दिल्ली-NCR की हवा होगी फिर साफ: अब खुले में न जलेगी पराली, न जलेंगे कचरे के ढेर

दिल्ली की हवा को जहरीला बनाने में लैंडफिल पर लगने वाली आग की बड़ी भूमिका होती है. जैसे ही गर्मी बढ़ती है या मानसून के बाद गीला कचरा मीथेन गैस छोड़ने लगता है, तो मामूली चिंगारी भी बड़े विस्फोट जैसी आग में बदल जाती है.

नई दिल्ली | Published: 4 Jun, 2025 | 02:52 PM

हर साल सर्दियों की आहट के साथ दिल्ली-एनसीआर की हवा में जहर घुलने लगता है. कभी गाजीपुर जैसे लैंडफिल में लगती आग, तो कभी पंजाब और हरियाणा के खेतों में जलती पराली, इन सबका असर दिल्लीवालों की सांसों पर पड़ता है. धुएं की मोटी परत न केवल दृश्यता को कम करती है, बल्कि फेफड़ों में जहर भी भरती है. लेकिन अब हालात बदलने वाले हैं.

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए दो बेहद अहम और ठोस कदम उठाए हैं. एक तरफ दिल्ली-एनसीआर में कचरा डंपिंग साइट्स पर आग लगने की घटनाओं पर काबू पाने की योजना है, तो दूसरी ओर पराली जलाने की समस्या का समाधान भी सामने रखा गया है. आइए समझते हैं कि ये योजनाएं क्या हैं और इनसे कैसे बदलेगी दिल्ली की हवा.

कचरे के ढेरों पर नहीं लगेगी आग

दिल्ली की हवा को जहरीला बनाने में लैंडफिल पर लगने वाली आग की बड़ी भूमिका होती है. जैसे ही गर्मी बढ़ती है या मानसून के बाद गीला कचरा मीथेन गैस छोड़ने लगता है, तो मामूली चिंगारी भी बड़े विस्फोट जैसी आग में बदल जाती है. इससे जहरीली गैसें जैसे NO2, SO2 और डाइऑक्सिन हवा में फैल जाती हैं.

CAQM ने अब दिल्ली-एनसीआर की सभी राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि वे अपने-अपने इलाके की लैंडफिल साइट्स पर आग लगने की आशंका का वैज्ञानिक तरीके से आंकलन करें. इसके बाद इन साइट्स को आग से बचाने के लिए CCTV कैमरे, मीथेन गैस डिटेक्टर और अन्य निगरानी उपकरण लगाए जाएं. साथ ही, आग बुझाने के पर्याप्त इंतजाम जैसे कि रेत, केमिकल फायर एक्सटिंग्विशर और फायर ब्रिगेड की गाड़ियां हर समय तैयार रखी जाएंगी.

इसके अलावा, लैंडफिल में जमा पुराने कचरे को हटाने के लिए बायोमाइनिंग और बायोरिमेडिएशन की प्रक्रिया को तेज करने के निर्देश दिए गए हैं. CAQM ने यह भी स्पष्ट किया है कि समय-समय पर मॉक ड्रिल कराई जाए ताकि किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए सभी टीमें पूरी तरह तैयार रहें.

अब पराली नहीं जलेगी खेतों में

हर साल धान की कटाई के बाद पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के खेतों में हजारों टन पराली जलाई जाती है. इसका धुआं दिल्ली तक पहुंचता है और हवा में जहर घोल देता है. इस गंभीर स्थिति को देखते हुए CAQM ने एक नई रणनीति अपनाई है.

अब खुले में पराली जलाने पर सख्त रोक लगाई जाएगी और इसके बजाय इस फसल अवशेष को उपयोगी बनाया जाएगा. CAQM ने पंजाब और हरियाणा की सरकारों को निर्देश दिए हैं कि वे एनसीआर क्षेत्र से बाहर के ईंट भट्टों में पराली से बने बायोमास पेलेट्स और ब्रिकेट्स का उपयोग अनिवार्य करें. यह उपाय पराली को एक बेकार कचरे से बायो-फ्यूल यानी वैकल्पिक ईंधन में बदल देगा.

सरकारें इस योजना को चरणबद्ध तरीके से लागू करेंगी:

नवंबर 2025 तक 20% उपयोग

नवंबर 2026 तक 30%

नवंबर 2027 तक 40%

नवंबर 2028 तक 50%

CAQM ने यह भी स्पष्ट किया है कि इन निर्देशों के क्रियान्वयन पर हर महीने रिपोर्ट भेजनी होगी, ताकि योजना की प्रगति की लगातार निगरानी की जा सके.

कई फायदे, एक समाधान

CAQM का यह डबल एक्शन प्लान केवल प्रदूषण पर रोक लगाने की योजना नहीं है, बल्कि यह किसानों, उद्योगों और आम जनता तीनों के लिए फायदेमंद है. किसानों को पराली बेचकर आमदनी मिलेगी, ईंट भट्टों को सस्ता और स्वच्छ ईंधन मिलेगा, और दिल्ली-एनसीआर के नागरिकों को साफ हवा में सांस लेने का मौका.