पशुओं में टीबी जैसे खतरनाक रोग का अटैक, समय पर इलाज जरूरी.. नहीं तो जिंदगी खो सकता है पशु

पशुओं में तेजी से फैल रहा क्षय रोग अब किसानों के लिए चिंता बढ़ा रहा है. यह टीबी जैसा रोग दूध उत्पादन घटाने के साथ पशु के स्वास्थ्य को भी कमजोर कर देता है. समय पर पहचान, सावधानी और सही देखभाल से इस बीमारी पर काफी हद तक रोक लगाई जा सकती है. किसानों को सतर्क रहने की जरूरत है.

नोएडा | Updated On: 15 Nov, 2025 | 07:24 PM

Cattle Disease : भारत में पशुपालन लंबे समय से किसानों की आय का मजबूत आधार रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में पशुओं में बढ़ते रोगों ने दूध उत्पादन और पशु स्वास्थ्य दोनों को प्रभावित किया है. खासकर क्षय रोग यानी टीबी, जो चुपचाप जानवरों को कमजोर करता है और कई बार इंसानों तक भी पहुंच जाता है. कई पशुपालक इसे सामान्य कमजोरी या खांसी-बुखार समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन यह बीमारी समय पर पहचान न होने पर बड़े नुकसान का कारण बन सकती है. यही वजह है कि आज हम इस गंभीर रोग से जुड़ी हर जरूरी जानकारी आपको आसान भाषा में देने जा रहे हैं.

क्षय रोग क्या होता है और यह कितना खतरनाक है?

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, क्षय रोग यानी टीबी, पशुओं में होने वाली एक खतरनाक बीमारी है, जो उनके फेफड़ों और शरीर के दूसरे मुख्य अंगों पर गहरा असर डालती है. यह बीमारी धीरेधीरे अंदरूनी रूप से शरीर को कमजोर करती है, जिसकी वजह से पशु का वजन गिरने लगता है और दूध उत्पादन  कम हो जाता है. सबसे बड़ी चिंता यह है कि यह बीमारी पशुओं से इंसानों में भी फैल सकती है, इसलिए इसे जूनोटिक रोग कहा जाता है. इस वजह से समय पर पहचान और इलाज बेहद जरूरी है, वरना यह बीमारी लंबे समय तक बनी रह सकती है.

यह बीमारी कैसे फैलती है और किन पशुओं में ज्यादा होती है?

क्षय रोग  का मुख्य कारण एक खास प्रकार का जीवाणु है, जिसे माइक्रोबैक्टेरियम बोविस कहा जाता है. यह जीवाणु संक्रमित पशु की सांस, खांसी, दूध, पानी और चारे से दूसरे स्वस्थ पशुओं तक पहुंच जाता है. खासकर वे जानवर जो एक ही जगह पर साथ रहते हैं और एक ही चारा-पानी इस्तेमाल करते हैं, उनमें यह बीमारी तेजी से फैलती है. यह रोग गाय और भैंस में सबसे अधिक पाया जाता है, लेकिन घोड़े, खच्चर, बकरी, बिल्ली और कई जंगली जानवर भी इससे प्रभावित हो सकते हैं. यही कारण है कि पशुपालकों को अपने पूरे पशु समूह की नियमित जांच करानी चाहिए.

बीमारी के शुरुआती लक्षण जिन्हें समझना बेहद जरूरी है

क्षय रोग की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि इसके शुरुआती लक्षण सामान्य बीमारियों जैसे दिखते हैं. शुरुआत में पशु खाना कम  करने लगता है, शरीर कमजोर दिखने लगता है और सूखी खांसी आने लगती है. धीरे-धीरे उसकी हड्डियां साफ दिखने लगती हैं और वजन लगातार कम होने लगता है. कई बार पशु को सांस लेने में दिक्कत होती है और वह जल्दी थक जाता है. बीमारी बढ़ने पर शरीर के अंदर छोटे-छोटे गांठ बनने लगते हैं, जिन्हें देखने पर इन्हें मोती जैसे उभार लगते हैं. इस वजह से इस रोग को पर्ल्स डिजीज भी कहा जाता है. अगर ये लक्षण दिखें तो तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.

क्षय रोग की पहचान कैसे होती है और टेस्ट कितने जरूरी हैं?

इस बीमारी का सबसे विश्वसनीय तरीका है ट्यूबरक्युलिन टेस्ट, जिसमें पशु की गर्दन पर एक हल्का इंजेक्शन लगाया जाता है. इंजेक्शन लगाने के बाद 72 घंटे के भीतर उसकी त्वचा की मोटाई  मापी जाती है. अगर मोटाई सामान्य से ज्यादा पाई जाए, तो यह बीमारी का स्पष्ट संकेत होता है. कई किसान इस टेस्ट को जरूरी नहीं मानते, लेकिन पशु खरीदने या बेचने से पहले यह जांच करना बेहद अहम है, ताकि संक्रमित पशु बाकी समूह को बीमार न कर सके. यह टेस्ट बीमारी के शुरुआती चरण में पहचान करने में बहुत मददगार होता है.

समय रहते ध्यान दें तो बच सकता है नुकसान

अगर पशु में क्षय रोग की पुष्टि हो जाए, तो इलाज हमेशा पशु चिकित्सक  की निगरानी में ही करना चाहिए. एंटीबायोटिक्स का सही कोर्स और समय पर दवा बेहद महत्वपूर्ण है. साथ ही, संक्रमित पशु  को बाकी जानवरों से अलग रखना चाहिए ताकि बीमारी आगे न फैले. उनके रहने की जगह और बर्तन अच्छी तरह साफ करने चाहिए. बीमार पशु के गोबर, चारा या उपयोग की गई चीजों को जला देना या गहरे गड्ढे में दबाना बेहतर होता है, ताकि संक्रमण का खतरा खत्म हो सके. नए पशु खरीदते समय ट्यूबरक्युलिन टेस्ट करवाना और पशुशाला में साफ-सफाई बनाए रखना बीमारी रोकने के सबसे सरल उपाय हैं.

Published: 15 Nov, 2025 | 07:42 PM

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