अब नहीं दिखेंगे सड़क पर गाय-बछड़े, 19 जिलों में बनेंगी गौशालाएं, मिली हजारों एकड़ जमीन की मंजूरी
मध्यप्रदेश सरकार ने आवारा पशुओं की समस्या खत्म करने के लिए ऐतिहासिक फैसला लिया है. राज्य के 19 जिलों में बड़ी मात्रा में भूमि आवंटित कर नई स्वावलंबी गोशाला नीति लागू की गई है. इससे गायों को सुरक्षित आश्रय, किसानों को राहत और सड़कों को दुर्घटनामुक्त बनाने में बड़ी मदद मिलेगी.
Madhya Pradesh News : मध्यप्रदेश में सड़कों पर भटकते पशुओं की समस्या किसी से छिपी नहीं है. कई बार हादसे, ट्रैफिक जाम, फसल नुकसान और लोगों को परेशान होते देखा गया है. लेकिन अब तस्वीर बदलने जा रही है, क्योंकि राज्य सरकार ने पशुओं के संरक्षण और देखभाल को लेकर एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला लिया है, जो पूरे प्रदेश की दिशा और दशा दोनों बदल सकता है. सरकार ने स्वावलंबी गोशाला नीति-2025 के तहत पहली बार इतनी बड़ी संख्या में भूमि आवंटित कर बड़े स्तर पर गोशालाओं के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया है. इस कदम का असर आने वाले समय में प्रदेशभर की गायों, किसानों और सड़क सुरक्षा पर साफ दिखाई देने वाला है.
प्रदेश में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर जमीन आवंटन
मध्यप्रदेश सरकार ने घोषणा की है कि अब सड़कों पर भटकने वाले गाय-बछड़ों को सुनियोजित तरीके से सुरक्षित स्थान दिया जाएगा. इसके लिए राज्य के 19 जिलों में बड़ी मात्रा में जमीन आवंटित की गई है. यह भूमि गोशालाओं के विस्तार, निर्माण और संचालन के लिए उपयोग की जाएगी, ताकि हजारों आवारा पशुओं को स्थायी आश्रय मिल सके. सरकार का मानना है कि जब हर जिले में एक व्यवस्थित गोधाम विकसित हो जाएगा, तब पशुओं का सड़क पर घूमना लगभग खत्म हो जाएगा.
गोसंवर्धन और संरक्षण की मजबूत नीति बनी आधार
गोसंवर्धन एवं संरक्षण की भावना को केंद्र में रखते हुए बनाई गई स्वावलंबी गोशाला नीति-2025 को इस परियोजना का आधार बताया गया है. सरकार समझती है कि गाय केवल पशु नहीं, बल्कि खेती, दूध उत्पादन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. इसलिए आवारा पशुओं को लेकर जो संकट पैदा हो रहा था, उसे जड़ से खत्म करने के लिए इस नीति की शुरुआत हुई है. इसका लक्ष्य है-गायों को संरक्षित करना, सुरक्षित रखना और उनकी देखभाल को व्यवस्थित बनाना.
किन जिलों में मिली जमीन और कितना क्षेत्र आवंटित हुआ
सरकार ने जिन जिलों में जमीन आवंटित की है, उनमें जबलपुर, मंदसौर, रतलाम, रायसेन, दमोह, सागर, पन्ना, टीकमगढ़, विदिशा, देवास, नरसिंहपुर, मऊगंज, छतरपुर, रीवा, राजगढ़, खरगोन, अशोकनगर और भिंड जैसे जिले शामिल हैं. कहीं 130 एकड़ तो कहीं 500 एकड़ से ज्यादा जमीन दी गई है. उदाहरण के लिए-दमोह में 511 एकड़, जबलपुर में 461 एकड़ और सागर में 441 एकड़ भूमि का आवंटन किया गया है. यह जमीन बड़ी आधुनिक गोशालाओं, गो-धामों और पशु देखभाल केंद्रों की स्थापना में इस्तेमाल होगी.
नई गोशाला नीति से आवारा पशुओं की समस्या खत्म होने लगी.
सड़क हादसों से राहत, ट्रैफिक और सुरक्षा पर बड़ा असर
प्रदेश में सड़कों पर घूमते पशुओं की वजह से हर महीने कई दुर्घटनाएं होती थीं. लोग रात में बाइक या कार लेकर निकलने में डरते थे. शहरों में ट्रैफिक जाम भी सामान्य बात थी. इस नई योजना से इन समस्याओं पर रोक लगने की पूरी उम्मीद है. जब पशु गोशालाओं में रहेंगे, सड़कें सुरक्षित होंगी, यातायात सुचारू चलेगा और दुर्घटनाओं में भी कमी आएगी. किसानों की फसलें भी अब खुले में घूमने वाले पशुओं के कारण बर्बाद नहीं होंगी.
किसानों और गौ-सेवा से जुड़े संगठनों को मिलेगी बड़ी राहत
आज तक आवारा पशुओं की समस्या का सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को उठाना पड़ा था. फसल में बैठकर पशु एक रात में महीनों की मेहनत खत्म कर देते थे. इस फैसले से किसानों के लिए राहत ही राहत है. वहीं गौ-सेवा करने वाले संस्थानों को भी जमीन आवंटन के साथ सरकारी सहयोग मिलेगा, जिससे वे बेहतर ढंग से गोशालाएं चला सकेंगे. इस योजना से हजारों लोगों को रोजगार भी मिलेगा-चारे की आपूर्ति, रखरखाव, देखभाल और प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में.
स्वावलंबी गोशाला मॉडल क्यों है विशेष?
इस नीति का सबसे खास पहलू है-गोशालाओं को आत्मनिर्भर बनाना. नई व्यवस्था में गोशालाएं केवल चंदे या सरकारी मदद पर निर्भर नहीं रहेंगी. उन्हें खेती, गौ-उत्पाद, बायोगैस प्लांट, गोबर खाद और अन्य संसाधनों से आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जाएगा. इससे गोशालाएं खुद आय उत्पन्न करके पशुओं की देखभाल सुनिश्चित कर पाएंगी. यह मॉडल देशभर के लिए एक उदाहरण बन सकता है.
सरकार का दावा-आवारा पशु समस्या अब खत्म होने की ओर
पशुपालन एवं डेयरी विभाग का कहना है कि आवारा पशुओं को लेकर वर्षों से चल रही समस्या को अब जड़ से खत्म किया जाएगा. जब हर जिले में विशाल गोधाम विकसित हो जाएंगे और पशुओं की नियमित निगरानी होगी, तब आवारा पशुओं का सड़क पर दिखना कम होगा. यह कदम न केवल कृषि और सड़क सुरक्षा को सुधारने वाला है, बल्कि गायों की सुरक्षा और देखभाल को लेकर भी एक ऐतिहासिक पहल साबित होगा.