कद्दू की उन्नत किस्मों की करें खेती, कम समय में मिलेगी अच्छी पैदावार

काशी हरित के फल गोल होते हैं और इसकी पत्तियां गहरे हरे रंग की सफेद धब्बों वाली होती हैं. इसके एक फल का वजन औसतन करीब 2.5 से 3.0 किग्रा होता है.

अनामिका अस्थाना
नोएडा | Published: 15 Jun, 2025 | 12:22 PM

कद्दू एक ऐसी सब्जी है जिसकी खेती में किसानों को कम लागत में अच्छी पैदावार और कमाई दोनों मिलती है. कद्दू की खेती को फायदे की खेती बनाने के लिए जरूरी है कि किसान कद्दू की सही और उन्नत किस्मों का चुनाव करें. ताकि पैदावार अच्छी हो और बाजार में फसल की कीमत भी अच्छी मिले. खबर में आगे कद्दू की ऐसी ही कुछ उन्नत किस्मों की बात करेंगे और जानेंगे कि क्या है इन किस्मों की खासियत.

पूसा विश्वास (Pusa Vishwas)

कद्दू की इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), पूसा, दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है. कद्दू की इस किस्म की खेती मुख्य रूप से उत्तर भारत में की जाती है. इसके फलों का रंग हरा होता है जिसपर सफेद धब्बे होते हैं. पूसा विश्वास बुवाई के करीब 120 दिनों बाद पककर तैयार हो जाती है. बात करें इसकी पैदावार की तो इसकी प्रति हेक्टेयर फसल से किसान लगभघ 400 क्विंटल तक पैदावार कर सकते हैं. इसकी खासियत है कि कि यह किस्म विटामिन A और C जैसे पोषक तत्वों से भरपूर है और इसकी खेती विशेष रूप से गर्मी में की जाती है.

अर्का सूर्यमुखी (Arka Suryamukhi)

कद्दू की इस किस्म को विशेश रूप से भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IIHR), बंगलुरु द्वारा विकसित किया गया है. इसकी खेती मुख्य रूप से कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र जैसे इलाकों में की जाती है. इसके फल गोल और हल्के नारंगी रंग के होते हैं. कद्दू की ये किस्म के एक फल का वजन करीब 1 किग्रा तक होता है. बात करें इसकी पैदावार की तो इसकी प्रति हेक्टेयर फसल से किसान लगभग 34 टन तक पैदावार कर सकते हैं. इसकी खासियत है कि यह किस्म फल मक्खी (fruit fly) जैसे कीटों के प्रति सहनशील होती है.

काशी हरित (Kashi Harit)

कद्दू की इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), वाराणसी द्वारा विकसित किया गया है. इसकी खेती विशेष तौर पर उत्तर भारत में की जाती है. काशी हरित के फल गोल होते हैं और इसकी पत्तियां गहरे हरे रंग की सफेद धब्बों वाली होती हैं. इसके एक फल का वजन औसतन करीब 2.5 से 3.0 किग्रा होता है. कद्दू की ये किस्म बुवाई के करीब 65 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इसकी प्रति हेक्टेयर फसल से किसान लगभग 300 से 350 क्विंटल पैदावार कर सकते हैं.

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