दिखने में छोटी लेकिन नुकसान बड़ा, बगई मक्खी से गाय-भैंस और दूध दोनों खतरे में

Dairy Farmers : ग्रामीण इलाकों में पाई जाने वाली बगई मक्खी गाय और भैंस के लिए गंभीर खतरा बन रही है. यह मक्खी पशुओं का खून चूसकर उन्हें कमजोर कर देती है, जिससे दूध उत्पादन घटने लगता है. समय पर सावधानी नहीं बरती गई तो नुकसान बढ़ सकता है.

नोएडा | Published: 17 Dec, 2025 | 11:31 AM

Animal Care : गांव की सुबह जब गौशाला में गाय-भैंस चारा खाती नजर आती हैं, तब किसी को यह अंदाजा नहीं होता कि एक छोटी सी मक्खी उनकी सेहत और दूध दोनों पर भारी पड़ सकती है. यह मक्खी दिखने में भले ही आम लगे, लेकिन असर बेहद खतरनाक है. गांवों में इसे बगई कहा जाता है और पशुपालकों के लिए यह किसी दुश्मन से कम नहीं.

क्या है बगई मक्खी और क्यों है खतरनाक

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बगई मक्खी एक खून चूसने वाली मक्खी  होती है, जो खासतौर पर गाय और भैंस पर बैठते ही उनका खून चूसने लगती है. पशु चिकित्सा अधिकारी मातादीन पटेल बताते हैं कि यह मक्खी खेतों, हार-खेत और जंगलों में ज्यादा पाई जाती है. जब पशु वहां चरने जाते हैं, तो यह उनके पीछे-पीछे घर तक आ जाती है. इस मक्खी के काटते ही पशु को तेज दर्द होता है. वह बेचैन हो जाता है, बार-बार पूंछ हिलाता है और खाना भी ठीक से नहीं खा पाता.

दूध और सेहत पर सीधा असर

बगई मक्खी पशुओं के लिए बेहद नुकसानदायक  होती है. यह मक्खी गाय और भैंस का खून चूसकर उन्हें धीरे-धीरे कमजोर कर देती है. खून की कमी से पशु सुस्त हो जाते हैं, ठीक से चारा नहीं खा पाते और उनकी ताकत घटने लगती है. इसका सीधा असर दूध उत्पादन पर पड़ता है. कई पशुपालकों का कहना है कि बगई मक्खी बढ़ने पर उनकी भैंस का दूध आधा तक कम हो गया. लंबे समय तक यह समस्या बनी रहे तो पशु बीमार पड़ सकता है. बीमारी की हालत में इलाज पर ज्यादा खर्च आता है, जिससे पशुपालकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है.

कहां ज्यादा पाई जाती है ये मक्खी

यह मक्खी ज्यादा तर उन इलाकों में मिलती है, जहां आसपास जंगल, नमी वाले खेत  या झाड़ियां होती हैं. बारिश और गर्मी के मौसम में इसका प्रकोप और बढ़ जाता है. अगर पशु रोज ऐसे इलाकों में चरने जाता है, तो बगई मक्खी का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. यही वजह है कि कई बार एक पशु से दूसरे पशु में भी यह समस्या फैल जाती है.

बचाव के आसान घरेलू उपाय

इस मक्खी को पूरी तरह भगाने का कोई पक्का इलाज नहीं है, लेकिन कुछ उपाय अपनाकर नुकसान कम किया  जा सकता है.

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