मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों में महत्त्वपूर्ण कच्चा माल हासिल करना मुश्किल होता जा रहा है, जिसे देखते हुए देश के सबसे बड़े उर्वरक उत्पादक इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) ने श्रीलंका, जार्डन और सेनेगल जैसे देशों में संयुक्त उद्यम के माध्यम से खाद प्लाट लगाने की तैयारी कर रहा है. इफको के प्रबंध निदेशक केजे पटेल ने कहा कि इन प्लांट से उत्पादित 100 फीसदी तैयार माल की खरीदारी भारत करेगा.
इफको के प्रबंध निदेशक केजे पटेल ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि इफको श्रीलंका, जार्डन और सेनेगल में वहां की कंपनियों के साथ ही मिलकर प्लांट लगाने की तैयारी कर रहा है. इस पर काम किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि श्रीलंका में बेहतरीन गुणवत्ता का रॉक फॉस्फेट है. इसे देखते हुए इफको श्रीलंका में ज्वाइंट वेंचर स्थापित कर डाई अमोनियम फॉस्फेट या फॉस्फोरिक एसिड उत्पादन पर विचार कर रही है.
प्रबंध निदेशक केजे पटेल ने कहा कि अच्छी गुणवत्ता वाला कच्चा माल प्राप्त करना चुनौती बनता जा रहा है. इसके लिए या तो अधिक भुगतान करना होगा या अधिक वित्तीय बोझ उठाना होगा. एक बेहतर विकल्प उन देशों में मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट स्थापित करना है, जहां ये संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं.
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कच्चा माल बनाने की क्षमता दोगुनी की जाएगी
जॉर्डन में फॉस्फोरिक एसिड बनाने की क्षमता 5 लाख से बढ़ाकर 10 लाख टन करने पर विचार कर रही है. वहीं कंपनी सेनेगल में फॉस्फोरिक एसिड या डीएपी उत्पादन और उसे भारत निर्यात करने के लिए रॉक फॉस्फेट सोर्स का पता लगाने पर विचार कर रही है. उन्होंने कहा कि रॉक फॉस्फेट और फॉस्फोरिक एसिड भारत में नहीं पाया जाता है और पूरी तरह से इसका आयात करना पड़ता है, जिसका इस्तेमाल डीएपी बनाने के लिए किया जाता है.
खाद बनाने के कच्चा माल को जुटाने में दिक्कतें दूर होंगी
केजे पटेल ने कहा कि खाद बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इन उत्पादों को आयात करने में दिक्कतें होती हैं. उन्होंने कहा कि जिन देशों से इन संसाधनों का आयात होता है, वे विदेश में इसके शिपमेंट पर अंकुश लगा रहे हैं. इसकी वजह से भारत पर असर पड़ रहा है. ऐसे में भारतीय किसानों की खाद जरूरत पूरी करने के लिए इफको दूसरे देशों में नए प्लांट लगाने और पहले स्थापित प्लांट्स की उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर विचार कर रही है.
भारत में अकेले डीएपी की सालाना खपत 110 लाख टन
भारत में फसलों के पोषक के रूप में सबसे ज्यादा यूरिया की खपत होती है, जिसके बाद डीएपी का स्थान है. डीएपी की भारत में सालना खपत 100 से 110 लाख टन है, जिसमें से लगभग आधा आयात करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि हाल ही में 3 प्रमुख भारतीय उर्वरक कंपनियों ने रूस के यूरलकेम ग्रुप के साथ रूस में 18 से 20 लाख टन क्षमता का यूरिया प्लांट स्थापित करने के लिए समझौता किया है, जो अन्य देशों के साथ समझौते का एक मॉडल हो सकता है.
वित्त वर्ष 2025 में खरीद लागत और भाड़ा (सीएफआर) मिलाकर फॉस्फोरिक एसिड की कीमत लगभग 948 से 1060 डॉलर प्रति टन थी, जो खरीफ 2025 में बढ़कर लगभग 1,153 से 1,258 डॉलर प्रति टन हो गई है. वहीं वित्त वर्ष 2025 में रॉक फॉस्फेट की दरें लगभग 205 से 230 डॉलर प्रति टन थीं, जो इस वर्ष खरीफ में लगभग 200 से 230 डॉलर प्रति टन पर बनी हुई हैं.
नैनो ग्रेन्युलर एनपीके की टेस्टिंग जल्द होगी
इफको के एमडी केजे पटेल ने कहा कि किसानों के बीच जागरूकता फैलने और गलत धारणाएं दूर होने के बाद नैनो यूरिया और नैनो डीएपी की बिक्री में काफी वृद्धि होगी. उन्होंने कहा कि इफको खुद अब नैनो ग्रेन्युलर एनपीके बना रही है. इसका परीक्षण जल्द होगा. यह नैनो का ग्रेन्युलर फॉर्म है, जो पत्तियों के बजाय जड़ों का पोषण करेगा. उन्होंने कहा कि एनपीके के 50 किलो के बोरे को मुकाबले नैनो एनपीके का इस्तेमाल सिर्फ 5 किलो करना पर्याप्त होगा.