कश्मीर में मुर्गी पालन पर संकट, टोल टैक्स हटने से लाखों की रोजी-रोटी खतरे में

कश्मीर का मुर्गी पालन उद्योग टोल टैक्स हटने से संकट में, सस्ते आयात ने किसानों की कमर तोड़ी दी है.

धीरज पांडेय
नोएडा | Published: 13 Apr, 2025 | 08:32 AM

कश्मीर का मुर्गी पालन उद्योग मुश्किलों के भंवर में फंस गया है. कभी गांवों की शान कहलाने वाला ये धंधा अब सस्ते आयात और टोल टैक्स हटने की मार से कराह रहा है. इससे हजारों किसान अपनी रोजी बचाने के लिए जूझ रहे हैं. इस पर कश्मीर वैली पोल्ट्री फार्म एसोसिएशन का कहना है कि पहले स्थानीय मुर्गियां बाजार का औसतन 85 फीसदी हिस्सा संभालती थीं, अब सिर्फ 20 फीसदी बची हैं. यह गिरावट बेहद ज्यादा है. क्या है इस संकट की पूरी कहानी? जो लाखों परिवारों को हिला रही है. चलिए समझते हैं.

टोल टैक्स हटना क्यों पड़ रहा है भारी

साल 2020 में लखनपुर टोल पोस्ट हटने से मुसीबत आई. पहले हर आयातित मुर्गी पर 9 रुपये टैक्स लगता था, जो स्थानीय किसानों को सस्ते आयात से बचाता था. टैक्स हटते ही पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों से सस्ता चिकन कश्मीर में भर गया. केवीपीएफए के अध्यक्ष गुलाम मोहम्मद भट ने द बिजनेस लाइन में बताते हैं कि बाहर का ड्रेस्ड चिकन सस्ता बिकता है. हमारी मुर्गियां उनके सामने कैसे टिकें? कश्मीर में हर साल 1.5 करोड़ ड्रेस्ड चिकन खाए जाते हैं, लेकिन अब ज्यादातर बाहर से आ रहे हैं. इसके चलते वहां के लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

4 से 5 लाख लोगों को मिलता था रोजगार

कश्मीर घाटी में लगभग 8,000 पोल्ट्री फार्म हैं, जो 4-5 लाख लोगों को रोजगार देते हैं. लेकिन सस्ता आयात इनकी कमर तोड़ रहा है. लागत बढ़ रही है, कर्ज चढ़ रहा है और मुनाफा गायब है. भट ने बताया कि पहले हम आत्मनिर्भर थे, अब कर्ज में डूब रहे हैं.वहीं पशुपालन विभाग के मुताबिक, कश्मीर में औसतन 22-23 लाख मुर्गियां हैं, जिनमें 25 फीसदी उन्नत नस्ल की हैं. जिससे हर महीने 5-7 लाख ब्रॉयलर तैयार होते हैं, यानी 5-7 लाख किलो चिकन तैयार होता है. लेकिन सस्ता आयात इनका बाजार छीन रहा है.

टोल टैक्स छीन रहा है लाखों परिवार की रोजी

भट का कहना है कि सरकार फिर से टोल टैक्स लगाएं, वरना ये उद्योग खत्म हो जाएगा. क्योंकि सस्ते आयात ने न सिर्फ किसानों की कमाई छीनी, बल्कि लाखों परिवारों की रोजी पर सवाल उठा दिया. अगर सरकार कदम नहीं उठाएगी, तो कश्मीर का पोल्ट्री उद्योग इतिहास बन जाएगा.

किसानों की क्या मांग है?

किसान चाहते हैं कि स्थानीय मुर्गियों को बढ़ावा मिले और टैक्स के साथ-साथ बाजार में मदद भी चाहिए. ये खबर सिर्फ मुर्गियों की नहीं, बल्कि उन लाखों हाथों की है, जो कश्मीर की मिट्टी में मेहनत कर रहे हैं.

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