कई साल से चीनी उद्योग एक मांग कर रहा है. इसकी शिद्दत बढ़ती जा रही है. हालांकि मांग अभी तक पूरी नहीं हुई है. वह मांग है न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी में बढ़ोतरी. 2019 में यानी छह साल पहले एमएसपी बढ़ाई गई थी. तब इसे 31 रुपए प्रति किलो किया गया था. उसके बाद इसमें कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है. जिस साल एमएसपी 31 रुपए की गई थी, उस साल गन्ने की एफआरपी यानी उचित व लाभकारी मूल्य 275 रुपए प्रति क्विंटल थी. सरकार ने 1 अप्रैल, 2025 को घोषणा की कि 2025-26 के लिए गन्ने का एफआरपी 355 रुपए प्रति क्विंटल होगा. यानी छह साल में एफआरपी 80 रुपए बढ़ी है. जबकि एमएसपी पर कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है. पिछले सीजन के मुकाबले भी एफआरपी में 15 रुपए की बढ़ोतरी की गई है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में कैबिनेट का यह फैसला यकीनन गन्ना किसानों के लिए खुशी देने वाला था और जरूरी भी था. यह फैसला स्वागत योग्य है. लेकिन साथ ही जरूरी है कि उद्योग के लिए भी कोई ऐसा फैसला किया जाए, जो राहत भरा हो. अभी जो न्यूनतम मूल्य है, उसमें मिलों के लिए उत्पादन लागत की वसूली करना नामुकिन जैसा है. इससे चीनी मिलों के हितों को नुकसान है. उद्योग का नुकसान देश के लिए भी अच्छा नहीं है. इसलिए एमएसपी पर समीक्षा की सख्त जरूरत है.
इंडियन शुगर एंड बायो-एनर्जी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन यानी इस्मा की तरफ से इस मामले में एक फॉर्मूला सुझाया गया है. इस्मा के मुताबिक गन्ने के एफआरपी और एमएसपी को एक फॉर्मूले के साथ जोड़ दिया जाना चाहिए. ऐसा नहीं करने से उद्योग के सामने हर मोर्चे पर चुनौतियां आती रहेंगी.
इस्मा के महानिदेशक दीपक बल्लानी का कहना है कि गन्ने के एफआरपी और चीनी के एमएसपी के बीच एक पारदर्शी और ऑटोमेटिक संबंध स्थापित करने की तत्काल आवश्यकता है.
इस्मा ने एफआरपी का एक फॉर्मूला सुझाया है.
MSP of Sugar (in Rs/kg) = [ (FRP per unit recovery in Rs/kg sugar) X 1.16*]
*An increment of 0.01 for each subsequent year (हर दूसरे वर्ष 0.01 की बढ़ोतरी)
इस फॉर्मूले के मुताबिक, 2025-26 एसएस के लिए चीनी का एमएसपी 40.24 रुपये प्रति किलोग्राम होना चाहिए.
इस मांग को किसी भी तरह गलत नहीं माना जा सकता है. पिछले छह सालों में जरूरत की किसी भी चीज की कीमतों में वृद्धि देखनी चाहिए और उसके बाद उसकी तुलना चीनी के एमएसपी से करनी चाहिए. अपने आप तस्वीर साफ हो जाएगी. चीनी की कीमतों में पिछले एक दशक में 25 फीसदी इजाफा हुआ है. बाकी जरूरी चीजों या कृषि उत्पाद के दामों में कितना बदलाव आया है, उसके लिए नीचे टेबल में दिए आंकड़ों पर एक नजर डालने की जरूरत है.

स्रोत – प्राइस मॉनिटरिंग कमेटी, डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स.
जो आंकड़े दिख रहे हैं, उसके मुताबिक प्याज की कीमतों में पिछले दस वर्षों में 83 फीसदी, अरहर की दाल में 120, दूध में 66, चावल 57, गेहूं का आटा 65 और सरसों का तेल 55 फीसदी ऊपर गया है. अगर इसे सीएजीआर यानी चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर के हिसाब से देखें तो चीनी की दर 2.3 मिलेगी. बाकियों में प्याज 6.2, अरहर 8.2, दूध 5.2, चावल 4.6, गेहूं का आटा 5.1 और सरसों का तेल 4.5 है. यह कमोडिटी की बात हो गई. अगर क्रॉप यानी फसल के लिहाज से भी देखें तो आंकड़े बताते हैं कि गन्ने की कीमतों में 62 फीसदी बढ़ोतरी हुई है, सीएजीआर 4.9 है. बाकी फसलों में अरहर में 76 प्रतिशत, पैडी यानी धान 71 प्रतिशत, गेहूं 73 प्रतिशत और सरसों में 95 प्रतिशत बढ़ोतरी है. सीएजीआर में भी गन्ने के मुकाबले बाकी फसलों में बढ़ोतरी ज्यादा है.
इस्मा के महानिदेशक दीपक बल्लानी कहते हैं – एफआरपी और एमएसपी के बीच यह बढ़ता असंतुलन चीनी मिलों पर काफी वित्तीय दबाव डालता है, जिससे किसानों को समय पर भुगतान करने और कैपेसिटी बिल्डिंग में निवेश करने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है. इसे स्वीकार करते हुए, इस्मा ने लगातार चीनी के एमएसपी में संशोधन और गन्ने के एफआरपी के साथ इसको अलाइन करने की वकालत की है. इसके अलावा, इस्मा ने चीनी के एमएसपी के साथ गन्ने के एफआरपी के अलाइनमेंट के लिए एक व्यावहारिक लिंकेज फॉर्मूले का प्रस्ताव दिया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि गन्ने की कीमतों में किसी भी वृद्धि का चीनी की कीमतों में आनुपातिक वृद्धि से मिलान किया जाए.
आंकड़े, व्यावहारिकता और भविष्य के लिहाज से देखा जाए तो एमएसपी में संशोधन चीनी उद्योग की विकास क्षमता या वायबिलिटी सुनिश्चित करने में मदद देगा. इससे गन्ने की खेती पर निर्भर लाखों किसानों को भी मदद मिलेगी. इसलिए सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण है कि इस मांग पर विचार करे. एक संतुलित और टिकाऊ कृषि-अर्थव्यवस्था बनाए रखने के लिए इस संशोधन की सख्त जरूरत है.