गांवों की खुशहाली और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए पशुपालन एक अहम भूमिका निभाता है. पशुपालकों की आय बढ़ाने, पशु स्वास्थ्य को बेहतर करने और ग्रामीण परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पशुपालन विभाग कांगड़ा में लगातार नई योजनाएं लागू कर रहा है. विभाग की योजनाओं से जहां एक ओर रोजगार के नए रास्ते खुल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर किसानों और पशुपालकों को आर्थिक सुरक्षा भी मिल रही है. आइए जानते हैं कि किस तरह ये योजनाएं गांवों में बदलाव ला रही हैं.
पशुपालकों को आर्थिक सुरक्षा दे रही है बीमा योजना
ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर बीमारी या दुर्घटना की वजह से दुधारू पशुओं की मृत्यु हो जाती है, जिससे पशुपालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. इसी को देखते हुए पशुपालन विभाग ने दुधारू पशु बीमा योजना लागू की है. इस योजना के तहत पात्र पशुपालकों को 50 प्रतिशत अनुदान पर बीमा सुविधा दी जाती है. यानी यदि कोई पशु बीमार होकर मर जाता है तो बीमा की मदद से नुकसान की भरपाई हो जाती है. अब तक जिले में 5048 दुधारू पशुओं का बीमा किया जा चुका है. इस योजना से पशुपालकों को न सिर्फ आर्थिक राहत मिलती है बल्कि उन्हें आत्मविश्वास भी मिलता है कि किसी आपदा में वे अकेले नहीं हैं.
हिम कुक्कुट पालन योजना से मिल रहा रोजगार और पोषण
हिम कुक्कुट पालन योजना ग्रामीण परिवारों के लिए रोज़गार और पोषण का बेहतरीन साधन बनती जा रही है. इस योजना के तहत पात्र लाभार्थियों को 60 प्रतिशत अनुदान पर 3,000 चूजे दिए जाते हैं. चूजे पालन कर ग्रामीण परिवार अच्छी आमदनी कर सकते हैं, साथ ही घर में अंडे और मांस से पोषण भी सुनिश्चित होता है. वर्ष 2023-24 में 72,000 चूजों का वितरण किया गया और 27 लाभार्थियों को इसका सीधा लाभ मिला. यह योजना खासकर महिलाओं और छोटे किसानों के लिए बड़ा सहारा बन रही है, जो कम खर्च में अच्छी कमाई करना चाहते हैं.
बीमारियों से बचाने के लिए चलाया गया बड़ा टीकाकरण अभियान
गांवों में पशुओं की मौत का एक बड़ा कारण बीमारियां होती हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए पशुपालन विभाग ने बड़े स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाया है.
- अब तक 2,31,340 बड़े पशुओं और 1,66,692 छोटे पशुओं को मुंह-खुर रोग से बचाव के टीके लगाए गए हैं.
- 1,72,500 बकरियों को गलघोटू रोग से बचाने के लिए टीका लगाया गया.
- लम्पी त्वचा रोग से बचाव के लिए 35,000 पशुओं को सुरक्षा कवच दिया गया.
इस अभियान से पशुओं की मौत कम हुई है और उनकी उत्पादकता बढ़ी है, जिससे पशुपालकों की आमदनी में भी इजाफा हुआ है.
मेढ़ा वितरण योजना से मिल रही नस्ल सुधार की ताकत
अच्छे नस्ल के पशु ही ज्यादा दूध या उत्पादन दे सकते हैं. इसलिए विभाग ने 60 प्रतिशत अनुदान पर मेढ़ा वितरण योजना भी शुरू की है. इस योजना के तहत 30 लाभार्थियों को 30 मेढ़े दिए गए हैं. इससे बकरियों की नस्ल में सुधार होगा और आने वाले समय में उत्पादन भी बढ़ेगा. यह योजना छोटे पशुपालकों के लिए बहुत फायदेमंद है, क्योंकि वे बिना ज्यादा निवेश किए अपने पशुधन की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं.
सहकारी समितियों से मिल रहा बेहतर बाजार और आत्मनिर्भरता
पशुपालकों को एकजुट कर बाजार से जोड़ने के लिए दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियां बनाई गई हैं. अभी तक कांगड़ा जिले में 50 समितियों का गठन किया जा चुका है. इन समितियों के माध्यम से दूध और अन्य उत्पादों को सही कीमत पर बाजार में बेचा जा रहा है. इससे न केवल किसानों को उचित दाम मिल रहे हैं, बल्कि वे समूह में काम करके आत्मनिर्भर और संगठित भी बन रहे हैं. साथ ही, सरकारी योजनाओं का लाभ भी उन्हें आसानी से मिल रहा है.