कई सामान्य फलों से कहीं ज्यादा होती है. इसके अलावा इसमें ओमेगा फैटी एसिड, खासतौर पर दुर्लभ ओमेगा-7, और भरपूर एंटी-ऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं. इन्हीं गुणों के कारण इसका इस्तेमाल जूस, हेल्थ सप्लीमेंट, आयुर्वेदिक दवाओं, तेल और कॉस्मेटिक उत्पादों में किया जाता है. भारत में सी-बकथोर्न का करीब 70 प्रतिशत उत्पादन लद्दाख क्षेत्र में होता है, जिससे इसकी व्यावसायिक संभावना और भी मजबूत हो जाती है.

किसानों को अब मिलेगा सही दाम

अब तक लद्दाख के कई किसान और महिला स्वयं सहायता समूह लेह बेरी को जंगलों से इकट्ठा करके स्थानीय या अनौपचारिक बाजारों में बेचते थे. बाजार की स्पष्ट व्यवस्था न होने के कारण उन्हें उनकी मेहनत का पूरा मूल्य नहीं मिल पाता था. जबकि ऑनलाइन बाजार में सूखे सी-बकथोर्न की कीमत सैकड़ों रुपये प्रति 100 ग्राम तक देखी जाती है. NDDB की नई पहल का मकसद इसी अंतर को खत्म करना है, ताकि किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम मिल सके.

सहकारी मॉडल से बदलेगी तस्वीर

इस योजना को जमीन पर उतारने के लिए सहकारी मॉडल अपनाया जा रहा है. मदर डेयरी और लद्दाख के स्थानीय किसान संगठनों के बीच पहले ही समझौते हो चुके हैं. इससे खरीद, गुणवत्ता जांच, प्रोसेसिंग और बिक्री की पूरी श्रृंखला पारदर्शी बनेगी. किसानों को यह भरोसा मिलेगा कि उनकी उपज तय मात्रा में खरीदी जाएगी और भुगतान समय पर होगा.

पहले ही दिख चुके हैं सकारात्मक नतीजे

सेब और खुबानी के आंकड़े इस मॉडल की सफलता को साफ दिखाते हैं. हाल के वर्षों में लद्दाख से खुबानी और सेब की खरीद में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है. इससे किसानों का आत्मविश्वास बढ़ा है और वे नई फसलों पर भी ध्यान देने लगे हैं. अब लेह बेरी के जुड़ने से यह उम्मीद और मजबूत हो गई है कि लद्दाख के बागवानों की आमदनी में बड़ा सुधार आएगा.

लद्दाख की अर्थव्यवस्था को मिलेगा नया सहारा

लेह बेरी को संगठित बाजार मिलने से सिर्फ किसानों को ही फायदा नहीं होगा, बल्कि इससे स्थानीय रोजगार, महिला समूहों की भागीदारी और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी. विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहल लद्दाख के लिए टिकाऊ कृषि और मूल्यवर्धन की दिशा में एक अहम कदम साबित हो सकती है.

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