महाराष्ट्र के नासिक जिले में इस साल किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है. बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से फसलों को काफी नुकसान पहुंचा है. खास कर मौसम की मार का असर सबसे ज्यादा प्याज पर पड़ा है. मार्च-अप्रैल के दौरान तेज गर्मी और मई में कुछ इलाकों में हुई भारी बारिश ने प्याज की क्वालिटी खराब कर दी. इससे किसानों की परेशानी बढ़ गई है, क्योंकि क्वालिटी में गिरावट आने से किसानों को प्याज की कम कीमतें मिल रही हैं. यानी उन्हें आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. इसके अलावा जिले में मजदूरों की भी भारी कमी है.
नासिक के निफाड़ तहसील के टाकली गांव के किसान संतोष गोराडे ने 4 एकड़ में रबी प्याज उगाई थी. वे कहते हैं कि फसल काटने के लिए उन्हें नंदुरबार और महाराष्ट्र-गुजरात की सीमा से आदिवासी मजदूरों पर निर्भर होना पड़ा. उन्होंने कहा कि देर से हुई कटाई की वजह से उनकी फसल को गर्मी से नुकसान हुआ. करीब 10 फीसदी प्याज खराब हो गई, जिसे फेंकना पड़ा. क्योंकि उसकी क्वालिटी ठीक नहीं थी.
इस बार मजदूरों की बहुत कमी
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, नासिक जिले के सिन्नर तहसील के नायगांव गांव के किसान एकनाथ सनप का कहना है कि इस बार मजदूरों की बहुत कमी है. फसलों की कटाई करने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं. वे कहते हैं कि उनके पास 3 एकड़ जमीन की रबी प्याज की फसल लगी हुई थी. मार्च महीने में जब काटने के लिए मजदूर ढूंढने लगे तो बहुत परेशानी हुई. स्थानीय मजदूरों ने काम करने से साफ इनकार कर दिया. नायगांव और पास के जयगांव गांव के किसानों को भी यही दिक्कत हुई. कहा जा रहा है कि मजदूर तेज गर्मी की वजह से प्याज की कटाई करने से मना कर रहे थे.
प्याज की कटाई मशीनों से नहीं होती
एकनाथ सनप ने कहा कि गेहूं या चने जैसी फसलों की तरह प्याज की कटाई मशीन से नहीं हो सकती, इसे पूरी तरह हाथों से करना पड़ता है. यानी यह मेहनत वाला काम है. उन्होंने कहा कि कोई रास्ता नहीं दिखा, तो हम गुजरात के वलसाड़ जिले के धरमपुर कस्बे तक मजदूर लेने गए. सनप और दोनों गांवों के 15 किसानों ने मिलकर खर्च उठाया. इन मजदूरों ने बारी-बारी से खेतों में कटाई की.
प्याज कटाई पर खर्च बढ़ा
खास बात यह है कि गुजरात से आए मजदूर सस्ते नहीं थे. जहां आमतौर पर मजदूरी 300 रुपये प्रतिदिन होती है, वहीं इन्हें 350 रुपये प्रतिदिन देने पड़ते थे. साथ में खाना और रहने की व्यवस्था भी करनी पड़ी. सनप का कहना है कि इस बार एक एकड़ प्याज की कटाई पर करीब 5,500 रुपये खर्च आया, जबकि पहले ये खर्च 4,000 रुपये प्रति एकड़ के आसपास होता था. लेकिन हालात ऐसे थे कि ये करना ही पड़ा.
12.53 लाख हेक्टेयर में प्याज की खेती
रबी प्याज आमतौर पर दिसंबर-जनवरी में बोई जाती है और मार्च में उसकी कटाई होती है. कटाई के बाद किसान इसे खेत में ही स्टोर करते हैं. यह प्याज सितंबर-अक्टूबर तक बाजार में बेचा जाता है. रबी प्याज में नमी कम होने के कारण इस लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है और यह घरेलू खपत के साथ-साथ निर्यात के लिए भी अहम होता है. देशभर में किसानों ने इस बार रबी प्याज 12.53 लाख हेक्टेयर में बोई है, जिसमें से महाराष्ट्र ने 7.43 लाख हेक्टेयर में बोआई की है.