कम समय में करनी है लाखों की कमाई? तो किसान खेत में लगाएं ये फसल

हाल के सालों में चुकंदर की मांग लगातार बढ़ी है, जूस, सलाद, मेडिकल उद्योग और प्रोसेस्ड उत्पादों में इसका उपयोग तेजी से बढ़ रहा है. कम लागत, कम समय और अच्छी उपज के कारण किसान इसे परंपरागत फसलों के विकल्प के रूप में पसंद कर रहे हैं.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 19 Nov, 2025 | 12:54 PM

Farming Tips: भारत में चुकंदर यानी बीटरूट केवल एक सब्जी नहीं, बल्कि पोषण का खजाना है. आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन C, मैग्नीशियम जैसे तत्वों से भरपूर यह सब्जी स्वास्थ्य के लिए जितनी फायदेमंद है, किसानों के लिए उतनी ही लाभदायक भी. हाल के सालों में चुकंदर की मांग लगातार बढ़ी है, जूस, सलाद, मेडिकल उद्योग और प्रोसेस्ड उत्पादों में इसका उपयोग तेजी से बढ़ रहा है. कम लागत, कम समय और अच्छी उपज के कारण किसान इसे परंपरागत फसलों के विकल्प के रूप में पसंद कर रहे हैं.

चुकंदर की खेती के लिए अनुकूल मौसम और मिट्टी

उपयुक्त मौसम

चुकंदर ठंडी जलवायु में तेजी से बढ़ने वाली फसल है. देश के अधिकतर राज्यों में इसे अक्टूबर से दिसंबर तक बोया जाता है. फरवरीमार्च में यह पूरी तरह तैयार हो जाती है. 15°C से 25°C का तापमान इसकी बढ़त के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है.

उपयुक्त मिट्टी

दोमट या रेतीली-दोमट मिट्टी जिसमें अच्छी जल निकासी की व्यवस्था हो, चुकंदर के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है. मिट्टी का pH 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए. जुताई गहराई से करें ताकि चुकंदर की जड़ मोटी और समान रूप से विकसित हो सके.

बीज बुवाई

चुकंदर की बुवाई कतारों में की जाती है. कतारों के बीच 30 सेमी और पौधों के बीच 10 सेमी दूरी आदर्श मानी जाती है. प्रति हेक्टेयर 5–6 किलो बीज पर्याप्त रहता है. यदि बीजों को 10–12 घंटे पानी में भिगोकर बोया जाए, तो अंकुरण अधिक मजबूत और तेज होता है.

सिंचाई

बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें. इसके बाद हर 10–12 दिन में पानी देना जरूरी है. पानी खेत में न रुकने पाए, वरना जड़ों में सड़न की संभावना रहती है.

खाद प्रबंधन

चुकंदर में जैविक एवं रासायनिक दोनों तरह के खाद अच्छे परिणाम देते हैं.

सड़ी गोबर खाद: 15–20 टन प्रति हेक्टेयर

नाइट्रोजन: 80 किलो

फॉस्फोरस: 60 किलो

पोटाश: 40 किलो

ऑर्गेनिक खेती करने वालों के लिए वर्मी कम्पोस्ट, नीम खली और हड्डी की खाद बेहतरीन विकल्प हैं.

रोग और कीट नियंत्रण

चुकंदर में लीफ स्पॉट, पाउडरी मिल्ड्यू और रूट रॉट जैसे रोग देखने को मिलते हैं. नीम आधारित जैविक कीटनाशकों का छिड़काव पौधों को सुरक्षित रखता है. खेत को हमेशा साफ और हवादार रखें ताकि रोग फैल न सके.

कटाई और उपज

बुवाई के 90 से 110 दिन बाद चुकंदर की फसल तैयार हो जाती है. जब जड़ें गोल और मध्यम आकार की दिखने लगें, तब कटाई कर लेनी चाहिए. एक हेक्टेयर में औसतन 200–250 क्विंटल उपज मिल जाती है, जो इसे काफी लाभकारी फसल बनाती है.

लागत और कमाई

चुकंदर की खेती में प्रति हेक्टेयर 50,00070,000 रुपये का खर्च आता है. बाजार में इसकी लगातार मांग के कारण किसान 1.52 लाख रुपये तक की आमदनी कमा लेते हैं. करीब 11.3 लाख रुपये का शुद्ध लाभ मिल सकता है, जो इसे बेहद फायदे का सौदा बनाता है.

बिक्री और मार्केटिंग

चुकंदर को बेचा जा सकता है

  • स्थानीय सब्जी मंडियों में
  • जूस एवं सलाद विक्रेताओं को
  • सुपरमार्केट और हेल्थ स्टोर में
  • हॉस्पिटल और कैंटीन में
  • खाद्य प्रोसेसिंग यूनिटों और औषधीय कंपनियों को

यदि किसान खुद जूस प्रोसेसिंग या पैक्ड प्रोडक्ट बनाना शुरू कर दें, तो मुनाफा कई गुना बढ़ सकता है.

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