देश में एक बार फिर से दूध और डेयरी के क्षेत्र में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है. इस बार बात सिर्फ दूध उत्पादन की नहीं, बल्कि उससे आगे की है- सफाई, पर्यावरण, रोजगार और गांवों की समग्र तरक्की की. सरकार ने इस दिशा में “श्वेत क्रांति 2.0” की शुरुआत कर दी है, जिसमें तीन नई बहुराज्यीय डेयरी सहकारी समितियों का गठन किया जाएगा. इस अभियान की कमान खुद केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने संभाली है.
अब दूध से आगे की क्रांति
केंद्रीय मंत्री अमित शाह का कहना है कि अब श्वेत क्रांति को सिर्फ दूध तक सीमित रखना सही नहीं होगा. समय की मांग है कि इसे सतत विकास और चक्रीय अर्थव्यवस्था से जोड़ा जाए, ताकि इसका फायदा सिर्फ दूध उत्पादन तक न रहे, बल्कि गांव के हर उस व्यक्ति तक पहुंचे जो किसी न किसी रूप में पशुपालन, जैविक खेती या सहकारी कामों से जुड़ा है. इसी सोच के साथ सरकार ने तीन नई समितियों का गठन किया है, जो डेयरी के साथ-साथ गोबर प्रबंधन, पशु आहार, और मृत पशुओं के उपयोग जैसे जरूरी कामों पर भी ध्यान देंगी. इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिलेगी और किसानों को नई आमदनी के रास्ते मिलेंगे.
तीन समितियां, तीन बड़े काम
सरकार जिन तीन बड़ी समितियों की शुरुआत करने जा रही है, उनके काम भी खास हैं:
- पशु आहार, रोग नियंत्रण और कृत्रिम गर्भाधान पर ध्यान देने वाली समिति.
- गोबर प्रबंधन और बायोगैस उत्पादन के लिए मॉडल तैयार करने वाली समिति.
- मृत पशुओं के अवशेषों का बेहतर और सुरक्षित उपयोग सुनिश्चित करने वाली समिति.
इन प्रयासों का मकसद सिर्फ डेयरी को मजबूत करना नहीं है, बल्कि कचरे से कमाई और प्राकृतिक संसाधनों का दोबारा उपयोग करके किसानों की आमदनी बढ़ाना भी है.
कार्बन क्रेडिट से होगी कमाई
अब किसानों को सिर्फ दूध बेचकर नहीं, बल्कि पर्यावरण को बचाकर भी फायदा होगा. सरकार चाहती है कि जो किसान बायोगैस, जैविक खाद या गोबर गैस जैसे टिकाऊ साधनों का उपयोग करेंगे, उन्हें कार्बन क्रेडिट के जरिए अतिरिक्त आमदनी दी जाए. इसके लिए वैज्ञानिक तरीके से मॉडल तैयार किए जा रहे हैं.
गांवों के लिए सहकारिता बनी उम्मीद
अमित शाह ने कहा कि सहकारिता सिर्फ एक आर्थिक व्यवस्था नहीं, बल्कि गांवों के विकास का असली रास्ता है. छोटे किसान, महिलाएं और युवा जब मिलकर कोई काम करते हैं, तो उसका असर बहुत दूर तक जाता है. इसी सोच के साथ अब फूड प्रोसेसिंग, डेयरी वैल्यू एडिशन और ऋण व पशु चिकित्सा सुविधाएं गांव तक पहुंचाई जाएंगी.
अमूल मॉडल से मिला भरोसा
बैठक में शाह ने “अमूल” का उदाहरण देते हुए कहा कि जब किसान मिलकर काम करते हैं तो वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना सकते हैं. यही मॉडल अब देश के हर कोने में दोहराया जाएगा. “सहकार से समृद्धि” सिर्फ नारा नहीं, अब यह सरकार की प्राथमिक योजना बन चुका है.
नीति अब कागजों से निकलकर गांव तक
इस पूरी योजना में NDDB, NABARD, मत्स्यपालन, पशुपालन मंत्रालय और सहकारिता मंत्रालय एक साथ काम कर रहे हैं ताकि नीतियां केवल कागजों तक न रहें, बल्कि गांव-गांव तक पहुंचे और जमीन पर दिखाई दें.
अमित शाह ने NDDB द्वारा बनाए गए बायोगैस और गोबर प्रबंधन के मॉडल्स की तारीफ करते हुए कहा कि इन्हें अब राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाएगा.