गेहूं के साथ इस फसल की कर दें बुवाई, एक साथ होगी डबल इनकम.. खर्च हो जाएगा कम

पूर्वी उत्तर प्रदेश में गेहूं की बुवाई  का सबसे सही समय मध्य नवंबर से 10 दिसंबर तक माना जाता है. क्योंकि इस दौरान तापमान और नमी फसल के तेजी से अंकुरण और अच्छे कल्ले निकलने के लिए उपयुक्त रहते हैं.

Kisan India
नोएडा | Published: 5 Dec, 2025 | 02:08 PM

Agriculture News: बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में अभी धान की कटाई  चल रही है. इसके साथ ही किसान गेहूं की बुवाई भी कर रहे हैं. हर किसानों की चाहत होती है कि कम खर्च और कम मेहनत में अच्छी पैदावार हो. लेकिन इसके लिए किसानों को एक्सपर्ट द्वारा बताए गए जरूरी बातों को अपनाना होगा. अगर किसान गेहूं बुवाई के दौरान छोटी से भी गलती करते हैं, तो पैदावार पर असर पड़ सकता है. इससे उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा. इसलिए किसानों को गेहूं बुवाई करने के दौरान नीचे बताई गईं बातों को अपनाना चाहिए.

कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक, पूर्वी उत्तर प्रदेश में गेहूं की बुवाई  का सबसे सही समय मध्य नवंबर से 10 दिसंबर तक माना जाता है. क्योंकि इस दौरान तापमान और नमी फसल के तेजी से अंकुरण और अच्छे कल्ले निकलने के लिए उपयुक्त रहते हैं. जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए 15 से 25 नवंबर और सामान्य किस्मों के लिए 20 नवंबर से 10 दिसंबर तक का समय सबसे बेहतर है. अगर बुवाई 10 दिसंबर के बाद होती है, तो बढ़ती ठंड और कटाई के समय गर्मी के कारण उपज में 10 से 20 फीसदी तक कमी आ सकती है.

खेत के किनारों पर करें सरसों की बुवाई

ऐसे किसान अक्सर इस समय कुछ आम गलतियां कर देते हैं, जिससे उनकी मेहनत पर असर पड़ता है और फसल की पैदावार कम हो जाती है. एक्सपर्ट के मुताबिक, गेहूं की खेती शुरू करने से पहले ट्रैक्टर से खेत जोता जाता है. उसके बाद गेहूं का बीज  और खाद डाली जाती है और फिर से खेत को जोता जाता है. खाद में डाई, पोटाश और यूरिया शामिल किया जाता है. अगर किसान चाहें, तो गेहूं के खेत के किनारों पर सरसों का बीज भी बो सकते हैं. इसस गेहूं के साथ-साथ सरसों की पैदावार हो जाएगी. ऐसे  में किसानों को सरसों तेल खरीदने के लिए मार्केट में पैसे नहीं खर्च करने पड़ेंगे.

गेहूं की खेती में बढ़ गया खर्च

जानकारों का कहना है कि गेहूं की खेती से पहले खेत की मिट्टी  अच्छी तरह पकी होनी चाहिए. इसके बाद ही ट्रैक्टर से जुताई करना किसानों के लिए अच्छा रहेगा. उसके बाद खाद डालें, ताकि अच्छी पैदावार हो. ऐसे ट्रैक्टर में लगे रोटोवेटर से खेत जोतने में खर्च बढ़ गया है. अब एक बीघा खेत को जोतने में लगभग 1,000 रुपये खर्च होते हैं, जबकि पहले यह 500 से 700 रुपये होता था. इसका मुख्य कारण डीजल की बढ़ती कीमत है. सबसे बड़ी बात यह है कि खाद डालने का सही समय भराव के बाद, अधिकतम 21 दिन में होता है. 

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