दक्षिण एशिया के दो बड़े कृषि प्रधान देश भारत और पाकिस्तान इस समय भीषण बाढ़ की मार झेल रहे हैं. अगस्त के अंत और सितंबर की शुरुआत में हुई भारी बारिश ने पंजाब, हरियाणा और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत को डुबो दिया. ये वही इलाके हैं जहां दुनिया भर में मशहूर बासमती चावल की सबसे ज्यादा खेती होती है. बाढ़ की वजह से बासमती के साथ-साथ धान, कपास, गन्ना और दालों की फसलें भी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं.
बासमती चावल एक प्रीमियम फसल है, जिसकी खुशबू और लंबे दाने इसे दुनिया भर में लोकप्रिय बनाते हैं. ब्रिटेन, अमेरिका और खाड़ी देशों में इसकी भारी मांग रहती है. लेकिन बाढ़ और फसल नुकसान के चलते इस बार बासमती की कीमतें आसमान छू रही हैं. किसानों की उम्मीदें टूट रही हैं और उपभोक्ताओं की जेब पर बोझ बढ़ रहा है.
बासमती चावल का महत्व और वैश्विक पहचान
बासमती चावल को सिर्फ एक अनाज कहना इसके महत्व को कम आंकना होगा. यह भारत और पाकिस्तान की कृषि परंपरा, संस्कृति और पहचान से गहराई से जुड़ा है. इसकी खुशबू और लंबे दाने इसे दुनिया भर में अलग स्थान दिलाते हैं. भारत में मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश बासमती उत्पादन के केंद्र हैं, जबकि पाकिस्तान का पंजाब प्रांत लगभग 90 फीसदी उत्पादन का गढ़ माना जाता है.
बासमती की खासियत यह है कि इसकी कीमत सामान्य चावल की तुलना में लगभग दोगुनी होती है. यही कारण है कि यह सिर्फ किसानों की आजीविका का साधन नहीं, बल्कि भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए विदेशी मुद्रा कमाने वाला सबसे अहम निर्यात उत्पाद है. हर साल अरबों डॉलर का व्यापार इसी एक फसल पर निर्भर करता है. यही वजह है कि जब भी बासमती की पैदावार या सप्लाई पर संकट आता है, तो उसका असर न केवल किसानों और व्यापारियों बल्कि अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ताओं तक महसूस किया जाता है.
बाढ़ का असर: सेब से लेकर चावल तक
अगस्त के आखिरी हफ्ते में जब पंजाब और हरियाणा की रावी, चिनाब, सतलुज और ब्यास नदियां उफान पर आईं तो खेत पानी में डूब गए और बड़ी मात्रा में फसलें बर्बाद हो गईं. शुरुआती अनुमान के मुताबिक भारत में करीब 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की खरीफ फसलें प्रभावित हुई हैं, वहीं पाकिस्तान में धान, गन्ना, मक्का, सब्जियां और कपास की हजारों हेक्टेयर फसलें पानी में समा गईं. इस प्राकृतिक आपदा का असर केवल किसानों की आजीविका तक सीमित नहीं रहा बल्कि पूरी सप्लाई चेन पर दिखने लगा है. मंडियों में अनाज की कमी से व्यापारियों ने दाम बढ़ा दिए और इसका सीधा बोझ उपभोक्ताओं पर पड़ा, जिससे सेब से लेकर चावल तक की कीमतें तेजी से बढ़ने लगी हैं.
खरीफ बुवाई 2025: उम्मीद और निराशा का मिश्रण
खरीफ सीजन 2025 किसानों के लिए उम्मीद और निराशा का मिला-जुला दौर लेकर आया है. एक ओर बेमौसम बारिश और बाढ़ ने कई राज्यों में खड़ी फसलें चौपट कर दीं, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा. धान, कपास, दालें और सब्जियों जैसी खरीफ फसलें पानी में डूब गईं और उत्पादन का अनुमान काफी घट गया. वहीं दूसरी ओर, यही बारिश जलाशयों, तालाबों और नदियों को लबालब कर गई है, जिससे मिट्टी की नमी बढ़ी है और रबी सीजन की गेहूं, चना और सरसों जैसी फसलों की बुवाई को बड़ा सहारा मिलेगा. यानी खरीफ की मार झेलने के बावजूद किसानों के सामने रबी के लिए एक नई उम्मीद जग रही है.
