दिल्ली एनसीआर में फैले प्रदूषण के लिए पराली जलाने को कारण बताया जा रहा है, हालांकि आंकड़े दिल्ली के प्रदूषण के लिए कई वजहें जिम्मेदार हैं और उसमें पराली जलाने से होने वाले धुएं का योगदान बेहद कम है. वहीं, किसानों को पराली जलाने से बचाने के लिए उनसे इसकी खरीद की जा रही है. 20 लाख टन पराली खरीदने का लक्ष्य है और इसे क्लीन एनर्जी में बदला जाएगा.
इंटीग्रेटेड रिन्यूएबल एनर्जी कंपनी SAEL Industries Ltd (SAEL) ने घोषणा की है कि वह अपने ईंधन एग्रीगेटरों के जरिये लगभग 20 लाख टन धान का अपशिष्ट (पराली) खरीदेगी और इसे स्वच्छ बिजली में परिवर्तित करेगी. पराली खरीदना का यह अभियान इसे परंपरागत तौर पर जलाने और कृषि अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़ी गंभीर चिंता को दूर करेगा. SAEL के पास पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में कुल 165 मेगावाट क्षमता वाले 11 अपशिष्ठ से ऊर्जा (Waste-to-Energy) प्लांट हैं. राजस्थान में भी प्रोजेक्ट निर्माणाधीन है.
देश में सालाना 50 करोड़ टन पराली निकलती है
इंडियन जर्नल ऑफ एग्रोनॉमी के अनुसार भारत में सालाना लगभग 500 मिलियन (50 करोड़) टन पराली (फसल अवशेष) पैदा होती है, जिनमें से लगभग 140 मिलियन (14 करोड़) टन का कोई उपयोग नहीं होता, और करीब 92 मिलियन (9.2 करोड़) टन खुले में जला दिए जाते हैं, जिससे भारत के उत्तरी राज्यों के लोगों को गंभीर वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं. कृषि अवशेषों को बिजली में परिवर्तित करने का तरीका इस समस्या के प्रबंधन के पसंदीदा तरीकों में से एक है.
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राष्ट्रीय ग्रीनहाउस गैस सूची के लिए 2006 आईपीसीसी दिशानिर्देशों पर आधारित अनुमानों के अनुसार इस खरीद से फसल अवशेषों को खुले में जलाने पर अंकुश लगाकर लगभग 300,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन से बचने में मदद मिल सकती है.
SAEL Industries Limited के मुख्य कार्यकारी और निदेशक लक्षित अवला ने कहा कि पराली, पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक रूप से कम उपयोग हुई क्षमता का प्रतीक है. हम कृषि कचरे को स्वच्छ ऊर्जा में बदलकर, न केवल किसानों के लिए आय का नया सोर्स बनाते हैं, बल्कि पराली जलाने की समस्या से भी निपटने का प्रयास कर रहे हैं.
मिट्टी को स्वस्थ रखने और ग्रीनहाउस गैस कम करने में मददगार
उन्होंने कहा कि यह पहल मिट्टी स्वस्थ को बनाए रखने, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता कम करने में मदद करती है. इसके साथ ही ही एक अधिक टिकाऊ एनर्जी ग्रिड में योगदान करती है. SAEL में हमें इस बदलाव का हिस्सा बनने पर गर्व है और हमारा उद्देश्य है धान की पराली को रिन्यूएबल संसाधन में बदलना और भारत के कृषि ऊर्जा क्षेत्र में इनोवेशन के जरिए योगदान करना.
पराली से प्रदूषण घटाना और किसान की आमदनी बढ़ाना उद्देश्य
SAEL की खरीद रणनीति स्थायी वैल्यू चेन बनाना, धान की पराली को जलाने के बजाय उपयोग में लाना, क्लीन एनर्जी प्लांट को ऊर्जा देने और किसानों की आजीविका में सुधार लाने का प्रयास करना है. कंपनी ने अपनी वर्ष 2024 की ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) रिपोर्ट में कहा है कि SAEL के कचरा से एनर्जी ऑपरेशन से 390,859.40 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन से बचाव हुआ है. SAEL के खेती कचरे से एनर्जी बनाने के प्लांट और कलेक्शन नेटवर्क में स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है.