बकरी पालन भारत के करोड़ों किसानों के लिए सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि रोजी-रोटी और आमदनी का मजबूत जरिया है. खासकर ग्रामीण इलाकों में यह एक सस्ता, टिकाऊ और फायदेमंद व्यवसाय बनता जा रहा है. लेकिन परंपरागत नस्लों की सीमित उत्पादन क्षमता, कम प्रतिरोधकता और धीमी ग्रोथ के कारण किसान अक्सर नुकसान में रहते हैं. ऐसे समय में सम्राट और सोनपरी जैसी नई बकरी नस्लें उम्मीद की नई किरण बनकर उभरी हैं. वैज्ञानिकों और किसानों की संयुक्त मेहनत से तैयार ये नस्लें अब न सिर्फ ज्यादा दूध और मांस देती हैं, बल्कि तेजी से प्रजनन कर किसानों की कमाई भी बढ़ा रही हैं.
सम्राट नस्ल- नाम भी बड़ा, काम भी दमदार
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सम्राट नस्ल को वैज्ञानिकों और बुंदेलखंड क्षेत्र के किसानों ने मिलकर विकसित किया है. इसकी सबसे बड़ी खासियत है- इसका भारी वजन और ज्यादा बच्चों को जन्म देने की क्षमता. इस बकरी का औसत वजन 50 किलो से भी ज्यादा होता है. सामान्य बकरी के मुकाबले ये काफी भारी होती है, जिससे मांस उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है. साथ ही, यह नस्ल साल में दो बार बच्चों को जन्म देती है- यानी कम समय में दोगुनी कमाई.
सम्राट नस्ल की खास बातें जो बनाएं इसे अलग
- वजन:- एक वयस्क सम्राट बकरी 50 किलो से ज्यादा की हो सकती है.
- प्रजनन क्षमता:- यह नस्ल हर 6 महीने में बच्चों को जन्म देती है.
- बच्चों की जीवित रहने की दर:- 80 पीसदी से अधिक, यानी मरने का खतरा बेहद कम.
- शुरुआती वजन:- इसके बच्चों का जन्म के समय वजन भी ज्यादा होता है, जिससे उनकी ग्रोथ तेज होती है.
इन खूबियों के कारण सम्राट नस्ल को अब दूसरे राज्यों में भी फैलाया जा रहा है ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान इसका लाभ ले सकें.
सोनपरी नस्ल- सुंदरता, ताकत और उत्पादन का मेल
सोनपरी नस्ल का नाम जितना सुंदर है, इसकी खूबियां उससे कहीं ज्यादा हैं. ये नस्ल विशेष रूप से अपने उच्च प्रजनन और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार,इस नस्ल की बकरी आमतौर पर 2 से 3 बच्चों को जन्म देती है, लेकिन कई बार यह संख्या 4 तक भी पहुंच जाती है, जो कि अन्य नस्लों में बहुत ही दुर्लभ है. इससे किसान को कम खर्च में ज्यादा मुनाफा होता है.
सोनपरी नस्ल की खासियत जो किसानों को भाए
- उच्च प्रजनन दर:- 22 फीसदी मामलों में 4 बच्चों का जन्म-यानि एक बार में ज़्यादा बकरी के बच्चे.
- बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता:- कम बीमार पड़ती है, इलाज पर खर्च कम होता है.
- पौष्टिक दूध:- इस नस्ल का दूध फैट से भरपूर होता है, जिससे बाजार में इसकी मांग ज्यादा है.
- महंगा मांस:- इसका मांस स्वाद में बेहतर और बाजार में 200 रुपये प्रति किलो ज्यादा कीमत पर बिकता है.
सोनपरी बकरी का पालन करने से किसान को हर दिशा में फायदा होता है- दूध, मांस और संतान उत्पादन में.
कैसे करें सोनपरी नस्ल की पहचान?
अगर आप बाजार से सोनपरी नस्ल खरीदना चाहते हैं, तो इसकी कुछ खास पहचान हैं जो ध्यान देने लायक हैं:-
- शरीर पर ग्रे रंग की धारियां या पैच होते हैं.
- पीठ की हड्डी पर गर्दन से पूंछ तक काले बालों की सीधी लाइन होती है.
- बालों में काले रंग की गोल-गोल रिंग दिखती हैं.
- आंखें मध्यम आकार की होती हैं.
- कान और पीठ पर नीले रंग की झलक वाले काले बाल होते हैं.
इन शारीरिक संकेतों की मदद से आप असली सोनपरी नस्ल की पहचान कर सकते हैं और नकली या मिलावटी नस्ल से बच सकते हैं.
नई नस्लें, नई कमाई- किसान बदल रहे अपनी किस्मत
मीजिया रिपोर्ट के अनुसार, सम्राट और सोनपरी जैसी नस्लें सिर्फ वैज्ञानिक खोज नहीं, बल्कि उन किसानों की मेहनत का फल हैं, जिन्होंने रिस्क लेकर इनका पालन शुरू किया. अब ये नस्लें उन्हें दोगुनी कमाई और कम खर्च में ज्यादा मुनाफा दे रही हैं. बकरी पालन अब सिर्फ जरूरत नहीं, एक लाभकारी व्यवसाय बन चुका है. सरकार और वैज्ञानिक संस्थान अगर इन नस्लों को बढ़ावा देते रहें, तो आने वाले समय में लाखों किसानों की किस्मत बदल सकती है.