Carrot Farming: सर्दियों की शुरुआत होते ही बाजार में रंग-बिरंगी गाजर चमकने लगती है. सलाद हो, सब्जी, अचार या फिर हलवा, गाजर हर रसोई की स्टार सब्जी बन जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि गाजर की कुछ खास किस्में ऐसी भी हैं जिन्हें किसान प्रॉफिट मशीन कहते हैं? क्योंकि कम मेहनत, कम खर्च और ज्यादा उपज–इनका यही फॉर्मूला है. ये किस्में खेत के कोने, घर के गमले या किसी छोटे हिस्से में भी आसानी से उगाई जा सकती हैं और शानदार कमाई करवाती हैं.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, गाजर की खेती के लिए हल्की, भुरभुरी और दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है. ऐसी मिट्टी में पानी जल्दी निकल जाता है, जिससे जड़ें जल्दी सड़ती नहीं हैं. अच्छा रंग व आकार पाने के लिए 18 से 24 डिग्री तापमान सबसे उपयुक्त माना जाता है. गाजर की उन्नत किस्मों में पूसा केसर, नेन्टिस, पूसा मंदाकिनी, सलेक्शन-5 और पूसा नयनज्योति शामिल हैं. ये किस्में कम मेहनत में अधिक उत्पादन देती हैं और बाजार में अच्छे दाम भी दिलाती हैं.
पोषक तत्वों से भरपूर, बाजार में हमेशा रहती है मांग
गाजर सिर्फ स्वादिष्ट ही नहीं, बल्कि पोषण का खजाना भी है. इसमें विटामिन A बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है, जो आंखों के लिए बेहद फायदेमंद है. इसके अलावा इसमें शर्करा, खनिज लवण, थायमिन और राइबोफ्लेविन विटामिन भी मिलते हैं. इसी वजह से इसका इस्तेमाल सलाद, अचार, मुरब्बा, हलवा, मिठाइयों और कई खास व्यंजनों में होता है. सर्दियों में इसकी लगातार बढ़ती मांग किसानों को और भी अच्छा लाभ दिलाती है.
बीज से लेकर खाद तक–सही तकनीक देगी दोगुनी पैदावार
गाजर की बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 8–10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. इसकी खेती में 5–6 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है.
पहली जुताई के समय 250 क्विंटल गोबर खाद डालना बहुत जरूरी है. इसके साथ–
- 60 किलो नत्रजन
- 40 किलो फॉस्फोरस
- 120 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर देने की सलाह दी जाती है.
पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें और बीज उगने तक नमी बनाए रखें. अगर समय पर निराई-गुड़ाई न की जाए तो खरपतवार पौधों की ग्रोथ रोक देते हैं.
रोग नियंत्रण और फसल की खुदाई
गाजर की फसल में कभी-कभी कटवर्म और पत्ती धब्बा रोग का प्रकोप हो जाता है. पत्ती धब्बा रोग में पत्तियों पर गोल-गोल भूरे धब्बे बन जाते हैं. इसे रोकने के लिए मेंकोजेब का छिड़काव कारगर माना जाता है. छाछ्या रोग में पत्तियों पर सफेद चूर्ण जैसे धब्बे दिखाई देते हैं, जिसे रोकने के लिए डाइनोकेप का उपयोग किया जाता है. खुदाई से पहले हल्की सिंचाई करने से गाजर निकालने में आसानी होती है. गाजर 60–85 दिनों में खुदाई योग्य हो जाती है और देरी करने पर इसका स्वाद व गुणवत्ता खराब हो सकती है. अच्छी खेती से 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है.