अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ीं यूरिया की कीमतें, क्या भारत की अचानक मांग बनी वजह?

यूरिया की कीमतों में यह उछाल सीधे किसानों की जेब पर असर नहीं डालेगा, क्योंकि भारत में सरकार यूरिया को सब्सिडी के जरिए सस्ता उपलब्ध कराती है. लेकिन सरकारी खजाने पर भारी बोझ बढ़ेगा.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 29 Aug, 2025 | 07:40 AM

भारत में यूरिया की मांग अचानक बढ़ने और घरेलू स्टॉक्स कम होने की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में यूरिया की कीमतों में जोरदार उछाल देखा जा रहा है. किसानों की जरूरत पूरी करने के लिए सरकार ने अगस्त की शुरुआत में 20 लाख टन (2 एमटी) यूरिया खरीदने का फैसला किया और अब 4 सितंबर तक एक और 20 लाख टन खरीदने की तैयारी कर रही है.

अंतरराष्ट्रीय दामों में तेजी

मध्य-पूर्व (Middle East) में यूरिया का दाम 28 अगस्त को 506.25 डॉलर प्रति टन (FOB) दर्ज किया गया. अगर इसमें माल ढुलाई और बीमा का खर्च जोड़ दिया जाए तो यह भारत के लिए करीब 536 डॉलर प्रति टन (CFR) बैठता है. विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले दिनों में भारत को 500 डॉलर प्रति टन के आसपास का रेट भी मिल सकता है.

पिछले साल की तुलना में इस बार जून में यूरिया का औसत भाव 15 फीसदी ज्यादा रहा. जून 2024 में यह दर 395 डॉलर प्रति टन थी, जबकि इस साल जून में यह 455 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई.

क्यों बढ़ी भारत की जरूरत?

  • भारत में इस बार खरीफ सीजन में किसानों की फसल पैटर्न में बदलाव हुआ है.
  • धान की खेती 7.6 फीसदी बढ़कर 420.41 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है.
  • मकई (मक्का) की बुवाई 11.7 फीसदी बढ़कर 93.34 लाख हेक्टेयर हो गई है.

चूंकि धान और मक्का जैसी फसलें ज्यादा यूरिया खाती हैं, इसलिए मांग में अचानक उछालगया. वहीं, तिलहन और कपास जैसी फसलों का रकबा घटा है, जिनमें यूरिया की खपत अपेक्षाकृत कम होती है.

घरेलू उत्पादन और स्टॉक की स्थिति

वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का घरेलू यूरिया उत्पादन 30.7 मिलियन टन रहा, जबकि आयात 5.6 मिलियन टन. पिछले साल का बचा हुआ स्टॉक होने की वजह से सरकार खपत को संभाल पाई, जो लगभग 38.79 मिलियन टन रही. लेकिन इस बार हालात अलग हैं.

  • 14 अगस्त को देश में यूरिया का स्टॉक 2.96 मिलियन टन ही बचा था, जो पिछले साल की तुलना में 61 फीसदी कम है.
  • अप्रैल-जून 2025 के दौरान आयात में 12.7 फीसदी की गिरावट और उत्पादन में 10.2 फीसदी की कमी दर्ज की गई.

अचानक आयात क्यों बना समस्या?

विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार ने एक ही बार में बड़ी मात्रा में आयात का फैसला लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम बढ़ाने में योगदान दिया. अगर यह आयात महीने-दर-महीने तय किया जाता, तो दामों पर इतना असर नहीं पड़ता.

15 अगस्त को नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड (NFL) ने 10 लाख टन यूरिया के लिए टेंडर निकाला, जो देश के पूर्वी और पश्चिमी बंदरगाहों पर उतारा जाएगा. आने वाले दिनों में सरकार और भी बड़े ऑर्डर ला सकती है.

किसानों पर असर

यूरिया की कीमतों में यह उछाल सीधे किसानों की जेब पर असर नहीं डालेगा, क्योंकि भारत में सरकार यूरिया को सब्सिडी के जरिए सस्ता उपलब्ध कराती है. लेकिन सरकारी खजाने पर भारी बोझ बढ़ेगा. वहीं, समय पर आपूर्तिहोने पर किसानों को ब्लैक मार्केटिंग और लंबी कतारों जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

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