सोशल मीडिया पर हो रही प्रतिबंधित धान की बिक्री, हरियाणा से पौधे लाकर किसान कर रहे रोपाई

पंजाब में प्रतिबंध के बावजूद, PUSA-44 जैसी अधिक पानी खपत वाली धान की किस्में सोशल मीडिया के जरिए हरियाणा से तस्करी कर लाई जा रही हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि यह किस्म अभी भी लगभग 15 फीसदी क्षेत्र में बोई जा रही है.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 26 Jun, 2025 | 11:45 AM

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंधित धान की किस्में खुलेआम बेची जा रही हैं, जिससे पंजाब में गिरते भूजल स्तर को रोकने के लिए बनाए गए नियमों की प्रभावशीलता पर सवाल उठने लगे हैं. अधिकारियों का कहना है कि हरियाणा के किसान PUSA-44 जैसी पानी ज्यादा खर्च करने वाली किस्मों को सोशल मीडिया के जरिए बेच रहे हैं और ये पौधे चोरी-छिपे पंजाब में लाए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि किसान हरियाणा से सटे गांवों से लाकर पटियाला, संगरूर, बरनाला, लुधियाना, मानसा और मोगा जैसे जिलों में धड़ल्ले से PUSA-44 की रोपाई कर रहे हैं.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पंजाब में अभी भी लगभग 15 फीसदी धान के रकबे में PUSA-44 की खेती हो रही है. इस किस्म की खासियत है कि यह अधिक उत्पादन देती है, लेकिन पानी की खपत भी काफी ज्यादा होती है. इसे पकने में लगभग 160 दिन लगते हैं और गर्मियों में इसकी खेती से पानी की खपत 40 फीसदी तक बढ़ जाती है. हालांकि, कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सरकार ने प्रतिबंधित हाइब्रिड बीजों की आपूर्ति पर काफी हद तक रोक लगा दी है.

किसानों के पास हो सकते हैं पुराने बीज

पटियाला के मुख्य कृषि अधिकारी की माने तो PUSA-44 किस्म बहुत कम क्षेत्र में बोई गई है, क्योंकि कुछ किसानों के पास पुराने बीज हो सकते हैं. साथ ही, लंबी अवधि वाली किस्मों की बुवाई का समय लगभग खत्म हो चुका है, क्योंकि आमतौर पर इन्हें जून के दूसरे हफ्ते तक बोया जाता है.

PUSA-44 की मांग अचानक बढ़ गई

इस बीच कृषि विभाग के कुछ अधिकारियों ने माना कि धान की रोपाई की तारीख को पहले करने के फैसले का उल्टा असर पड़ा है. यह नीति किसानों को सितंबर के मध्य तक जल्दी कटाई के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से लाई गई थी, लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि लंबी अवधि वाली किस्मों जैसे PUSA-44 की मांग अचानक बढ़ गई. ऐसे भी पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एसएस जोहल बीएस ढिल्लों और केएस औलख जैसे कृषि विशेषज्ञ पहले ही धान की रोपाई की तारीख आगे बढ़ाने पर चिंता जता चुके हैं. उन्होंने चेताया था कि इससे किसान ज्यादा पानी खर्च करने वाली किस्मों की ओर लौट सकते हैं.

एक किलो चावल उगाने में 3,367 लीटर पानी की जरूरत

कृषि विभाग के अनुसार, 24 जून 2025 तक पंजाब में 15.24 लाख हेक्टेयर में धान की बुवाई हो चुकी है, जो पिछले साल इसी समय की तुलना में दोगुनी से भी ज्यादा है. CACP के आंकड़ों के अनुसार, एक किलो चावल उगाने में 3,367 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है, जो पर्यावरणविदों और नीति-निर्माताओं के लिए गंभीर चिंता का विषय है.

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Published: 26 Jun, 2025 | 11:40 AM

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