चना में लगी नई बीमारी, पूरी फसल हो सकती है चौपट..बचाव के लिए किसान करें ये उपाय
रोग से बचाव के लिए किसान रोग-रोधी किस्में जैसे RSG-888, CSJD-884, RSG-963, GNG-1958, CSJK-174 लगाएं. हालांकि, सबसे असरदार तरीका है बीज और मिट्टी का उपचार. साथ ही रोग से बचाव के लिए सबसे पहले खेत में अच्छी जल निकासी होनी चाहिए.
Agriculture News: रबी सीजन की शुरुआत होते ही किसानों ने चने की बुवाई शुरू कर दी है. कई राज्यों में तो चने के बीज अंकुरित होकर पौधों के रूप ले चुके हैं. इसके साथ ही फसल में जड़ गलन (Root Rot) और उखठा (Wilt) जैसे रोग लगने की शिकायतें भी आने लगी हैं. इससे किसानों की मेहनत पर खतरा मंडरा रहा है. किसानों कहना है कि अगर समय पर कीटनाशकों का छिड़काव और इलाज नहीं किया गया, तो पूरी फसल बर्बाद भी हो सकती है. हालांकि, कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को समय रहते सतर्क रहने और कुछ जैविक व वैज्ञानिक उपाय अपनाने की सलाह दी है.
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर किसान लगातार एक ही फसल पैटर्न अपनाते हैं, तो कीट और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए फसल चक्र और रोकथाम के उपाय बहुत जरूरी हैं. कृषि अधिकारियों के अनुसार, ये दोनों रोग फफूंद से फैलते हैं, जो पौधों की जड़ों को कमजोर कर देते हैं. शुरुआत में पौधे की ऊपरी पत्तियां मुरझाने लगती हैं, फिर तना सूखकर मर जाता है. इसका एक प्रमुख लक्षण यह है कि तने को जड़ के पास से काटने पर काले धागे जैसी संरचना दिखाई देती है. इसका मतलब है कि फफूंद ने पौधे के संवहनी ऊतकों को बंद कर दिया है. ये रोग आमतौर पर पानी भरे खेतों में ज्यादा फैलते हैं.
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खेत में अच्छी जल निकासी होनी चाहिए
रोग से बचाव के लिए सबसे पहले खेत में अच्छी जल निकासी होनी चाहिए, ताकि पानी जमा न हो. क्योंकि पानी का जमाव फफूंद के बढ़ने के लिए अनुकूल माहौल बनाता है. इसके अलावा, किसान फसल चक्र अपनाएं और पहले से प्रभावित क्षेत्रों में चना की जगह सरसों या अलसी जैसी अंतर फसल लगाएं. लगातार एक ही खेत में चना बोने से मिट्टी में रोगजनकों की संख्या बढ़ जाती है, जिससे रोग और फैलते हैं.
बुवाई से पहले करें मिट्टी का उपचार
रोग से बचाव के लिए किसान रोग-रोधी किस्में जैसे RSG-888, CSJD-884, RSG-963, GNG-1958, CSJK-174 लगाएं. हालांकि, सबसे असरदार तरीका है बीज और मिट्टी का उपचार. अगर किसान मिट्टी का उपचार करना चाहते हैं, तो सबसे पहले 100 किलो गोबर खाद में 2.5 किलो ट्राईकोडर्मा मिलाकर 10 से 15 दिन छाया में रखें, फिर बुवाई के समय मिट्टी में मिलाएं. ट्राईकोडर्मा एक लाभकारी फफूंद है जो हानिकारक फफूंदों को खत्म करता है.
किस तरह करें बीज का उपचार
वहीं, बीज उपचार के लिए बुवाई से पहले 1 ग्राम कार्बन्डाजिम और 2.5 ग्राम थाइरम या 10 ग्राम ट्राईकोडर्मा प्रति किलो बीज मिलाएं. किसी भी समस्या होने पर किसान अपने नजदीकी कृषि अधिकारी या पर्यवेक्षक से संपर्क कर फसल सुरक्षा की सही सलाह ले सकते हैं. इन सावधानियों को अपनाकर किसान अपनी फसल को रोगमुक्त और अधिक लाभदायक बना सकते हैं.