मध्य प्रदेश के खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग ने राज्य में महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. यहां के हस्तशिल्प और हथकरघा क्षेत्र में 40 फीसदी से अधिक महिलाएं सक्रिय हैं, जो चंदेरी, महेश्वरी, बाटिक, जरी-जरदोजी, लकड़ी के खिलौने जैसे GI टैग प्राप्त पारंपरिक उत्पाद बना रही हैं. सरकार इन उत्पादों के उत्पादन और मार्केटों के लिए वित्तीय मदद और अन्य सुविधाएं दे रही है ताकि महिलाओं की आय और स्वरोजगार बढ़ सके.
युवा महिला रोजगार को प्रोत्साहन
खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग ने एनआईएफटी, फैशन टेक्नोलॉजी कॉलेज और पॉलिटेक्निक संस्थानों से संवाद स्थापित कर युवती उद्यमियों को नई तकनीक और डिजाइन में सहायता दी है. देवी अहिल्या बाई होलकर की 300वीं जयंती के अवसर पर विशेष संग्रह तैयार किया जा रहा है, जिसमें महिला शिल्पकारों की भागीदारी बढ़ाई जाएगी. इसके साथ ही महिलाओं को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ऑनलाइन बिक्री के लिए भी प्रशिक्षित किया जा रहा है.
ब्रांड अभियान एवं डिजिटल सशक्तिकरण
मृगनयनी क्लब्स के माध्यम से महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए डिजिटल मार्केटिंग और ब्रांड प्रमोशन अभियान चलाए जा रहे हैं. सोशल मीडिया और सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन से उत्पादों को वैश्विक बाजार तक पहुंचाया जा रहा है. साथ ही, महिलाओं की ऑनलाइन डायरेक्टरी और डिजिटल कैटलॉग तैयार कर उनकी पहुंच बढ़ाई जा रही है.
विंध्यावैली ब्रांड के माध्यम से सशक्तिकरण
मध्यप्रदेश खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड द्वारा संचालित विन्ध्यावैली ब्रांड से लगभग 25 स्व-सहायता समूह जुड़े हैं, जो अचार, पापड़, मसाले और अगरबत्ती जैसे एफएमसीजी उत्पाद बनाते हैं. यह ब्रांड पैकेजिंग, ब्रांडिंग,क्वालिटी नियंत्रण और बिक्री के लिए तकनीकी सहायता भी प्रदान करता है. इन उत्पादों को प्रदेश के एम्पोरियम, मेलों और अमेजन व फ्लिपकार्ट जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर भी खरीदा जा सकता है.
आने वाले समय में होगा विस्तार
वर्ष 2025-26 में करीब 100 नए स्व-सहायता समूहों को विन्ध्यावैली ब्रांड से जोड़ा जाएगा, जिससे लगभग 1000 महिलाओं को नियमित रोजगार मिलेगा. यह पहल महिलाओं को पारंपरिक हस्तशिल्प को आधुनिक बाजार की मांग के अनुरूप ढालने और उचित मूल्य दिलाने में मदद करेगी, जिससे उनका आर्थिक सशक्तिकरण और ग्रामीण क्षेत्र का विकास सुनिश्चित होगा.
मध्य प्रदेश सरकार की ये योजनाएं न केवल महिलाओं की आर्थिक स्थिति मजबूत करेंगी बल्कि पारंपरिक कला और संस्कृति के संरक्षण में भी सहायक साबित होंगी. साथ ही, डिजिटल माध्यमों और ब्रांडिंग के जरिए स्थानीय उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंचाना संभव होगा.