महाराष्ट्र में मार्च-अप्रैल में 479 किसान आत्महत्याएं, सरकार बोली- मदद की राशि नहीं बढ़ेगी

सरकार वर्तमान सहायता राशि 1 लाख रुपये में किसी प्रकार की वृद्धि नहीं करने जा रही है. मंत्री मकरंद पाटिल ने साफ कहा कि इस पर विचार नहीं किया जा रहा.

नई दिल्ली | Published: 5 Jul, 2025 | 04:11 PM

महाराष्ट्र के खेतों में फिर एक बार दर्दनाक आंकड़े सामने आए हैं. राज्य सरकार ने विधानसभा में जानकारी दी है कि सिर्फ मार्च और अप्रैल 2025 के दो महीनों में कुल 479 किसानों ने आत्महत्या कर ली. इनमें से अधिकतर मामले राज्य के संकटग्रस्त विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्रों से हैं, जहां फसल खराब होना, कर्ज चुकाने में असमर्थता और लगातार बढ़ते कर्ज का बोझ किसानों की जिंदगी पर भारी पड़ रहा है.

कर्ज में डूबे खेत, टूटती उम्मीदें

द हिंदू की खबर के अनुसार, राज्य के राहत व पुनर्वास मंत्री मकरंद पाटिल ने विधानसभा में बताया कि मार्च में 250 और अप्रैल में 229 किसान आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए. सरकार की 2006 की एक नीति के अनुसार, फसल बर्बादी, कर्ज न चुका पाना, बैंक या लाइसेंसी साहूकारों से लिया गया कर्ज, जैसे कारणों को देखते हुए इन मामलों की जांच की जाती है और योग्य पाए जाने पर मृतक किसान के परिजनों को 1 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है.

लेकिन जब खेत ही नहीं बचे, तो कागजी मदद से कौन सी जान लौटेगी? यही सवाल किसानों के परिवारों की आंखों में तैरता है.

सिर्फ आधे मामलों को ही मदद

मार्च में दर्ज 250 मामलों में से 102 आत्महत्याएं सरकारी मदद के योग्य पाई गईं, लेकिन सिर्फ 77 मामलों में ही पैसे दिए गए. वहीं अप्रैल में 229 आत्महत्याओं में 74 किसान योग्य पाए गए, लेकिन केवल 33 मामलों में मदद की राशि जारी की गई. बाकियों की फाइलें अभी जांच की प्रतीक्षा में हैं.

“मदद बढ़ाने की कोई योजना नहीं”-सरकार

सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन लगातार बढ़ते आंकड़ों के बावजूद, सरकार वर्तमान सहायता राशि 1 लाख रुपये में किसी प्रकार की वृद्धि नहीं करने जा रही है. मंत्री मकरंद पाटिल ने साफ कहा कि इस पर विचार नहीं किया जा रहा.

राजनीतिक हलकों में भी प्रतिक्रिया

किसान आत्महत्याओं पर विपक्षी दलों ने सरकार को घेरा है. राहुल गांधी ने कहा, “जब किसान कर्ज में डूब रहे हैं, तब सरकार मूकदर्शक बनी हुई है.” वहीं शरद पवार ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह कृषि संकट को खत्म करने के लिए एक मजबूत और स्थायी नीति बनाए.

आखिर कब मिलेगा स्थायी समाधान?

हर साल यही कहानी दोहराई जाती है. बारिश में डूबते खेत, सूखे में जले सपने और कर्ज के बोझ में टूटती जानें. सवाल उठता है कि क्या केवल आर्थिक सहायता ही समाधान है? या फिर किसानों को फसल बीमा, उचित बाजार मूल्य, सस्ती कर्ज सुविधा और तकनीकी मार्गदर्शन जैसे मजबूत सपोर्ट सिस्टम की भी उतनी ही जरूरत है? जब तक समाधान जमीन पर नहीं उतरता, तब तक खेतों की हरियाली भी किसानों के चेहरे से गायब ही रहेगी.