खेतों की हरियाली, अच्छी फसल और भरपूर पैदावार का सपना हर किसान देखता है. लेकिन यह सपना तभी पूरा होता है जब समय पर उर्वरक (Fertiliser) मिले वो भी सही मात्रा में और सही कीमत पर. भारत जैसे कृषि प्रधान देश में उर्वरकों की मांग हर साल बढ़ रही है. हाल में अप्रैल 2025 में जो आंकड़े सामने आए हैं, वे हैरान करने वाले हैं. इस बार उर्वरकों की बिक्री बढ़ी है, लेकिन उत्पादन घटा है. यानी किसान मांग तो कर रहे हैं, लेकिन फैक्ट्रियों से सप्लाई पहले जैसी नहीं आ रही. सवाल ये उठता है- क्या आने वाले समय में किसान परेशान होंगे?
बिक्री के आंकड़े
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल 2025 में चार प्रमुख उर्वरकों यूरिया, DAP (डायअमोनियम फॉस्फेट), MOP (म्यूरिएट ऑफ पोटाश), और कॉम्प्लेक्स फर्टिलाइजर की कुल खपत 17.4 फीसदी बढ़कर 18.92 लाख टन हो गई. पिछले साल यह 16.12 लाख टन थी.
यूरिया: 15.7 फीसदी की बढ़ोतरी, 12.19 लाख टन (पिछले साल 10.54 लाख टन)
MOP: 58.3 फीसदी की जबरदस्त बढ़ोतरी, 0.95 लाख टन
कॉम्प्लेक्स फर्टिलाइजर: 31.6 फीसदी की बढ़ोतरी, 3.58 लाख टन
DAP: केवल एकमात्र उर्वरक जिसकी बिक्री 2.7 फीसदी घटी, 2.2 लाख टन
लेकिन जरूरी बात ये है कि अप्रैल के लिए अनुमानित मांग 39.83 लाख टन थी, जो वास्तविक बिक्री से काफी ज्यादा है. इससे सवाल उठते हैं कि जब उर्वरक उपलब्ध थे, तो क्या कारण रहा कि बिक्री अपेक्षा से कम रही?
उत्पादन गिरा, चिंता बढ़ी
जहां मांग और बिक्री बढ़ी, वहीं उत्पादन में 4.2 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. कुल उत्पादन 38.09 लाख टन से घटकर 36.48 लाख टन रह गया.
यूरिया: 13.4 फीसदी गिरकर 21.89 लाख टन
कॉम्प्लेक्स: 3.7 फीसदी गिरकर 6.99 लाख टन
DAP: उल्टा ट्रेंड- 51.9 फीसदी की बढ़त, 3.13 लाख टन
SSP (सिंगल सुपर फॉस्फेट): 28.2 फीसदी की बढ़त, 3.83 लाख टन
अमोनियम सल्फेट: थोड़ा बढ़कर 0.64 लाख टन
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यही ट्रेंड जारी रहा, तो खरीफ सीजन में मांग के मुकाबले आपूर्ति कमजोर रह सकती है.
आयात में मिला-जुला प्रदर्शन
भारत अब भी उर्वरकों के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है और यही वजह है कि विदेशों से आयात इस क्षेत्र में अहम भूमिका निभाता है. अप्रैल 2025 के आंकड़े देखें तो कुल उर्वरक आयात 7.85 लाख टन रहा, जो पिछले साल के 7.82 लाख टन के मुकाबले लगभग स्थिर है. हालांकि, अलग-अलग उर्वरकों में उतार-चढ़ाव साफ दिख रहा है.
यूरिया का आयात 48 फीसदी घटकर 1.56 लाख टन रह गया, जो पहले 3 लाख टन था. MOP (म्यूरिएट ऑफ पोटाश) का आयात भी 66.7 फीसदी की भारी गिरावट के साथ सिर्फ 0.27 लाख टन पर आ गया. वहीं, DAP (डायअमोनियम फॉस्फेट) ने थोड़ा सुधार दिखाया और 3.6 फीसदी की बढ़त के साथ 2.89 लाख टन हो गया. सबसे चौंकाने वाली बढ़ोतरी कॉम्प्लेक्स फर्टिलाइजर में देखने को मिली, जिसका आयात 156.6 फीसदी बढ़कर 3.13 लाख टन हो गया.
ये आंकड़े साफ इशारा करते हैं कि भारत की उर्वरक नीति अब भी वैश्विक बाजार पर काफी हद तक निर्भर है. आयात में होने वाले उतार-चढ़ाव का असर देश में उर्वरकों की उपलब्धता और कीमतों पर सीधा पड़ता है, जिसका प्रभाव आखिर में किसानों तक पहुंचता है.
मानसून और उर्वरकों की तैयारी
इस बार मानसून सामान्य से ज्यादा रहने का अनुमान है. ऐसे में खेतों की तैयारी के लिए उर्वरकों की समय पर उपलब्धता बेहद जरूरी होगी. 24 मई को ही केरल में मानसून की शुरुआत के बाद देश में औसत से तीन गुना अधिक वर्षा दर्ज की गई है जो खेती के लिहाज से एक सकारात्मक संकेत है.