भारत सरकार ने इस साल धान की खरीद का लक्ष्य घटाकर 4.63 करोड़ टन (46.35 मिलियन टन) तय किया है. यह लक्ष्य 2025-26 के खरीफ विपणन सत्र के लिए रखा गया है, जिसकी शुरुआत अक्टूबर से होगी. पिछले साल सरकार ने खरीफ सीजन से लगभग 4.74 करोड़ टन चावल खरीदा था, जबकि लक्ष्य 5.11 करोड़ टन का रखा गया था.
क्यों घटाया गया लक्ष्य?
दरअसल, सरकार के पास पहले से ही चावल का बड़ा भंडार मौजूद है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और अन्य योजनाओं को चलाने के लिए हर साल लगभग 4.1 करोड़ टन चावल की ही जरूरत होती है. लेकिन, 2024-25 सीजन (अक्टूबर 2024 से अगस्त 2025 तक) में सरकार ने कुल मिलाकर 5.45 करोड़ टन चावल खरीद लिया. यह लक्ष्य से कम तो है, लेकिन जरूरत से काफी ज्यादा है. यही वजह है कि सरकार अब अतिरिक्त चावल खरीदने के बजाय धान खरीद का लक्ष्य घटा रही है.
राज्यों को मिलेट्स (श्री अन्न) पर ध्यान देने की सलाह
बैठक में खाद्य मंत्रालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को साफ तौर पर कहा कि अब उन्हें केवल धान ही नहीं, बल्कि मोटे अनाज और बाजरा जैसी फसलों (श्री अन्न) की खरीद पर भी ध्यान देना होगा. इसके लिए 2025-26 में 1.92 मिलियन टन मिलेट्स खरीदने का लक्ष्य रखा गया है. सरकार का मानना है कि खेती में विविधता लाने से न केवल किसानों को फायदा होगा, बल्कि लोगों की थाली में पोषण भी बढ़ेगा.
बारिश और बाढ़ से धान फसल को नुकसान
इस बार मौसम ने भी धान उत्पादन पर असर डाला है. देश के कई हिस्सों में बेमौसम बारिश और बाढ़ की वजह से धान की फसल को नुकसान पहुंचा है.
पंजाब, जिसने पिछले साल केंद्रीय पूल में सबसे ज्यादा 1.16 करोड़ टन चावल दिया था, इस बार उतनी मात्रा नहीं दे पाएगा.
छत्तीसगढ़, पंजाब और हरियाणा जैसे बड़े धान उत्पादक राज्यों में सितंबर में भी सामान्य से ज्यादा बारिश की संभावना जताई गई है, जिससे धान की कटाई और उत्पादन प्रभावित हो सकता है.
किसानों पर असर
धान खरीद का लक्ष्य घटने का सीधा असर किसानों पर पड़ सकता है. खासकर उन राज्यों में जहां सरकार की खरीद पर ही किसानों की आमदनी निर्भर करती है. अगर सरकार कम मात्रा खरीदेगी तो किसानों को अपना धान खुले बाजार में बेचना पड़ सकता है, जहां दाम अक्सर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम मिलते हैं.
कृषि मंत्रालय जल्द ही धान उत्पादन का अनुमान जारी करेगा. उसके बाद खरीद का लक्ष्य फिर से संशोधित हो सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर बाढ़ और बारिश से ज्यादा नुकसान नहीं हुआ तो सरकार को किसानों से खरीद बढ़ानी पड़ सकती है.