पंजाब–हरियाणा नहीं, पराली जलाने में एमपी ने पकड़ी तेज रफ्तार- 1,000 से ज्यादा मामले दर्ज

ताजा आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में एक ही दिन में पराली जलाने के 1,000 से अधिक मामले दर्ज हुए. यह संख्या पिछले साल की तुलना में कई गुना ज्यादा है. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यही रफ्तार जारी रही, तो दो दिनों के भीतर मध्य प्रदेश पराली जलाने के मामलों में पंजाब–हरियाणा को पीछे छोड़ देगा.

नई दिल्ली | Updated On: 14 Nov, 2025 | 12:44 PM

Stubble Burning: उत्तर भारत में ठंड बढ़ते ही प्रदूषण का संकट हर साल गहराता है. हवा जहरीली हो जाती है और शहरों के ऊपर धुंध की एक मोटी परत जमा हो जाती है. आमतौर पर इसकी सबसे बड़ी वजह पराली जलाना माना जाता है, और इस समस्या का नाम आते ही पंजाब और हरियाणा सबसे पहले दिमाग में आते हैं. लेकिन इस बार तस्वीर बदल रही है.

मध्य प्रदेश पराली जलाने के मामलों में तेजी से ऊपर आ रहा है और मौजूदा रफ्तार को देखें तो वह एकदो दिनों में पंजाब और हरियाणा को भी पीछे छोड़ सकता है. यह बदलाव न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि आने वाले समय के लिए गंभीर चिंता का संकेत भी है.

वहीं, CREAMS के ताजा आंकड़ों ने साफ कर दिया है कि इस बार पराली जलाने का सबसे बड़ा केंद्र पंजाब या हरियाणा नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश बनता जा रहा है. बुधवार को अकेले एमपी में 1,052 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं, जो देश में सबसे ज्यादा थीं. इसी दिन पंजाब में 312 और हरियाणा में 72 घटनाएं सामने आईं. अगर 15 सितंबर से 11 नवंबर के बीच के कुल मामलों को देखें, तो मध्य प्रदेश में 3,569 घटनाएं दर्ज हुई हैं, जो पंजाब के 4,507 मामलों के बेहद करीब है. इस सूची में उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा भी शामिल हैं, लेकिन हालात सबसे चिंताजनक मध्य प्रदेश में दिख रहे हैं.

पिछले एक हफ्ते में स्थिति अचानक बहुत खराब हो गई. जहां 4 नवंबर तक पूरे राज्य में सिर्फ 622 मामले दर्ज थे, वहीं एक ही हफ्ते के भीतर करीब 3,000 नई घटनाएं जुड़ गईं. 5 नवंबर के बाद से तो हालात ऐसे बने कि एमपी लगातार लगभग हर दिन पराली जलाने के मामलों में देश के सभी राज्यों से आगे निकलता रहा. यह तेजी से बढ़ती संख्या न सिर्फ राज्य प्रशासन के लिए चुनौती है, बल्कि देश के हवा गुणवत्ता स्तर के लिए भी खतरे की घंटी है.

मध्य प्रदेश में पराली जलाने के मामले क्यों बढ़ रहे हैं?

मध्य प्रदेश में इस साल खरीफ मौसम की कटाई पहले पूरी हुई, जिसके बाद खेत बिकट हालात में थे. कई जिलों में किसानों ने समय बचाने के लिए ठूंठ और फसल अवशेष जलाना शुरू कर दिया. कटाई में देरी, मशीनें न मिलना, और खेत जल्दी खाली करने का दबाव, इन सब वजहों से पराली जलाने की घटनाएं बढ़ती चली गईं.

कई जगहों पर किसानों ने बताया कि खेतों को साफ करने का सबसे आसान और सस्ता तरीका जलाना ही है. हालांकि सरकार बार-बार अपील कर रही है कि पराली न जलाएं, लेकिन जमीन पर वैकल्पिक साधनों की कमी किसानों को फिर से इसी पुराने तरीके की ओर धकेल रही है.

एक दिन में 1,000 से ज्यादा मामले

ताजा आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में एक ही दिन में पराली जलाने के 1,000 से अधिक मामले दर्ज हुए. यह संख्या पिछले साल की तुलना में कई गुना ज्यादा है.

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यही रफ्तार जारी रही, तो दो दिनों के भीतर मध्य प्रदेश पराली जलाने के मामलों में पंजाबहरियाणा को पीछे छोड़ देगा.

यह स्थिति इसलिए भी चिंताजनक है, क्योंकि अब तक मध्य प्रदेश को इस समस्या का मुख्य स्रोत नहीं माना जाता था. लेकिन इस साल यह राज्य अचानक से पराली प्रदूषण का बड़ा केंद्र बनकर उभरा है.

प्रदूषण पर इसका क्या असर पड़ेगा?

पराली जलने से PM2.5 और PM10 जैसे खतरनाक कण हवा में तेजी से बढ़ जाते हैं. मध्य प्रदेश के कई जिलों जैसे विदिशा, होशंगाबाद, जबलपुर, रतलाम और सागर में AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) लगातार खराब श्रेणी में जा रहा है.

हवा में धुंध और प्रदूषण बढ़ने से सांस संबंधी बीमारियों का खतरा भी बढ़ता है. खासकर बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा रोगियों पर इसका ज्यादा प्रभाव पड़ता है.

विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि समय रहते पराली को जलाने पर रोक नहीं लगी, तो मध्य प्रदेश के कई शहरों की हवा भी उत्तर भारत के बड़े शहरों जितनी प्रदूषित हो जाएगी.

सरकार के दावों के बावजूद जमीन पर चुनौतियां बरकरार

मध्य प्रदेश सरकार दावा कर रही है कि वे किसानों को जागरूक करने के साथ-साथ वैकल्पिक व्यवस्था भी उपलब्ध करा रहे हैं. पराली प्रबंधन के लिए मशीनें, सब्सिडी, जागरूकता अभियान सब चल रहे हैं. लेकिन हकीकत यह है कि बड़े पैमाने पर मशीनें उपलब्ध नहीं हैं और किसानों तक इन योजनाओं की जानकारी भी सही तरीके से नहीं पहुंच रही है.

कई गांवों में न तो पराली काटने वाली मशीनें समय पर मिल रही हैं और न ही खेत तैयार करने के लिए जरूरी उपकरण. ऐसे में किसान मजबूरी में पराली जलाने को ही आखिरी विकल्प मानते हैं.

किसानों को समाधान चाहिए, सिर्फ चेतावनी नहीं

किसान संगठनों का कहना है कि “पराली मत जलाओ” कहना आसान है, लेकिन विकल्प देना मुश्किल. यदि सरकार सस्ती मशीनें, टैक्टर से जुड़ने वाले टूल, सब्सिडी और फसल अवशेष प्रबंधन के ठोस इंतजाम करे, तभी यह समस्या खत्म हो सकती है.

वरना यह सिलसिला हर साल ऐसे ही चलता रहेगासरकार अपील करती रहेगी, किसान पराली जलाते रहेंगे और जनता जहरीली हवा में सांस लेती रहेगी.

Published: 14 Nov, 2025 | 11:20 AM

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