खाली फली की मार से कैसे बचाएं मूंगफली की फसल, अपनाएं ये खास उपाय

अक्सर देखा गया है कि या तो खेतों में पानी की कमी हो जाती है या फिर जरूरत से ज्यादा पानी भर जाता है. दोनों ही स्थितियों में पौधों की जड़ें और फलियां प्रभावित होती हैं. फूल और फली बनने के समय खेत में नमी बनी रहनी चाहिए लेकिन पानी जमा नहीं होना चाहिए.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 16 May, 2025 | 10:43 AM

जब हम मूंगफली की खेती करते हैं, तो हम चाहते हैं कि हर फली में भरपूर दाना हो, ताकि फसल अच्छा उत्पादन दे. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि मूंगफली की कुछ फलियां बिल्कुल खाली निकलती हैं यानी उनके अंदर दाना नहीं बनता. इसे ही कहा जाता है “ब्लैंक पॉड” यानी खाली फली. यह एक आम लेकिन चिंता की बात है, क्योंकि इससे उपज और गुणवत्ता दोनों पर असर पड़ता है. तो चलिए जानते हैं कैसे किसान इस समस्या से मुक्ति पा सकते हैं.

खाली फली क्यों होती है?

परागण (Pollination) में कमी

अगर फूलों में सही तरीके से परागण नहीं होता है, तो फलियां विकसित नहीं होतीं और खाली रह जाती हैं. यह तब होता है जब खेत में परागण करने वाले कीट (जैसे मधुमक्खियां) कम होते हैं. इसके साथ ही मौसम बहुत गर्म, ठंडा या नम हो, जिससे परागण में बाधा आती है.

मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी

मूंगफली के लिए मिट्टी में सही मात्रा में पोषक तत्व होना जरूरी है, जैसे कैल्शियम, बोरॉन, फॉस्फोरस-अगर इनकी कमी होती है, तो पौधा स्वस्थ नहीं होता और फलियां खाली रह जाती हैं.

कीटों का हमला

कुछ कीट जैसे थ्रिप्स, माइट्स ये पौधों की पत्तियों और फूलों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे फली नहीं बन पाती या अधूरी बनती है.

बीमारियां

मूंगफली में कुछ बीमारियां भी खाली फली का कारण बनती हैं, जैसे लीफ स्पॉट (पत्तों पर धब्बे), रूट रॉट (जड़ों का सड़ना)इनसे पौधा कमजोर हो जाता है और सही विकास नहीं हो पाता.

इसका समाधान-

पोषण की कमी न होने दें

मूंगफली के अच्छे विकास के लिए मिट्टी में जरूरी पोषक तत्वों की सही मात्रा होनी चाहिए. अक्सर बोरॉन, कैल्शियम और फॉस्फोरस जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के कारण फलियां विकसित नहीं हो पातीं. इसलिए जरूरी है कि किसान भाई मिट्टी की समय-समय पर जांच कराएं और उसी के अनुसार खाद डालें. संतुलित पोषण मिलने से पौधा मजबूत होता है और फलियों में अच्छे से दाना भरता है.

कीटों से रखें फसल को सुरक्षित

मूंगफली के फूल और कोमल हिस्सों पर कई बार कीट जैसे थ्रिप्स और माइट्स हमला कर देते हैं, जिससे पौधा कमजोर हो जाता है और फलियां अधूरी या खाली रह जाती हैं. इन कीटों से बचाव के लिए किसान जैविक दवाओं का उपयोग कर सकते हैं, जैसे नीम तेल या गोमूत्र आधारित छिड़काव. यदि कीटों का प्रकोप ज्यादा हो तो कृषि विशेषज्ञ की सलाह लेकर उचित रासायनिक कीटनाशक भी छिड़का जा सकता है.

पानी का रखें संतुलन

अक्सर देखा गया है कि या तो खेतों में पानी की कमी हो जाती है या फिर जरूरत से ज्यादा पानी भर जाता है. दोनों ही स्थितियों में पौधों की जड़ें और फलियां प्रभावित होती हैं. फूल और फली बनने के समय खेत में नमी बनी रहनी चाहिए लेकिन पानी जमा नहीं होना चाहिए. सिंचाई के बाद खेत में जल निकासी की व्यवस्था जरूर करें, ताकि फसल को नमी भी मिले और जड़ें सड़ें नहीं.

एक ही फसल बार-बार न बोएं

हर बार एक ही फसल बोने से मिट्टी में जरूरी तत्व धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं और फसल पर कीट व रोगों का दबाव बढ़ता है. इसलिए किसान भाइयों को चाहिए कि वे फसल चक्र अपनाएं यानी मूंगफली के बाद कुछ अलग प्रकार की फसल लगाएं जैसे दलहन, जिससे मिट्टी की सेहत बनी रहे और पैदावार भी बेहतर हो.

परागण में मदद करें

मूंगफली के पौधों में अच्छे फल का निर्माण तभी होता है जब फूलों में ठीक से परागण होता है. इसके लिए मधुमक्खियों जैसे परागण करने वाले कीटों का खेत में रहना बहुत जरूरी है. किसान भाई खेत के पास फूलदार पौधे लगाएं और छिड़काव करते समय कीटों के लिए हानिकारक रसायनों का प्रयोग कम करें. इससे प्राकृतिक परागण में सहायता मिलेगी और फलियों में दाना बनने की संभावना बढ़ेगी.

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