जामुन की बागवानी करा रही किसानों की खूब कमाई, ICAR की नई किस्मों की लिस्ट देखिए

जामुन की बागवानी किसानों के लिए मुनाफे का विकल्प बनकर उभरी है. इसके औषधीय गुणों के कारण इसका उपयोग दवा और खाद्य उद्योगों में बड़े पैमाने पर होता है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) ने जामुन की कई उन्नत किस्में विकसित की हैं, जो किसानों के लिए खेती को आसान और लाभकारी बना रही हैं.

Kisan India
नोएडा | Published: 15 Jun, 2025 | 06:12 PM

आज के दौर में जब खेती में पारंपरिक फसलों से किसानों को उम्मीद के मुताबिक मुनाफा नहीं मिल पा रहा है, ऐसे में कई किसान अब वैकल्पिक फसलों की ओर रुख कर रहे हैं. इन्हीं में एक हैं जामुन की बागवानी जो किसानों की आय को बढ़ाने मददगार साबित हो रहा हैं. यह फल न केवल खाने में स्वादिष्ट होता हैं बल्कि औषधीय गुणों से भरपूर होता है. बाजार में इसकी उपलब्धता नियमित समय तक होने के कारण इसकी मांग हमेशा बनी रहती हैं. यह फल से लेकर बीजों तक का उपयोग दवा और खाद्य उद्योगों में बड़े पैमाने पर होता है.

सही किस्मों और तकनीकों को अपनाकर किसान जामुन से अच्छी आमदनी कमा सकते हैं. यह मधुमेह नियंत्रण से लेकर पाचन सुधार तक, जामुन के फायदे अनगिनत हैं. इसी कड़ी में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) और अन्य कृषि केंद्रों ने जामुन की कई उन्नत किस्में विकसित की हैं, जो किसानों के लिए खेती को और आसान और लाभकारी बना रही हैं. आइए जानते हैं जामुन की कुछ बेहतरीन किस्मों के बारे में.

CISH J-37 (जामवंत)

यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR-CISH), लखनऊ द्वारा विकसित की गई है. यह मध्य सीजन की किस्म है, यानी जून के मध्य में इसकी फसल तैयार हो जाती है. इसका फल लंबा होता है और औसतन 25 ग्राम वजनी होता है. इसमें 92 प्रतिशत गूदा होता है और मिठास का स्तर (TSS) 16-17° ब्रिक्स तक रहता है. इसके फल विटामिन C (लगभग 50 मिग्रा/100 ग्राम) और एंटीऑक्सिडेंट्स से भरपूर होते हैं.

CISH J-42

यह भी ICAR-CISH, लखनऊ की ही देन है और इसकी सबसे बड़ी खासियत है इसका लगभग बीजरहित होना. जून के मध्य में तैयार होने वाली इस किस्म का फल गोल होता है, औसतन 7 ग्राम वजनी होता है और 15° ब्रिक्स TSS होता है. इसमें गूदे की मात्रा करीब 98 प्रतिशत तक होती है और शेल्फ लाइफ भी काफी अच्छी है. विटामिन C की मात्रा लगभग 34 मिग्रा/100 ग्राम है.

कोंकण बहडोली

यह किस्म महाराष्ट्र के वेंगुर्ला स्थित रिसर्च स्टेशन (RFRS) द्वारा पहचानी गई है. यह भारी और गुच्छों में फल देने वाली किस्म है, जिसमें छोटे बीज और ज्यादा गूदा पाया जाता है. औसतन फल का वजन 14 से 16 ग्राम होता है और मिठास 16° ब्रिक्स तक रहती है. इसे खाने और प्रोसेसिंग दोनों के लिए आदर्श माना जाता है.

गोमा प्रियांका

गुजरात के गोधरा स्थित CHES संस्थान ने यह किस्म विकसित की है. इसका पौधा सेमी ड्वार्फ यानी मध्यम ऊंचाई वाला होता है, जिससे हाई डेंसिटी प्लांटेशन संभव है. इसके फल मई के आखिरी सप्ताह में पकते हैं. औसतन फल का वजन 20 ग्राम होता है, गूदा 85प्रतिशत और TSS 16-17° ब्रिक्स तक रहता है. इस किस्म से 8वें साल में प्रति पेड़ लगभग 44 किलो तक उत्पादन मिलता है.

थार क्रांति

यह भी गोधरा स्थित CHES द्वारा विकसित किस्म है. इसका पेड़ के जड़े काफी फैली होती है और तीसरे साल में ही फूल आना शुरू हो जाता है. फल मई के आखिरी सप्ताह में पकते हैं, औसतन 20 ग्राम वजनी होते हैं और गूदे की मात्रा 85प्रतिशत तक होती है. एक पेड़ से करीब 65 किलो तक उत्पादन मिल सकता है.

राजेन्द्र जामुन-1

यह किस्म बिहार के भागलपुर स्थित बिहार एग्रीकल्चरल कॉलेज ने पहचान की है. यह जल्दी पकने वाली किस्म मई-जून के बीच होती हैं. इसके फल औसतन 13 ग्राम के होते हैं, जिनमें 88प्रतिशत गूदा और 18° ब्रिक्स तक मिठास होती है. इसके अलावा, देश के अलग-अलग हिस्सों में ‘राजामुन’ (उत्तर भारत) और ‘पारस’ (पश्चिम भारत) जैसी स्थानीय लोकप्रिय किस्में भी काफी पसंद की जाती हैं.

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