हरियाणा में मजदूरों की भारी कमी, अभी तक 80 फीसदी रकबे में हुई धान की रोपाई.. 14 लाख हेक्टेयर है लक्ष्य

हरियाणा के किसानों का कहना है कि इस बार बिहार से मजदूरों के ग्रुप पूरी तरह नहीं आए. जब मैंने कुछ मजदूरों से इसकी वजह पूछी, तो पता चला कि कई लोग अब अपने ही राज्य में सरकारी योजनाओं के तहत काम कर रहे हैं.

Kisan India
नोएडा | Published: 23 Jul, 2025 | 01:30 PM

Paddy cultivation: इस बार हरियाणा में धान की रोपाई पर प्रवासी मजदूरों की कमी का बड़ा असर पड़ा है. अब तक राज्य में रोपाई का काम पूरा हो जाना चाहिए था. लेकिन कई किसान मजदूर न मिलने की वजह से अभी भी रोपाई करने में जुटे हैं. ऐसे पिछले तीन सालों में हरियाणा में हर साल करीब 16.67 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती रही है. इस बार कृषि विभाग ने 13.97 लाख हेक्टेयर का लक्ष्य रखा है, जिसमें से अब तक करीब 80 फीसदी क्षेत्र में ही रोपाई हो पाई है.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, किसानों और कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि हरियाणा की खेती काफी हद तक प्रवासी मजदूरों पर निर्भर है, खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश से आने वाले मजदूरों पर. हर साल बड़ी संख्या में ये मजदूर धान की रोपाई और बाद में धान और गेहूं की कटाई के लिए हरियाणा आते हैं. एक अनुमान के मुताबिक, हरियाणा की खेती में काम करने वाले 70 फीसदी मजदूर प्रवासी होते हैं. इस साल धान की रोपाई का सीजन 15 जून से शुरू हुआ, लेकिन राज्यभर के किसानों को मजदूरों की भारी कमी का सामना करना पड़ा, जिससे रोपाई की प्रक्रिया प्रभावित हुई है.

पंजाब भी है एक बड़ी वजह

किसानों का मानना है कि इस साल पंजाब में रोपाई की तारीख में बदलाव इसकी एक बड़ी वजह है. पहले पंजाब में भी हरियाणा की तरह मिड-जून में रोपाई शुरू होती थी, लेकिन इस बार 1 जून से शुरू हुई, जिससे वहां मजदूर पहले रुक गए और हरियाणा में मजदूरों की कमी हो गई. लेकिन एक किसान ने कहा कि इस साल पंजाब ने धान की रोपाई जल्दी शुरू कर दी, जिस वजह से ज्यादातर प्रवासी मजदूर पहले वहीं चले गए. हमें समय पर मजदूर नहीं मिल पाए, जिससे हमारी रोपाई में देरी हुई. किसानों का मानना है कि सरकार की अलग-अलग योजनाओं के चलते भी इस बार प्रवासी मजदूरों की संख्या कम रही.

क्यों हो रही है मजदूरों की कमी

हरियाणा के किसानों का कहना है कि इस बार बिहार से मजदूरों के ग्रुप पूरी तरह नहीं आए. जब मैंने कुछ मजदूरों से इसकी वजह पूछी, तो पता चला कि कई लोग अब अपने ही राज्य में सरकारी योजनाओं के तहत काम कर रहे हैं. बिहार में कुछ फैक्ट्रियां और राइस मिल भी शुरू हो गई हैं, जिससे मजदूरों को बाहर आने की जरूरत नहीं पड़ रही. इसके अलावा बिहार में चुनाव आने वाले हैं, और वहां मतदाता सूची का काम भी चल रहा है, तो मजदूर वहीं रुक गए हैं. किसानों ने आगे कहा कि किसानों को अब DSR (डायरेक्ट सीडेड राइस) तकनीक अपनानी चाहिए, जिससे मजदूरों की जरूरत कम पड़ेगी. DSR सस्ता है और इसमें कम मजदूरों की जरूरत होती है.

कृषि विभाग ने जारी की चेतावनी

एक अन्य किसान ने कहा कि स्थानीय मजदूर रोपाई के लिए ज्यादा पैसे मांगते हैं, इसी वजह से हम प्रवासी मजदूरों को तरजीह देते हैं. इस बार स्थानीय मजदूरों ने 4,500 रुपये से 5,500 रुपये प्रति एकड़ मांगा, जबकि प्रवासी मजदूर 3,000 रुपये से 4,000 रुपये प्रति एकड़ लेते थे. वहीं, कृषि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर अगले कुछ दिनों में बची हुई रोपाई पूरी नहीं हुई, तो इससे फसल की पैदावार पर गहरा असर पड़ सकता है.

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