Uttar Pradesh News: जब भी पराली जालने की बात होती है, तो लोगों के जेहन में सबसे पहले पंजाब और हरियाणा की तस्वीर उभरकर सामने आती है. लोगों को लगता है कि केवल इन दोनों राज्यों में ही पराली जलाई जाती है. लेकिन ऐसी बात नहीं है. इस साल उत्तर प्रदेश में अन्य उत्तर भारतीय राज्यों की तुलना में पराली जलाने के मामले सबसे ज्यादा दर्ज किए गए हैं, हालांकि पिछले साल की तुलना में यह संख्या कम हुई है. इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (IARI) के तहत किए गए CREAMS सर्वे के अनुसार, 15 सितंबर से 25 अक्टूबर तक यूपी में 734 पराली जलाने की घटनाएं हुईं. खास बात यह है कि 25 अक्टूबर को यूपी में 49 मामले आए सामने. हालांकि, पंजाब में 561, मध्य प्रदेश में 444, राजस्थान में 358, हरियाणा में 61 और दिल्ली में 3 मामले दर्ज किए गए. कुल मिलाकर छह राज्यों में 2,161 मामले सामने आए.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, आंकड़ों से पता चलता है कि सभी राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं में गिरावट आई है. पंजाब में संख्या 1,678 से घटकर 561 हुई, हरियाणा में 686 से 61 और मध्य प्रदेश में 775 से 444 पर आए. दिल्ली में मामले 11 से घटकर 3 रह गए. हालांकि यूपी और राजस्थान में सुधार सबसे कम हुआ. उत्तर प्रदेश में इस साल पराली जलाने के मामले 826 से घटकर 734 रह गए हैं, जबकि राजस्थान में यह 393 से घटकर 358 हुए. यूपी में 16 अक्टूबर को सबसे ज्यादा 132 मामले दर्ज हुए, जो 19 अक्टूबर को 12 पर घट गए और 21 अक्टूबर को फिर बढ़कर 103 हो गए. इसके बाद यह संख्या 20 से कम हो गई. पश्चिम यूपी के मथुरा में 74 मामले सबसे ज्यादा आए, इसके बाद पीलीभीत (56), शाहजहांपुर (54), बाराबंकी (51), फतेहपुर (41) और हरदोई (37) हैं.
पराली जलाने को रोकने के लिए कई कदम उठाए गए
हालांकि यूपी सरकार ने पराली जलाने को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं. उल्लंघनकर्ताओं पर जुर्माना लगाया गया है. दो एकड़ से कम के लिए 2,500 रुपये, 2-5 एकड़ के लिए 5,000 रुपये और पांच एकड़ से ज्यादा के लिए 15,000 रुपये तक जुर्माना लगाया गया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सभी अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वित्तीय वर्ष 2025-26 तक राज्य में पराली जलाने के मामले शून्य पर लाए जाएं. इस महीने उन्होंने सभी जिलाधिकारियों को सैटेलाइट निगरानी, उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई और किसानों को वैकल्पिक तरीकों के बारे में जागरूक करने के लिए कड़े आदेश दिए.
सब्सिडी जैसी योजनाएं भी लागू की गईं
कृषि निदेशक पंकज त्रिपाठी ने कहा कि सिर्फ सख्त कार्रवाई ही पर्याप्त नहीं है. किसानों को पराली जलाने के खेत और पर्यावरण पर होने वाले नुकसान के बारे में शिक्षित करना भी जरूरी है. सरकार ने इसके लिए अवशेष प्रबंधन मशीनों पर सब्सिडी जैसी योजनाएं भी लागू की हैं. उत्तर प्रदेश में धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है. कृषि विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि जब धान की खेती गैर-पारंपरिक या सीमित क्षेत्रों में बढ़ती है, तो फसल अवशेष ज्यादा होते हैं और उनका प्रबंधन मुश्किल हो जाता है. यूपी के कई किसान छोटे या सीमांत श्रेणी के हैं. छोटे किसान अक्सर मशीनों के जरिए अवशेष प्रबंधन कर पाने में असमर्थ होते हैं. धान की कटाई और गेहूं की बुआई के बीच समय बहुत कम होता है, जिससे किसान जल्दी खेत साफ करने के लिए पराली जलाने को मजबूर हो जाते हैं, जब तक आसान विकल्प उपलब्ध न हों.