Mustard cultivation: धान कटाई करने के बाद किसानों ने सरसों की बुवाई शुरू कर दी है. लेकिन कई ऐसे किसान हैं, जो फैसला नहीं कर पा रहे हैं कि सरसों की कौन सी उन्नत किस्मों का चुनाव किया जाए, ताकि अच्छी पैदावार हो. लेकिन अब ऐसे किसानों की चिंता करने की जरूरत नहीं है. क्योंकि आज मैं सरसों की कुछ ऐसी उन्नत किस्मों के बारे में बात करने जा रहा हूं, जिसकी बुवाई करने पर बंपर पैदावार होगी. खास बात यह है कि इन किस्मों की सिंचाई भी कम करनी पड़ती है. यानी कम खर्च में ज्यादा पैदावार होगी. बस इसके लिए किसानों को वैज्ञानिक तरीके से खेती करनी होगी.
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, सरसों की खेती के लिए उन्नत किस्मों का चयन करना बहुत ही जरूरी है. साथ ही बुवाई करने के बाद फसल की सही देखरेख भी आवश्यक है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, सरसों की खेती रबी सीजन में सबसे फायदेमंद मानी जाती है. ऐसे किसानों को धान की कटाई करने के साथ ही सरसों की बुवाई शुरू कर देनी चाहिए. इसकी खासियत यह है कि सिर्फ चार से पांच महीने में फसल तैयार हो जाती है और गेहूं की कटाई से पहले किसान सरसों की पैदावार ले सकते हैं.
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बलुई दोमट मिट्टी है सबसे बेस्ट
एक्सपर्ट के अनुसार, सरसों की खेती के लिए 15 से 25 डिग्री तापमान सबसे उपयुक्त है और बलुई दोमट मिट्टी इसमें सबसे बेहतर परिणाम देती है. सरसों की खेती के लिए सबसे पहले खेत की अच्छी जुताई और पाटा लगाना जरूरी है. बीज बोने के लिए सामान्य खेत में प्रति एकड़ 2 किलोग्राम और सिंचाई कम वाले खेत में 3 किलोग्राम बीज डालना चाहिए. बीज की मात्रा सरसों की किस्म और अवधि पर भी निर्भर करती है, इसलिए बोवाई से पहले कृषि विशेषज्ञ की सलाह लेना जरूरी है.
इतने बाद करें पहली सिंचाई
सिंचाई की बात करें तो पहली सिंचाई बुवाई के 25-30 दिन बाद और दूसरी फलियों के भरने के समय करनी चाहिए. वहीं, बेहतर उपज के लिए किसान पूसा अग्रणी, पूसा तारक, पूसा सरसों 25, 27, 28 जैसी उन्नत किस्मों का चयन कर सकते हैं. कम खर्च, बेहतर देखभाल और अधिक पैदावार के लिए खेती के दौरान नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें.
पूसा तारक की खासियत
अगर पूसा तारक की खासियक के बारे में बात करें तो यह सरसों एक कम अवधि वाली किस्म है, जो जल्दी पकती है और इसका तेल अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार उच्च गुणवत्ता वाला होता है. यह लगभग 121 दिनों में तैयार हो जाती है और प्रति एकड़ लगभग 15 से 20 क्विंटल उपज देती है. इसमें करीब 40 फीसदी तेल होता है. यह किस्म बहुफसली प्रणाली के लिए भी उपयुक्त है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां जनवरी में सब्जियां या गन्ना उगाई जाती हैं.