प्रमुख फसलों का हाल
अरहर और उड़द (दालें): अरहर की बुवाई पिछले साल से कम रही है. उड़द की खेती पर भी असर पड़ा है, जिससे दाल आयात पर निर्भरता बढ़ सकती है.
सोयाबीन: मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में अच्छी बारिश से बुवाई में इजाफा हुआ है.
कपास: कपास की बुवाई में देरी हुई और कीट हमलों ने भी किसानों की चिंता बढ़ा दी.
मूंगफली: गुजरात और राजस्थान में मूंगफली की बुवाई का क्षेत्र बढ़ा है.
धान: बासमती और नॉन-बासमती दोनों पर बारिश का सीधा असर पड़ा है.
खेत डूबे, कर्ज बढ़ा
जब खरीफ की फसलें कटाई के बिल्कुल करीब थीं, तभी बाढ़ ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया. धान से लेकर कपास और सब्जियों तक कई फसलें खेतों में ही नष्ट हो गईं. बीज, खाद, कीटनाशक और मजदूरी पर जो खर्च किया गया था, वह पूरी तरह डूब गया, जिससे किसानों पर कर्ज का बोझ और बढ़ गया है. खासकर बासमती उगाने वाले किसानों को गहरा झटका लगा है, क्योंकि वे इस फसल को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचकर बेहतर मुनाफा कमाने की उम्मीद रखते थे. अब फसल चौपट होने से उनकी आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई है और भविष्य की खेती के लिए भी पूंजी जुटाना कठिन हो रहा है.
बाजार पर असर: कीमतें चढ़ीं
बाढ़ और लगातार बारिश का असर अब सीधे बाजार पर दिखाई देने लगा है. व्यापारियों के अनुसार सिर्फ पिछले हफ्ते में ही बासमती चावल की कीमतें करीब 50 डॉलर प्रति टन तक बढ़ गई हैं, और अगर फसल का नुकसान उम्मीद से ज्यादा हुआ तो आने वाले दिनों में दाम और तेजी पकड़ सकते हैं. इससे घरेलू उपभोक्ता तो प्रभावित होंगे ही, साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी भारतीय और पाकिस्तानी बासमती महंगा हो जाएगा. हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा तेजी ज्यादातर “फसल नुकसान की खबरों” पर बाजार की तत्काल प्रतिक्रिया है. उनका कहना है कि असली स्थिति तब साफ होगी जब नई फसल की आवक शुरू होगी और उत्पादन का वास्तविक आकलन सामने आएगा.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में हलचल
बासमती चावल की पैदावार में आई गिरावट ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में हलचल मचा दी है. ब्रिटेन, खाड़ी देशों और अमेरिका जैसे बड़े खरीदार भारतीय और पाकिस्तानी बासमती पर काफी हद तक निर्भर हैं. अगर दोनों देशों में उत्पादन कम हुआ, तो वैश्विक सप्लाई पर सीधा असर पड़ेगा और कीमतें तेजी से चढ़ेंगी. कई खरीदार मजबूरी में वैकल्पिक चावल किस्मों की ओर रुख कर सकते हैं, लेकिन बासमती की खुशबू, लंबे दाने और अनोखा स्वाद किसी और किस्म से पूरी तरह नहीं मिल सकता. यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता इसके लिए ऊंचे दाम चुकाने को भी तैयार रहते हैं, और इस साल कीमतों में भारी उछाल की संभावना से बाजार पहले ही अस्थिर हो चुका है.
सरकार और नीतियों की चुनौती
- भारत और पाकिस्तान दोनों सरकारों के सामने बड़ी चुनौती है.
- किसानों को मुआवजा और राहत पैकेज देना.
- निर्यात नीति में संतुलन रखना ताकि घरेलू उपभोक्ता और अंतरराष्ट्रीय खरीदार दोनों प्रभावित न हों.
- बाढ़-रोधी किस्मों के शोध को बढ़ावा देना.