Diwali 2025: ग्रेटर नोएडा के इस गांव में लोग नहीं मनाते दिवाली, खुद को बताते हैं रावण का वंशज

दिवाली के दिन हर हिंदू परिवार में मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा होती है, भक्त भगवान से धन, वैभव, सुख और समृद्धि की कामना करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के ही एक कोने में ऐसा गांव भी है जहां दिवाली के दिन रावण की याद में पूजा की जाती है. आइए जानते हैं कि कहां है ये गांव.

अनामिका अस्थाना
नोएडा | Published: 20 Oct, 2025 | 06:15 AM

Diwali 2025: आज यानी 20 अक्टूबर 2025 को पूरे देश में लोग पूरे हर्ष, उल्लास और उत्साह के साथ दिवाली का त्योहार मना रहे हैं. शाम के समय लक्ष्मी पूजन के बाद पटाखे जलाए जाएंगे. हर तरफ लोगों के चेहरों पर अपनों के साथ त्योहार मनाने की खुशी नजर आएगी. लेकिन वहीं देश के एक हिस्से में ऐसा गांव भी है जहां लोग दिवाली के दिन रावण की पूजा करते हैं. खास बात ये है कि यहां के लोग  खुद को रावण का वंशज मानते हैं और इस जगह रावण का एक बहुत प्राचीन मंदिर भी है जिसमें गांव के लोग रावण की पूजा करते हैं. आइए जानते हैं कि कौन सा है ये गांव और क्यों होती है यहां रावण की पूजा.

रावण का आत्मा की शांते के लिए पूजा

उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडी जिले के बिसरख गांव में रहने वाले लोग दिवाली का त्योहार नहीं मनाते हैं. दरअसल, यहां के रहने वाले ग्रामीण खुद को लंकापति रावण का वंशज बताते हैं. स्थानीय ग्रामीणों का मानना है कि रावण का जन्म इसी जगह हुआ था. इसलिए यहां के लोग रावण के हारने की खुशियां नहीं मनाते हैं. दिवाली और दशहरा के दिन खासतौर पर गांव के लोग रावण की आत्मा की शांते के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं.

दिवाली- शोक का दिन

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बिसरख गांव में रहने वाले बुजुर्ग बताते हैं कि दिवाली उनके लिए उत्सव का दिन नहीं बल्कि शोक का दिन है, क्योंकि इसी दिन भगवान राम ने लंका पर विजय प्राप्त की थी और रावण का अंत हुआ था. यहां के लोगों का कहना है कि रावण एक महान ज्ञानी और शिवभक्त था, जिसे गलत तरीके से सिर्फ खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया गया. यही कारण है कि बिसरख गांव के लोग रावण को अपना वंशज मानकर उसकी पूजा करते हैं और उसी के सम्मान में दिवाली जैसे त्योहार को नहीं मनाते हैं.

रावण से जुड़ी पौराणिक कथा

ऐसा माना जाता है कि गांव का नाम बिसरख रावण के पिता विश्वा के नाम पर रखा गया था और रावण का जन्म भी यहीं हुआ था. यही कारण है कि इस गांव से सालों से दिवाली न मनाने की परंपरा चलती आ रही है. कुछ लोगों का कहना है कि यहां के लोग कम से कम 10 दिन तक रावण की मृत्यु का शोक मनाते हैं. दशहरा पर भी यहां के ग्रामीण रामलीला कै मंचन नहीं करते और न ही रावण के पुतले जलाते हैं.

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Published: 20 Oct, 2025 | 06:15 AM

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