भारत में चाय से लेकर मिठाइयों तक चीनी का बहुत इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन क्या आप इसके इतिहास के बारे में जानते हैं? दरअसल गन्ने के रस से गुड़ और भूरी शक्कर (ब्राउन शुगर) बनाना हजारों साल पहले शुरू हो गया था. ऐतिहासिक प्रमाणों के मुताबिक, लगभग 2,500 साल पूर्व भारत में केमिकल रूप से रिफाइन शक्कर का निर्माण हुआ. इसके बाद में चीन, फारस और इस्लामी देशों के रास्ते भूमध्यसागरीय देशों तक पहुंचाया गया. मध्य काल में शक्कर को बेहद दुर्लभ और मूल्यवान माना जाता था. इसे केवल राजा-महाराजाओं और बड़े व्यापारियों तक सीमित रखा गया था. इसी कारण इसे ‘सफेद सोना’ भी कहा गया और भारत में भी कई सालों तक राशनिंग के तहत ही चीनी मिलती रही है.
सफेद चीनी की कहानी
सफेद, दानेदार चीनी केवल गन्ने और चुकंदर से ही बनाई जा सकती है. यूरोपीय देशों में 13वीं सदी के बाद मिस्र में सफेद चीनी बनाने की तकनीक विकसित की गई, जो बाद में चीन और फिर भारत पहुंची. मार्को पोलो के लिखे यात्रा-वृत्तांतों में उल्लेख किया गया है कि चीन के शासक कुबलई खां ने मिस्र से कारीगर बुलवाकर सफेद चीनी बनवाना सिखाया. यही तकनीक मुगल काल में भारत आई, जिससे इसे ‘चीनी’ कहा जाने लगा.
चीनी का कड़वा इतिहास
15वीं शताब्दी में पुर्तगाली व्यापारियों ने कैरीबियन द्वीपों में गन्ने की खेती और शक्कर उत्पादन के लिए अफ्रीका में मौजूद गुलामों का इस्तेमाल किया. जल्द ही अन्य यूरोपीय देश भी इस व्यापार में शामिल हो गए और अगले 300 सालों तक दासों के खून-पसीने से दानेदार चीनी का उत्पादन होता रहा. इस प्रक्रिया ने चीनी के इतिहास को कड़वा बना दिया.
भारतीय ग्रंथों में शक्कर
आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ और कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में गन्ने से गुड़ और शक्कर बनाने की विधियों का उल्लेख मिलता है. चरकसंहिता में शक्कर के औषधीय गुणों का वर्णन है, जैसे यह उल्टी, अतिसार और कफ को दूर करती है. कौटिल्य ने गुड़, खांड और पांच तरह की शक्कर का उल्लेख किया है, जो शक्कर निर्माण के सबसे पुराने सबूतों में से एक है.
चीनी के औषधीय गुण
इतिहास में चीनी का इस्तेमाल न केवल मिठास के लिए, बल्कि घावों को भरने, बुखार, खांसी और आंखों की बीमारियों के उपचार में भी किया जाता था. सीमित मात्रा में चीनी स्वाद बढ़ाती है, लेकिन अत्यधिक सेवन से स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है.