Odisha News: ओडिशा के संबलपुर जिले में धान खरीदी में देरी हो रही है. इससे किसानों में गुस्सा बढ़ते जा रहा है. ऊपर से धान की अधिक कटौती ने किसानों को और आक्रोशित कर दिया है. ऐसे में नाराज किसानों ने शुक्रवार को जिले भर में जोरदार प्रदर्शन किया. इस दौरान सड़कों पर जाम लग गया. आक्रोशित किसानों का कहना है कि धान खरीद में टोकन मिलने में देरी हे रही है और ऊपर से धान की अधिक कटौती की जा रही है. इससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पश्चिम ओडिशा कृषक संगठन समन्वय समिति (POKSSS) और संबलपुर जिला कृषक सुरक्षा संगठन के नेतृत्व में सैकड़ों किसानों ने रेमेड चौक समेत पांच जगहों पर हाईवे जाम किया. किसानों ने ट्रैक्टरों पर धान की बोरियां रखकर NH-53 (संबलपुर–बरगढ़ मार्ग) पर प्रदर्शन किया. इसी तरह सिंदूरपंख, धामा चौक, रैराखोल और कुचिंडा में भी विरोध हुआ.
40 हजार से ज्यादा किसानों को नहीं मिले टोकन
किसानों का कहना है कि टोकन मिलने में देरी के कारण वे अपनी फसल नहीं बेच पा रहे हैं. 65 हजार से ज्यादा पंजीकृत किसानों में से करीब 19 हजार को अब तक टोकन नहीं मिला है. वहीं 53 हजार किसानों को मिले टोकन में से 40 हजार से ज्यादा का पहला चरण पूरा हो चुका है और वे नए टोकन का इंतजार कर रहे हैं. आरोप है कि मिलर हर क्विंटल धान पर 4 से 6 किलो तक की मनमानी कटौती कर रहे हैं.
औपचारिकताएं पूरी कर उन्हें छोड़ दिया
पूर्व मंत्री और बीजेडी के जिला अध्यक्ष रोहित पुजारी भी रेमेड चौक पर प्रदर्शन में शामिल हुए. उन्होंने कहा कि टोकन व्यवस्था को ठीक से लागू न करने के कारण किसान सड़क पर उतरने को मजबूर हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार और मिलरों की मिलीभगत से कटौती को बढ़ावा दिया जा रहा है. प्रदर्शन शाम 6 बजे तक चला. इसके बाद पुलिस ने किसानों को हिरासत में लिया और औपचारिकताएं पूरी कर उन्हें छोड़ दिया.
धान सस्ते रेट पर बेचने के लिए मजबूर हैं किसान
वहीं, बीते दिनों खबर सामने आई थी कि ओडिशा के सुन्दरगढ़ जिले में खरीफ विपणन सीजन 2025-26 में लगभग 2.5 लाख टन धान न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम रेट पर बेचा जा सकता है. जिले में इस बार बहुत अधिक पैदावार होने की उम्मीद है, लेकिन इस बार कम कीमतों का सबसे अधिक असर छोटे और सीमांत किसानों पर पड़ेगा. सरकार हर सीजन में कुल धान का सिर्फ एक हिस्सा ही खरीदती है. इसलिए किसानों को बचा हुआ अतिरिक्त धान सस्ते रेट पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.